
Bhagwan Krishna Ki Kundli: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मुरली मनोहर भगवान श्री कृष्ण का जन्म द्वापर युग में भाद्रपद महीने की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था. भगवान विष्णु का कृष्ण अवतार पृथ्वी पर अधर्म का नाश करके धर्म को स्थापित करने के लिए हुए था. 64 कलाओं वाले श्री कृष्ण को सनातन परंपरा में पूर्णावतार माना गया है. आइए इस साल जन्माष्टमी के पावन पर्व को मनाने से पहले उनकी कुंडली के उन ग्रह-नक्षत्रों के बारे में जानते हैं, जिन्होंने भगवान श्री कृष्ण को मनमोहन, मुरलीधर, जगन्नाथ, अच्युत, नीति मर्मज्ञ और योगेश्वर बनाया.
किस कारण माता से हुआ वियोग
पौराणिक मान्यता के अनुसा श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद माह की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को रात्रि 12:00 बजे हुआ था. उस समय के अनुसार उनकी वृष लग्न की कुंडली बनती है. कान्हा की कुंडली में लग्न भाव जो कि किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व और चेहरे का भाव होता है, यहां पर चंद्रमा अपनी उच्च राशि में स्थित होने के कारण उन्हें अत्यधिक रूपवान और मनमोहक छवि वाला बनाता है. इसी प्रकार रोहिणी नक्षत्र में जन्म लेने के कारण जन्म दशा चंदमा को मिली और चंद्रमा माता का कारक होकर केतु के साथ स्थिति है. ऐसे में जन्म के बाद ही जन्म देने वाली मां देवकी से उन्हें बिछड़ना पड़ता है और किशोरावस्था में आते-आते पालने वाली माता यशोदा को भी छोड़ना पड़ा.

क्यों कहलाए मनमोहन
लग्नेश शुक्र उच्च के शनि के साथ छठे भाव में स्थित हैं जो कि ननिहाल और मामा का भाव है. ऐसे में उनका जन्म मामा के यहां कारावास में हुआ क्योंकि शुक्र के साथ स्थित शनि की दृष्टि और नवम् भाव से मंगल की दृष्टि द्वादश भाव पर है जो कारावास का भाव है. कान्हा की कुंडली के उच्च के चार ग्रह और तीन ग्रह स्वराशि में स्थित हैं जो कि इन्हें स्थितप्रज्ञ, गुरु, सखा, नीति मर्मज्ञ, 64 गुणों से संपन्न और 16 कलाओं में निपुण बनाते हैं. लग्नेश शुक्र स्वराशि के होने के कारण गोमाता से भी विशेष प्रेम था.
किस ग्रह ने बनाया नीति का मर्मज्ञ
यदि बात करें द्वितीयेश बुध की तो वो अपनी उच्च राशि में पंचम भाव में स्थित है, अत: भगवान श्रीकृष्ण विद्वान, नीति मर्मज्ञ, स्पष्ट वक्ता हुए. वे अपनी बात को सटीक और सही अर्थों में सुनने वाले तक पहुंचाते थे. साथ ही बुध पर देवगुरु बृहस्पति की दृष्टि के कारण ज्ञान, भाषा में सरलता और बात के मर्म को समझा देने का ज्ञान होता है. जिस भी व्यक्ति की कुंडली में उच्च का बुध पंचम भाव में स्थित हो और बृहस्पति से दृष्ट हो, ऐसा व्यक्ति जब बोलता है तब सुनने वाले मंत्र मुग्ध होकर उसको सुनना पसंद करते हैं. सुनने वाले को समय का पता नहीं चलता है और ध्यानमग्न होकर ऐसे व्यक्ति की बात को सुनता है. श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया जाने वाला गीता का उपदेश इसी को प्रदर्शित करता है.
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- लग्न में उच्च का चंद्रमा जातक को कलात्मक बनाता है, अत: उन्हें संगीत से विशेष प्रेम था और केतु जो कि किसी भी पाइप या नली जैसी वस्तु को दर्शाता है जो कि उच्च के चंद्रमा के साथ ही स्थित केतु बांसुरी का कारक है, अत: भगवान श्री कृष्ण बांसुरी बजाया करते थे.
- द्वितीय भाव में कोई ग्रह स्थित नहीं है और न ही किसी ग्रह की दृष्टि है, इसलिए इन्हें आजीवन कुटुम्ब का अभाव रहा.
- तृतीय भाव जो कि कुंडली का पराक्रम भाव है, इस भाव पर शनि की दशम दृष्टि और मंगल की सप्तम दृष्टि है, अत: पराक्रम में उतार चढ़ाव रहा. एक तरफ पराक्रम की पराकाष्ठा थी तो धैर्य भी असीम था. उन्होंने राज्यहित में मथुरा नगरी छोड़कर द्वारका नगरी बसाई.
- चतुर्थ भाव में सूर्य स्थित है जो कि एक विच्छेदी कारक ग्रह है. चतुर्थ भाव को सुख भाव भी कहा जाता है. यहां पर सूर्य के स्थित होने से सुखों में कमी रही. जिसके कारण माता, भूमि, वाहन आदि के सुखों से वंचित रहे.
- पंचम भाव हमारे अध्यात्म और शिक्षा का है. यहां पर उच्च के बुध और बृहस्पति से दृष्ट होने के कारण इन दोनों में उच्चता प्राप्त थी. पंचम भाव हमारी भावनाओं और प्रेम का भी है. पंचम भाव में उच्च के बुध स्थित होने के कारण इन्हें राधा जैसी सुंदर प्रेयसी प्राप्त हुई.

- छठा भाव हमारे पालतू जानवरों का भी होता है. यहां पर स्वराशि के शुक्र होने के कारण गाय इन्हें अतिप्रिय थी. श्री कृष्ण को गाय चराना और उसका पालन-पोषण करना अत्यधिक प्रिय था.
- सप्तम भाव में स्थित राहु ने इन्हें मनौजी बनाया, जिसके कारण हर वर्ग के लोगों से इनका जुड़ाव रहा.
- अष्टम भाव पर शनि की दृष्टि होने और कोई शुभ ग्रह की दृष्टि न होने और न ही किसी शुभ ग्रह के स्थित होने के कारण ही यह कहा जा सकता है कि बहेलिये के तीर के कारण इन्हें मृत्यु लोक छोड़कर वैकुंठ के लिए प्रस्थान करना पड़ा.
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- नवम भाव में उच्च का मंगल स्थित है, अत: इन्हें अपने जीवन में कठोर निर्णय लेकर लंबी दूरी की यात्राएं करनी पड़ीं.
- दशम भाव का स्वामी अपनी उच्च राशि छठम भाव में स्थित है जो कि यह दर्शाता है कि इनके कर्मों में उच्चता के साथ ही सहृदयता भी थी, जिसके कारण यह सबके साथ मित्रवत थे.
- ग्यारहवें भाव में स्थित बृहस्पति अष्टमेश भी हैं. ग्यारहवा भाव बड़े भाई-बहनों और मित्रों का भी होता है. बृहस्पति के अष्टमेश भी होने के कारण इन्हें स्वराशि के बृहस्पति का उतना फायदा नहीं हुआ.
- द्वादश भाव का स्वामी मंगल है और शनि-मंगल से दृष्ट भी है. बारहवां भाव व्यय, निवेश, कारावास, हॉस्पिटल का है. इनको हमेशा अपनी पसंद की वस्तु हो या व्यक्ति, उन्हें खोना पड़ा.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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