Tulsi Plant Signifcance: सनातन पंरपरा में तुलसी को बहुत ज्यादा पवित्र और पूजनीय माना गया है. यह हिदू धर्म के तमाम तरह के पवित्र प्रतीक में से एक है. मान्यता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा होता है, वहां पर कभी भी आपदाएं या फिर यम के दूत का असमय प्रवेश नहीं होता है. उस घर में हमेशा सकारात्म्कता बनी रहती है. तुलसी माता को धन की देवी का स्वरूप और भगवान विष्णु की प्रिया माना जाता है. आइए जानते हैं कि कब और कैसे तुलसी माता पवित्र पौधे में परिवर्तित हुईं और उनकी पूजा का क्या धार्मिक महत्व है.
तुलसी विवाह की पौराणिक कथा
सनातन परंपरा में अत्यंत ही पूजनीय मानी जाने वाली तुलसी माता का पूर्व जन्म में वृंदा नाम था. इन्हीं के नाम वृंदावन का नाम पड़ा. हिंदू मान्यता के अनुसार अपने पूर्व जन्म में वृंदा अत्यंत ही धर्मपरायण और पतिव्रता स्त्री थीं. उनके पति असुरराज जालंधर थे. मान्यता है कि वृंदा के सतीत्व और पुण्य प्रताप के चलते जालंधर अपराजेय हो गये थे. मान्यता है कि जब जालंधर के आतंक से परेशान हो गये तो देवतागण भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उन्हें उससे मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की.
तब वृंदा ने भगवान विष्णु को दिया ये श्राप
तब श्री हरि ने जालंधर का वध करने के लिए छल से वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया. इसके बाद जब जालंधर का वध हुआ और उसके बाद वृंदा को सत्य का पता चला तो उसने भगवान विष्णु को शिला बनने का श्राप दे दिया. जिसे बाद श्री हरि ने शालिग्राम का स्वरूप धारण कर लिया और उसी के बाद से घर-घर में शालिग्राम के रूप में पूजे जाने लगे. भगवान विष्णु को श्राप देने के बाद वृंदा ने आत्मदाह कर लिया और जिस जगह पर वह जलकर भस्म के रूप में परिवर्तित हुईं, वहां पर तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ.
श्री हरि ने तुलसी माता को दिया था ये वरदान
मान्यता है कि श्री हरि ने धर्मनिष्ठ वृंदा को प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि आज के बाद वह सदैव उनके संग रहेंगी और उनका शालिग्राम यानि भगवान विष्णु के साथ विवाह किया जाएगा. तब से लेकर आज तक हर कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी के दिन तुलसी माता और शालिग्राम का विवाह की परंपरा चली आ रही है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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