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हर एकादशी और द्वादशी को करें तुलसी स्तोत्र का पाठ, भगवान विष्णु करेंगे 32 तरह के पापों का नाश!

आप अगर श्री हरी को खुश करना चाहते हैं, तो फिर आप तुलसी स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं. मान्यता है इससे भगवान विष्णु 32 पापों से मुक्ति देते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं स्तोत्र-

हर एकादशी और द्वादशी को करें तुलसी स्तोत्र का पाठ, भगवान विष्णु करेंगे 32 तरह के पापों का नाश!
जगद्धात्रि नमस्तुभ्यं विष्णोश्च प्रियवल्लभे । यतो ब्रह्मादयो देवाः सृष्टिस्थित्यन्तकारिणः ॥१॥

Tulsi stort path : हिन्दू धर्म में तुलसी के पौधे का विशेष स्थान है. इसे देवी का दर्जा दिया गया है. यही कारण है तुलसी का पौधा हर घर में होता है और लोग अपने दिन की शुरूआत इसकी पूजा के साथ करते हैं. मान्यता है तुलसी की सच्चे मन से पूजा पाठ करने से घर में सुख शांति बनी रहती है. साथ ही घर में देवी लक्ष्मी का वास होता है. इसके अलावा भगवान विष्णु भी प्रसन्न होते हैं, क्योंकि तुलसी भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है. यही कारण इनके प्रसाद में तुलसी जरूर शामिल होती है. वहीं, आप अगर श्री हरी को खुश करना चाहते हैं, तो फिर आप तुलसी स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं. मान्यता है इससे भगवान विष्णु 32 पापों से मुक्ति देते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं स्तोत्र-

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तुलसी स्तोत्र - Tulsi Stotra 

जगद्धात्रि नमस्तुभ्यं विष्णोश्च प्रियवल्लभे ।
यतो ब्रह्मादयो देवाः सृष्टिस्थित्यन्तकारिणः ॥१॥

नमस्तुलसि कल्याणि नमो विष्णुप्रिये शुभे ।
नमो मोक्षप्रदे देवि नमः सम्पत्प्रदायिके ॥२॥

तुलसी पातु मां नित्यं सर्वापद्भ्योऽपि सर्वदा ।
कीर्तितापि स्मृता वापि पवित्रयति मानवम् ॥३॥

नमामि शिरसा देवीं तुलसीं विलसत्तनुम् ।
यां दृष्ट्वा पापिनो मर्त्या मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषात् ॥४॥

तुलस्या रक्षितं सर्वं जगदेतच्चराचरम् ।
या विनिहन्ति पापानि दृष्ट्वा वा पापिभिर्नरैः ॥५॥

नमस्तुलस्यतितरां यस्यै बद्ध्वाञ्जलिं कलौ ।
कलयन्ति सुखं सर्वं स्त्रियो वैश्यास्तथाऽपरे ॥६॥

तुलस्या नापरं किञ्चिद् दैवतं जगतीतले ।
यथा पवित्रितो लोको विष्णुसङ्गेन वैष्णवः ॥७॥

तुलस्याः पल्लवं विष्णोः शिरस्यारोपितं कलौ ।
आरोपयति सर्वाणि श्रेयांसि वरमस्तके ॥८॥

तुलस्यां सकला देवा वसन्ति सततं यतः ।
अतस्तामर्चयेल्लोके सर्वान् देवान् समर्चयन् ॥९॥

नमस्तुलसि सर्वज्ञे पुरुषोत्तमवल्लभे ।
पाहि मां सर्वपापेभ्यः सर्वसम्पत्प्रदायिके ॥१०॥

इति स्तोत्रं पुरा गीतं पुण्डरीकेण धीमता ।
विष्णुमर्चयता नित्यं शोभनैस्तुलसीदलैः ॥११॥

तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी ।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमनःप्रिया ॥२॥

लक्ष्मीप्रियसखी देवी द्यौर्भूमिरचला चला ।
षोडशैतानि नामानि तुलस्याः कीर्तयन्नरः ॥१३॥

लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत् ।
तुलसी भूर्महालक्ष्मीः पद्मिनी श्रीर्हरिप्रिया ॥१४॥

तुलसि श्रीसखि शुभे पापहारिणि पुण्यदे ।
नमस्ते नारदनुते नारायणमनःप्रिये ॥१५॥
॥ श्रीपुण्डरीककृतं तुलसीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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