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मोहिनी एकादशी पर हुआ था राहु केतु का जन्म, यहां पढ़िए इस दिन से जुड़ी पौराणिक कथा

वैशाख माह में आने वाली एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है. इस साल 20 मई, सोमवार को मोहिनी एकदाशी का व्रत और पूजा की जा रही है.

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मोहिनी एकादशी पर हुआ था राहु केतु का जन्म, यहां पढ़िए इस दिन से जुड़ी पौराणिक कथा
जानिए राहु केतु के जन्म का मोहिनी एकादशी से क्या संबंध है.

Mohini Ekadashi 2024: सनातन धर्म में भगवान विष्णु को धरती का पालनहार कहा जाता है. हिंदू पंचांग में साल की सभी 24 एकादशियां भगवान विष्णु को समर्पित हैं. वैशाख माह में आने वाली एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है. इस साल 20 मई, सोमवार को मोहिनी एकदाशी का व्रत और पूजा की जा रही है. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार अपनाकर दानवों को मोहित कर लिया था और समुद्र मंथन से निकला अमृत उनसे लेकर देवताओं को दे दिया जिससे देवता अमर हो गए थे. कहा जाता है कि इसी दिन राहू और केतू (Rahu Ketu) का जन्म हुआ था. चलिए जानते हैं कि राहु केतु के जन्म का मोहिनी एकादशी से क्या संबंध है.

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राहु केतु की कथा

ज्योतिषशास्त्र में राहु केतु को पापी छाया ग्रह कहा गया है. मान्यता है कि इनकी वजह से ही हर बार सूर्य और चंद्रमा को ग्रहण लगता है. राहु और केतु पहले अलग-अलग ग्रह नहीं थे. ये दोनों एक ही शरीर से जन्में राक्षस ग्रह हैं. जब समुद्र मंथन हो रहा था तब देवता और दानव समुद्र मंथन से निकले अमृत को पाने के लिए लड़ रहे थे. ऐसे में बाहुबल की वजह से अमृत कलश दानवों के पास चला गया था. तब देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु (Lord Vishnu) ने मोहिनी अवतार लिया और दानवों को अपने रूप के मोह में बांध लिया. मोहिनी के मोह में दानव बेसुध हो गए और उन्होंने अमृत से भरा कलश भगवान विष्णु को दे दिया. भगवान विष्णु ने देवताओं को ये कलश दे दिया. देवता पंक्ति में बैठकर अमृत का पान कर रहे थे. ऐसे में एक राक्षस स्वरभानु भी भेष बदलकर इस पंक्ति में था और धोखा देकर उसने अमृत का पान कर लिया. लेकिन, उसी वक्त सूर्य और चंद्रमा ने उसे पहचान लिया और भगवान विष्णु को उसकी सच्चाई बता दी. भगवान विष्णु ने क्रोध में आकर स्वरभानु का सिर धड़ से अलग कर डाला. चूंकि स्वरभानु अमृत का पान कर चुका था इसलिए उसका वध नहीं हो पाया और उसका शरीर दो राक्षसों में बंट गया. उसका सिर राहु कहलाया और धड़ केतु कहलाया.

सूर्य और चंद्रमा से खास है दुश्मनी  

चूंकि सूर्य और चंद्रमा ने ही स्वरभानु को देखकर उसकी सच्चाई भगवान विष्णु को बता दी थी, इसलिए राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा से दुश्मनी रखते हैं. ये दोनों ग्रह समय-समय पर सूर्य और चंद्रमा के ग्रहण का कारण बन जाते हैं. सर्प की आकृति वाले राहु और केतु के चलते ही सूर्य और चंद्रमा पर ग्रहण लगता है. राहु और केतु अमृतपान के चलते मर नहीं सकते और ये हमेशा सूर्य और चंद्रमा को ग्रहण लगाते रहेंगे. राहु और केतु भी जातकों पर ज्योतिषीय असर डालते हैं. कहा जाता है कि जिसकी कुंडली में राहु और केतु मजबूत स्थिति में होते हैं, उनकी जिंदगी में परेशानियां कम होती हैं. वहीं जिनकी कुंडली में राहु केतु नीच स्थिति में होते हैं, उनकी जिंदगी में काफी परेशानियां होती हैं. राहु और केतु का दोष लगने पर व्यक्ति तनाव और अनिद्रा का शिकार हो जाता है. वो गलत फैसले करता है और उनका खामियाजा भुगतता है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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