Pradosh Vrat 2024: अप्रैल माह का प्रदोष व्रत पहले हफ्ते में ही पड़ने वाला है. माना जाता है कि प्रदोष व्रत के दिन यदि भक्त पूरे मन से भगवान शिव (Lord Shiva) का पूजन करते हैं तो जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है और आरोग्य का वरदान मिलता है. हर महीने कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखा जाता है. पंचांग के अनुसार, इस महीने 6 अप्रैल, शनिवार के दिन प्रदोष व्रत रखा जाएगा. शनिवार के दिन पड़ने के चलते इसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है.
त्रयोदशी तिथि 6 अप्रैल, सुबह 10 बजकर 20 मिनट पर शुरू होगी और इस तिथि का समापन अगले दिन 7 अप्रैल, सुबह 6 बजकर 54 मिनट पर हो जाएगा. प्रदोष व्रत की पूजा (Pradosh Vrat Puja) शाम के समय प्रदोष काल में होती है इसीलिए प्रदोष व्रत 6 तारीख को ही रखा जाना है. माना जाता है कि जिन लोगों के विवाह में अड़चनें पैदा हो रही हैं और शादी नहीं हो पा रही है उन्हें प्रदोष व्रत जरूर रखना चाहिए. प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करते हुए जानकीकृतं पार्वती स्तोत्र (Janakikrutam Paravati Stotram) का पाठ करना बेहद शुभ माना जाता है. कहते हैं इस स्त्रोत का पाठ करने पर शादी में आ रही दिक्कतें दूर होती हैं और जातक को मनचाहा जीवनसाथी मिलता है.
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।।जानकीकृतं पार्वती स्तोत्र।।जानकी उवाच
शक्तिस्वरूपे सर्वेषां सर्वाधारे गुणाश्रये।
सदा शंकरयुक्ते च पतिं देहि नमोsस्तु ते।।
सृष्टिस्थित्यन्त रूपेण सृष्टिस्थित्यन्त रूपिणी।
सृष्टिस्थियन्त बीजानां बीजरूपे नमोsस्तु ते।।
हे गौरि पतिमर्मज्ञे पतिव्रतपरायणे।
पतिव्रते पतिरते पतिं देहि नमोsस्तु ते।।
सर्वमंगल मंगल्ये सर्वमंगल संयुते।
सर्वमंगल बीजे च नमस्ते सर्वमंगले।।
सर्वप्रिये सर्वबीजे सर्व अशुभ विनाशिनी।
सर्वेशे सर्वजनके नमस्ते शंकरप्रिये।।
परमात्मस्वरूपे च नित्यरूपे सनातनि।
साकारे च निराकारे सर्वरूपे नमोsस्तु ते।।
क्षुत् तृष्णेच्छा दया श्रद्धा निद्रा तन्द्रा स्मृति: क्षमा।
एतास्तव कला: सर्वा: नारायणि नमोsस्तु ते।।
लज्जा मेधा तुष्टि पुष्टि शान्ति संपत्ति वृद्धय:।
एतास्त्व कला: सर्वा: सर्वरूपे नमोsस्तु ते।।
दृष्टादृष्ट स्वरूपे च तयोर्बीज फलप्रदे ।
सर्वानिर्वचनीये च महामाये नमोsस्तु ते।।
शिवे शंकर सौभाग्ययुक्ते सौभाग्यदायिनि।
हरिं कान्तं च सौभाग्यं देहि देवी नमोsस्तु ते।।
फलश्रुति
स्तोत्रणानेन या: स्तुत्वा समाप्ति दिवसे शिवाम्।
नमन्ति परया भक्त्या ता लभन्ति हरिं पतिम्।।
इह कान्तसुखं भुक्त्वा पतिं प्राप्य परात्परम्।
दिव्यं स्यन्दनमारुह्य यान्त्यन्ते कृष्णसंनिधिम्।।
(श्री ब्रह्मवैवर्त पुराणे जानकीकृतं पार्वतीस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।)
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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