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Meerabai Jayanti 2025: आखिर कौन थीं मीराबाई, जिन्होंने भगवान कृष्ण को ही मान लिया था अपना पति?

Meerabai Jayanti 2025: भगवान श्री कृष्ण की भक्ति की जब कभी भी बात चलती है तो मीराबाई का नाम सबसे पहले ध्यान में आता है. हमेशा कृष्ण भक्ति में लीन रहने वाली मीराबाई की आज जयंती मनाई जा रही है. कृष्ण भक्ति में लीन रहने वाली मीराबाई से जुड़ी 5 बड़ी बातों को जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख.

Meerabai Jayanti 2025: आखिर कौन थीं मीराबाई, जिन्होंने भगवान कृष्ण को ही मान लिया था अपना पति?
Meerabai Jayanti 2025
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Meerabai Jayanti 2025: भगवान श्री कृष्ण अनन्य भक्त मीराबाई का जन्म आश्विन मास के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा पर हुआ था. मीराबाई ने अपना पूरा जीवन योगेश्वर श्री कृष्ण के लिए समर्पित कर दिया था. राजघराने में रहने वाली मीरा कैसे हुई कृष्ण दीवानी? आखिर कैसे उनके मन में बसे भगवान श्री कृष्ण? कब उन्होंने श्रीकृष्ण को अपना पति माना और कब वे घर-द्वार छोड़कर श्रीकृष्ण की भक्ति करने निकल पड़ीं, आइए कृष्ण की भक्ति करने वाली सबसे बड़ी साधिका मीराबाई के जीवन से जुड़ी 5 बड़ी बातों के बारे में जानते हैं. 

  1. पूर्णावतार भगवान श्री कृष्ण की अनन्य भक्त कही जाने वाली मीराबाई का जन्म 1498 में जोधपुर के राजा रतन सिंह के घर में हुआ था. बचपन से ही उनका लगाव भगवान श्री कृष्ण की भक्ति से हो गया था. 
  2. मान्यता है कि एक बार किसी की बारात को देखकर उन्होंने अपनी मां से पूछा कि उनका दूल्हा कौन है? जब मां ने भगवान श्रीकृष्ण को बताया तो उन्होंने उसी पल उन्हें अपना पति मान लिया था और हर समय कान्हा की भक्ति में लीन रहने लगी थीं. हालांकि बाद में उनका विवाह बाद में राजा भोजराज के साथ हो गया. 
  3. विवाह के बाद भी मीराबाई सारी लोकलाज छोड़कर हमेशा भगवान कृष्ण की भक्ति में डूबी रहती थीं और कान्हा का गुणगान करने वाली कविताएं लिखने कहने के साथ मंदिरों में जाकर साधुओं के साथ भगवान श्री कृष्ण का भजन-कीर्तन और नृत्य करती थीं. 
  4. पति भोजराज की मृत्यु के बाद मीराबाई पूरी तरह से कान्हा की भक्ति में डूब गईं और वृंदावन पहुंच गईं. मीराबाई के मंदिर-मंदिर घूमने और भजन-कीर्तन की बात उनके ससुराल वालों को नहीं अच्छी लगती थी. मान्यता है कि उनके देवर राण विक्रमाजीत ने उनके लिए विष का प्याला भेजा था, लेकिन कृष्ण की भक्ति यहां पर भी भारी पड़ी और उसे पीने के बाद भी उन्हें जहर का कोई असर नहीं हुआ. 
  5. मान्यता है कि वृंदावन में कुछ दिनों तक रहने के बाद वे बाद में श्री कृष्ण की द्वारिका नगरी चली गईं, जहां पर वह अपने आराध्य के भजन-कीर्तन करते हुए परम धाम को प्राप्त हुईं. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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