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This Article is From Dec 10, 2021

Masik Durga Ashtami 2021: मनचाहा वरदान पाने के लिए मार्गशीर्ष माह की दुर्गाष्टमी पर करें इस स्तुति का पाठ

Margashirsh Ki Durgashtami: प्रत्येक हिंदी माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को दुर्गाष्टमी के रूप में मनाया जाता है. इस बार मार्गशीर्ष माह की दुर्गाष्टमी का पूजन 11 दिसंबर, दिन शनिवार को किया जाएगा. इस दिन दुर्गा जी के निमित्त व्रत रखने और उनका विधिवत पूजन करने का विधान है. साथ ही दुर्गाष्टमी के पूजन में देवी भागवत में वर्णित दुर्गा स्तुति का पाठ करना शुभ माना जाता है.

Masik Durga Ashtami 2021: मनचाहा वरदान पाने के लिए मार्गशीर्ष माह की दुर्गाष्टमी पर करें इस स्तुति का पाठ
Masik Durga Ashtami 2021: मार्गशीर्ष माह की दुर्गाष्टमी पर जरूर करें इस स्तुति का पाठ
नई दिल्ली:

हिंदू धर्म के अनुसार, हर माह की शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक दुर्गाष्टमी (Masik Durgashtami 2021) के रूप में मनाया जाता है. धार्मिक दृष्टि से यह दिन बहुत ही विशेष माना जाता है. नवरात्रि के अलावा मासिक दुर्गाष्टमी का दिन मां दुर्गा का पूजन करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए श्रेष्ठ है. इस बार 11 दिसंबर 2021, शनिवार के दिन दुर्गाष्टमी मनाई जाएगी. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ये इस साल की आखिरी मासिक दुर्गाष्टमी है. इस दिन दुर्गा जी के निमित्त व्रत रखने और उनका विधिवत पूजन करने का विधान है. मान्यता है कि इस दिन पूजा-अर्चना करने से मां दुर्गा प्रसन्न होकर अपने भक्तों की सभी संकटों को दूर कर देती हैं. इसके साथ ही दुर्गाष्टमी के पूजन में देवी भागवत में वर्णित दुर्गा स्तुति का पाठ करना शुभ माना जाता है.

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दुर्गा स्तुति | Shri Durga Stuti Paath

दुर्गे विश्वमपि प्रसीद परमे सृष्ट्यादिकार्यत्रये

ब्रम्हाद्याः पुरुषास्त्रयो निजगुणैस्त्वत्स्वेच्छया कल्पिताः ।

नो ते कोऽपि च कल्पकोऽत्र भुवने विद्येत मातर्यतः

कः शक्तः परिवर्णितुं तव गुणॉंल्लोके भवेद्दुर्गमान् ॥ १ ॥

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त्वामाराध्य हरिर्निहत्य समरे दैत्यान् रणे दुर्जयान्

त्रैलोक्यं परिपाति शम्भुरपि ते धृत्वा पदं वक्षसि ।

त्रैलोक्यक्षयकारकं समपिबद्यत्कालकूटं विषं

किं ते वा चरितं वयं त्रिजगतां ब्रूमः परित्र्यम्बिके ॥ २ ॥

या पुंसः परमस्य देहिन इह स्वीयैर्गुणैर्मायया

देहाख्यापि चिदात्मिकापि च परिस्पन्दादिशक्तिः परा ।

त्वन्मायापरिमोहितास्तनुभृतो यामेव देहास्थिता

भेदज्ञानवशाद्वदन्ति पुरुषं तस्यै नमस्तेऽम्बिके ॥ ३ ॥

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स्त्रीपुंस्त्वप्रमुखैरुपाधिनिचयैर्हीनं परं ब्रह्म यत्

त्वत्तो या प्रथमं बभूव जगतां सृष्टौ सिसृक्षा स्वयम् ।

सा शक्तिः परमाऽपि यच्च समभून्मूर्तिद्वयं शक्तित-

स्त्वन्मायामयमेव तेन हि परं ब्रह्मापि शक्त्यात्मकम् ॥ ४ ॥

तोयोत्थं करकादिकं जलमयं दृष्ट्वा यथा निश्चय-

स्तोयत्वेन भवेद्ग्रहोऽप्यभिमतां तथ्यं तथैव ध्रुवम् ।

ब्रह्मोत्थं सकलं विलोक्य मनसा शक्त्यात्मकं ब्रह्म त-

च्छक्तित्वेन विनिश्चितः पुरुषधीः पारं परा ब्रह्मणि ॥ ५ ॥

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षट्चक्रेषु लसन्ति ये तनुमतां ब्रह्मादयः षट्शिवा-

स्ते प्रेता भवदाश्रयाच्च परमेशत्वं समायान्ति हि ।

तस्मादीश्वरता शिवे नहि शिवे त्वय्येव विश्वाम्बिके

त्वं देवि त्रिदशैकवन्दितपदे दुर्गे प्रसीदस्व नः ॥ ६ ॥

॥ इति श्रीमहाभागवते महापुराणे वेदैः कृता दुर्गास्तुतिः सम्पूर्णा ॥

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)


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