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This Article is From Jan 14, 2022

Makar Sankranti 2022: मकर संक्रांति पर आदित्यहृदय स्तोत्र का पाठ करने से हो सकता है ये लाभ

मकर संकांति के दिन सूर्य देव की पूजा करते समय आदित्यहृदय स्तोत्र का पाठ करना शुभ माना जाता है. आदित्यहृदय स्तोत्र का वर्णन वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड में मिलता है.

Makar Sankranti 2022: मकर संक्रांति पर आदित्यहृदय स्तोत्र का पाठ करने से हो सकता है ये लाभ
Makar Sankranti 2022: मकर संक्रांति पर करें आदित्यहृदय स्तोत्र का पाठ
नई दिल्ली:

आज देशभर में मकर संक्रांति का पर्व बड़े ही धूम-धाम से मनाया जा रहा है. मकर संक्रांति का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं. शनि देव को मकर व कुंभ राशि का स्वामी भी माना जाता है. कहा जाता है कि आज के दिन पिता-पुत्र यानि शनि देव व सूर्य देव का मिलन होता है. आज से खरमास भी समाप्त हो रहे हैं, जिसके बाद आज से शुभ और मांगलिक कार्यों की शुरूआत होगी. मकर संक्रांति के दिन प्रातः काल या पुण्य काल में पवित्र नदियों में स्नान-दान कर सूर्य पूजन किया जाता है. आज के दिन विधि-विधान से सूर्य देव का पूजन व व्रत भी किया जाता है. सूर्य देव की पूजा के समय आदित्यहृदय स्तोत्र का पाठ करना शुभ माना जाता है.

मान्यता है कि ऐसा करने से नौकरी में पदोन्नति धन प्राप्ति और आत्मविश्वास के साथ-साथ समस्त कार्यों में सफलता प्राप्त होती है. आदित्यहृदय स्तोत्र का वर्णन वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड में मिलता है. रामायण के अनुसार, आदित्यहृदय स्तोत्र का पाठ स्वयं प्रभु श्री राम ने युद्ध के पहले किया था. 

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आदित्यहृदय स्तोत्र

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।

रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।

उपगम्याब्रवीद् राममगरत्यो भगवांस्तदा ॥2॥

राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम् ।

येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।

जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥

सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।

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चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वधैनमुत्तमम् ॥5॥

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।

पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥6॥

सर्वदेवतामको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः ।

एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः ॥7॥

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः ।

महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः ॥8॥

पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः ।

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भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ॥19॥

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।

कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ॥20॥

तप्तचामीकराभाय हस्ये विश्वकर्मणे ।

नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥

नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः ।

पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ॥22॥

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।

एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23 ॥

देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च ।

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यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः ॥24॥

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।

कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।

एतत् त्रिगुणितं जप्तवा युद्धेषु विजयिष्ति ॥26॥

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।

एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥

एतच्छ्रुत्वा महातेजा, नष्टशोकोऽभवत् तदा ।

धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ॥28॥

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ।

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त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥29॥

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत् ।

सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥30॥

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितनाः परमं प्रहृष्यमाणः ।

निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31 ॥


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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