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This Article is From Dec 28, 2021

पवनपुत्र ने क्यों लिया था एकादश मुखी रूप, जानिए इसके पीछे की पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, सिर्फ मनुष्य ही नहीं, बल्कि देवता भी संकट से उबारने के लिए हनुमान जी का वंदन करते रहे हैं. ऐसी ही एक पौराणिक कथा हम आपको बताने जा रहे हैं, जिसमें देवताओं की मदद के लिए और दुष्ट असुर का संहार करने के लिए हनुमान जी को ग्यारह मुखी रूप रखना पड़ा था.

पवनपुत्र ने क्यों लिया था एकादश मुखी रूप, जानिए इसके पीछे की पौराणिक कथा
हनुमान जी ने इस वजह से ही लिया था एकादश मुखी रूप, पढ़ें पौराणिक कथा
नई दिल्ली:

सनातन धर्म में सभी देवी-देवताओं की पूजा के लिए विशेष दिन निर्धारित किए गए हैं. भगवान पवनपुत्र हनुमान की पूजा उपासना के लिए मंगलवार का दिन उत्तम माना गया है. बल, बुद्धि के दाता हनुमान जी (Hanuman Ji) असीमित ऊर्जा के प्रतीक भी माने जाते हैं. मान्यता है कि मंगलवार के दिन हनुमान जी (Lord Hanuman)का विधि-विधान से पूजन करने पर वे अपने भक्तों के जीवन के सभी कष्टों को दूर कर देते हैं, यही वजह है कि उन्हें संकट मोचन भी कहा जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, सिर्फ मनुष्य ही नहीं, बल्कि देवता भी संकट से उबारने के लिए हनुमान जी का वंदन करते रहे हैं. ऐसी ही एक पौराणिक कथा हम आपको बताने जा रहे हैं, जिसमें देवताओं की मदद के लिए और सभी लोकों में हाहाकार मचा रहे दुष्ट असुर कालकारमुख का संहार करने के लिए पवनपुत्र हनुमान जी को ग्यारह मुखी (Gyarahmukhi)  रूप रखना पड़ा था.

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हनुमान जी के एकादश मुखी रूप की कथा

पवनपुत्र हनुमान जी के ग्यारहमुखी रूप लेने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है. बताया जाता है कि प्राचीन काल में ग्यारह मुख वाला एक शक्तिशाली राक्षस हुआ करता था, जिसका नाम  कालकारमुख था. उसने एक समय भगवान ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था. कालकारमुख की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे मन मुताबिक वर मांगने को कहा, जिस पर कालकारमुख ने ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान मांगा. इस पर ब्रह्मा जी ने उसे अमरता का वरदान असंभव बताते हुए कुछ और वर मांगने को कहा, जिसके बाद कालकारमुख ने ब्रह्मा जी से कहा कि, आप मुझे कुछ ऐसा वर दीजिए की जो भी मेरी जन्मतिथि पर ग्यारह मुख धारण करे, वही मेरा अंत करने में सक्षम हो. ब्रह्मा जी ने भी कालकारमुख को ये वरदान दे दिया.

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पौराणिक कथा के अनुसार, ब्रह्मा जी से मनचाहा वरदान पाने के बाद कालकारमुख ने हाहाकार मचा दिया. यहां तक कि उसने देवों और उनकी सेना को आतंकित करना शुरू कर दिया. मौका पाकर उसने देवताओं पर चढ़ाई कर उन्हें परास्त कर दिया. इस दौरान कालकारमुख ने सभी लोकों में आतंक मचा रखा था. इस बीच असहाय देव भगवान श्री हरि विष्णु के पास पहुंचे और राक्षस कालकारमुख का आतंक रोकने की विनती की. इस पर भगवान श्री हरि विष्णु जी ने कहा कि मैं श्रीराम के रुप में धरती पर पहले से ही मौजूद हूं. इस समस्या के निवारण के लिए आप श्रीराम के पास जाएं. इस पर सभी देवता धरती पर भगवान राम के समक्ष पहुंचे और इस संकट से उबारने की प्रार्थना की. इस पर रामजी ने देवताओं को कहा कि इस संकट से सिर्फ हनुमान जी ही उन्हें उबार सकते हैं.

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कथा के अनुसार, प्रभु राम की आज्ञा से हनु्मान जी ने चैत्र पूर्णिमा के दिन 11 मुखी रुप ग्रहण किया, जो राक्षस कालकारमुख की जन्मतिथि थी. जब असुर कालकारसुर को इसका पता चला तो वह हनुमान जी का वध करने के लिए सेना के साथ निकल पड़ा. कालकारमुख की इस हरकत को देखकर हनुमान जी क्रोधित हो गए और उन्होंने क्षणभर में ही उसकी सेना को नष्ट कर दिया. फिर हनुमान जी ने कालकारमुख की गर्दन पकड़ी और उसे बड़ी वेग से आकाश में ले गए, जहां उन्होंने कालकारसुर का वध कर दिया.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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