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व्रत और उपवास में क्या अंतर होता है? दोनों को रखने से पहले जानें इससे क्या​ मिलता है फल?

Vrat and upavas difference: सनातन परंपरा में बड़ी संख्या में आस्थावान लोग व्रत और उपवास रखते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि इन दोनों के बीच बड़ा एक अंतर होता है? यदि नहीं तो आपको इसे शुरु करने से पहले इस लेख को जरूर एक बार पढ़ना चाहिए.

व्रत और उपवास में क्या अंतर होता है? दोनों को रखने से पहले जानें इससे क्या​ मिलता है फल?
आस्था से जुड़े व्रत और उपवास का क्या धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है?

Vrat aur upvas mein antar: अपने आराध्य की कृपा पाने के लिए लगभग सभी धर्मों में किसी न किसी रूप में व्रत की परंपरा देखने को मिलती है. हिंदू धर्म (Hindu Religion) में तो हर दिन लोग किसी न किसी देवी-देवता (God and Goddess) या ग्रह (Planet) विशेष के लिए व्रत रखते हैं. इसी व्रत के साथ उपवास शब्द भी जुड़ा हुआ है. जिसका प्रयोग लोग अक्सर इसी संदर्भ में करते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि व्रत और उपवास में बड़ा अंतर होता है, यदि नहीं तो आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं. साथ ही यह भी जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर किन कामनाओं को लेकर किया जाता है ये व्रत और उपवास?

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क्या होता है व्रत? 

सनातन परंपरा में ईश्वर की कृपा पाने के लिए लोग अक्सर व्रत रखते हैं. अपने आराध्य को मनाने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए व्यक्ति एक परंपरा, नियम और संकल्प से जुड़ता है. वह निश्चय करता है कि ईश्वरीय आशीर्वाद को पाने के लिए व्रत के नियमों से बंधा रहेगा और किसी भी कठिनाई के आगे उसका संकल्प नहीं टूटेगा. दरअसल व्रत चाहे ईश्वर से जुड़ा हुआ हो या फिर आम जीवन में किसी उद्देश्य से, उसके पीछे व्यक्ति् का दृढ़ निश्चय या फिर कहें संकल्प होता है. यही कारण है कि व्रत वाले दिन एक साधक सुबह तन-मन से पवित्र होने के बाद सबसे पहले व्रत को विधि-विधान से करने का संकल्प लेता है. इस तरह देखें तो व्रत आस्था (Faith) से जुड़ा एक पवित्र और अटूट संकल्प है. 

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क्या होता है उपवास?

आस्थावान व्यक्ति जहां सुख-संपत्ति, सौभाग्य आदि की कामना के लिए रखते हैं, वहीं उपवास का उद्देश्य अलग होता है. उपवास आत्मिक शुद्धि का माध्यम है. यदि बात करें उपवास शब्द के अर्थ की तो इसमे 'उप' शब्द अर्थ ऊपर और 'वास' शब्द अर्थ रहना होता है. कहने का तात्पय यह है कि जीवन से जुड़ी तमाम कामनाओं से ऊपर उठकर उस परमपिता ईश्वर की समीपता को प्राप्त करना ही उपवास का उद्देश्य है. उपवास के जरिए एक साधक की चाह परम ब्रह्म के साक्षात्कार की होती है, जिसके होने पर उसे सभी बंधनों से मुक्ति मिल जाती है और वह मोक्ष को प्राप्त होता है. इस तरह हम कह सकते हैं कि व्रत धर्म और उससे जुड़े देवताओं के जरिए अलग-अलग कामनाओं की पूर्ति के लिए तो वहीं उपवास परम सत्ता के निकट जाकर आध्यात्मिक (Spritiual) सुख पाने का माध्यम है. 

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आखिर किन कारणों से लोग रखते हैं व्रत

सनातन परंपर में अलग-अलग कामनाओं को ध्यान में रखते हुए लोग अलग-अलग देवी-देवताओं से जुड़े व्रत करते हैं. इनमें से कुछ की ईश्वर के प्रति धार्मिक आस्था रखते हुए व्रत रखते हैं तो कुछ भगवान के भय से भी व्रत रखते हैं. व्रत को रखने के पीछे कई बार ज्योतिषीय (Astrology) कारण भी होता है. जैसे कुछ लोग शनि मंगल आदि से जुड़े दोष को दूर करने और उनकी शुभता पाने के लिए व्रत को रखते हैं. आत्म शुद्धि के लिए भी कुछ लोग व्रत रखते हैं, लेकिन कामनाओं की पूर्ति से जुड़े लोगों के मुकाबले इनकी संख्या कम ही होती है. 

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व्रत से होने वाले लाभ 

श्रद्धा और विश्वास के साथ किए जाने वाले व्रत को लेकर लोगों की मान्यता है कि इसे विधि-विधान से करने पर उन्हें ईश्वरीय आशीर्वाद प्राप्त होता है. यही कारण है कि हिंदू धर्म से जुड़ी महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति और अपने परिवार के मंगलकामना को लिए व्रत तमाम तरह के व्रत पूरे साल रखती हैं. यह व्रत उन्हें इस बात का भरोसा देते हुए अभय प्रदान करता है कि ईश्वर की अदृश्य से उनका जुड़ाव बना हुआ है. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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