भगवान श्रीगणेश को हिंदू धर्म में प्रथम पूज्य माना गया है. किसी भी शुभ काम की शुरुआत की जानी हो तो सर्वप्रथम श्री गणेश की पूजा करते हैं. भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि यानी कि चौथ को देश भर में गणेश पूजा होती है. धूमधाम से घरों में गणपति को विराजमान किया जाता है तो वहीं पंडालों में भी खूबसूरत सजावट के साथ श्री गणपति स्थापित होते हैं. श्री गणेश के कई नाम हैं, उन्हें एकदंत भी कहते हैं, क्या आप जानते हैं कि श्री गणेश को एकदंत क्यों कहा जाता है.
ऐसी है कथा
श्री गणेश एकदंत भी कहलाते हैं, उनके इस नाम के पीछे एक पौराणिक कथा है. इसके अनुसार एक बार भगवान शिव शंकर और मां पार्वती जब अपने कक्ष में विश्राम कर रहे थे तो गणेश जी को उन्होंने मुख्य द्वार पर बैठा दिया. माता-पिता ने आदेश दिया कि किसी को भी श्री गणेश अंदर ना आने दें. गणेश ने माता-पिता की आज्ञा के अनुसार वहीं आसन जमा लिया. थोड़े ही समय बाद शिव शंकर के भक्त परशुराम जी वहां पहुंचे और भगवान शंकर से भेंट करने की इच्छा व्यक्त की. श्री गणेश ने माता-पिता की आदेश के अनुसार उन्हें प्रवेश करने से रोक दिया. इस पर परशुराम को बहुत ही ज्यादा गुस्सा आ गया, वे क्रोध से लाल हो गए. बार-बार परशुराम के कहने के बाद भी जब श्री गणेश ने उन्हें शिव जी से मिलने की अनुमति नहीं दी तो क्रोध में परशुराम ने बिना कुछ सोचे समझे अपने फरसे से श्री गणेश पर हमला किया और उनका एक दांत टूट गया.
दांत टूटने से गणपति दर्द से कराहने लगे, उनकी पीड़ा सुनकर मां पार्वती वहां पहुंच आईं. पुत्र को ऐसी अवस्था में देख मां क्रोधित हो गईं और उन्होंने दुर्गा का रूप धारण कर लिया. मां का रौद्र रूप देख परशुराम उनके चरणों में गिर गए और माफी मांगी. इसके साथ ही श्री गणेश का नाम एकदंत पड़ा.
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