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Govardhan Puja 2025: ब्रजमंडल के धर्माचार्यों से जानें गोवर्धन की परिक्रमा और पूजा का क्या है महत्व?

Govardhan Puja 2025: हिंदू धर्म में दिवाली के बाद की जाने वाली जिस गोवर्धन पूजा का बहुत ज्यादा धार्मिक महत्व माना गया है, उसकी परिक्रमा का क्या महत्व है? गोवर्धन महाराज जी की कैसे पूजा की जाती है और क्या लगाया जाता है उन्हें भोग, जानने के लिए पढ़ें ये लेख.

Govardhan Puja 2025: ब्रजमंडल के धर्माचार्यों से जानें गोवर्धन की परिक्रमा और पूजा का क्या है महत्व?
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Govardhan Puja 2025: ब्रजमंडल में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व माना गया है क्योंकि यह वही पावन भूमि है जहां पर कभी समस्त ब्रजवासियों ने बालकृष्ण के साथ जाकर गोवर्धन महाराज की पूजा की थी. पहली बार यह षोडशोपचार पूजा भगवान श्री कृष्ण के द्वारा ही कराई गई थी. जिसे भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र देवता का अभिमान भंग करने के लिए करवाया था. कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा के दिन की जाने वाली गोवर्धन पूजा का क्या महत्व है, आइए इसे ब्रजमंडल के जाने-माने धर्माचार्यों के माध्यम से जानते हैं. 

गोवर्धन की पूजा का धार्मिक महत्व

सांवरिया बाबा के अनुसार गोवर्धन पूजा के जरिए भगवान श्रीकृष्ण ने हमें यह बताया कि हमारा सच्चा धन क्या है? हम सभी का सच्चा धन गो यानि गोमाता है. जिनका हम लोग पूजन करते हैं. गोवर्धन का अर्थ होता है इंद्रियों का वर्धन यानि पुष्ट करने वाले. इसी पूजा को कराने के बाद पूरे ब्रज में समृद्धि का संचार हुआ. भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र के एकाधिकार को समाप्त करके सबके लिए जो सुलभ देवता हैं, जिनकी पूजा एवं दर्शन में जात-पात आदि का कोई भेद नहीं है, सभी एक साथ उनकी पूजा के लिए एकत्रित होते हैं.

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परिक्रमा करने पर ही गोवर्धन के होते हैं पूरे दर्शन

वृंदावन के कथावाचक मृदुल कांत शास्त्री के अनुसार ब्रजमंडल में गोवर्धन की पूजा का महत्व किसी भी त्योहार से अधिक है. इसे दीपावली से भी अधिक महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि गोवर्धन महाराज वो देवता हैं, जिन्हें स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने पूजा है. जिस श्रीकृष्ण को पूरी दुनिया पूजती है, उसे राधा-कृष्ण और ब्रजवासियों ने सम्मिलित रूप से पूजा है. 

जब आप किसी मंदिर में जाते हैं तो ठाकुर जी के आस-पास जो सकारात्मकता है उसे ग्रहण करने के लिए उनका दर्शन करते हुए उनकी परिक्रमा करते हैं, लेकिन गोवर्धन महाराज को जब आप कहीं से भी देखते हैं तो उनका सिर्फ एक अंग ही आपको नजर आता है. ऐसे में आप जब उनकी परिक्रमा करते हैं तो आपको कहीं उनके मुखारविंद तो कहीं नाभि तो कहीं कटि का दर्शन होता है. ऐसे में पूरी परिक्रमा के बाद उनके समस्त अंगों का दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है. 

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गोवर्धन पूजा पर 56 भोग नहीं बल्कि अन्नकूट की परंपरा है

राम वल्लभ महाराज के अनुसार गोवर्धन पूजा वाले दिन सबसे पहले मानसी गंगा से ​गिरिराज जी का स्नान कराया जाता है. इसके बाद पंचामृत से उनका अभिषेक किया जाता है. उसके बाद जो कुछ भी भोजन-प्रसादी लेकर ब्रजवासी जाते हैं,उसका भोग गिरिराज महाराज को लगाया जाता है.  उसके पश्चात् भक्तगण गिरिराज महाराज की 21 किमी की परिक्रमा की जाती है. गोवर्धन महाराज जिनके हमे साक्षात दर्शन होते हैं, उन्हें कलयुग का देवता माना जाता है. 

गोवर्धन पूजा पर 56 भोग नहीं बल्कि अन्नकूट की परंपरा रही है. जिसमें वह अन्न या अन्य खाद्य पदार्थ ​जैसे दूध, दही आदि जो अधिक मात्रा में हो उसे भगवान को भोग के रूप में अर्पित किया जाता है. वर्तमान समय में हर भक्त अपनी आस्था के अनुसार कढ़ी, चावल आदि बनाकर भोग लगाता है. जिसे पंचामृत से अभिषेक किया जाता है. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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