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This Article is From Aug 04, 2023

विभुवन संकष्टी चतुर्थी की पूजा गणेश आरती और इन मंत्रों के साथ करें शुरू, विघ्नहर्ता होंगे प्रसन्न

Vibhuvan Sankashti Chaturthi Puja : इस आर्टिकल में आपको विघ्नहर्ता की पूजा शुरू करने के लिए आरती और मंत्र बताने वाले हैं जिसे करने से गणेश जी का आशीर्वाद आप पर बना रहेगा. 

विभुवन संकष्टी चतुर्थी की पूजा गणेश आरती और इन मंत्रों के साथ करें शुरू, विघ्नहर्ता होंगे प्रसन्न
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।  निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

Vibhuvana Sankashti Chaturthi 2023 : आज विभुवन संकष्टी चतुर्थी व्रत है. वैसे तो हर महीने ही चतुर्थी तिथि पड़ती है. एक कृष्ण पक्ष और दूसरी शुक्ल पक्ष में. लेकिन विभुवन चतुर्थी का व्रत तीन साल में एक बार आता है जिसके कारण इसका महत्व बढ़ जाता है. विभुवन संकष्टी चतुर्थी के व्रत में रात के समय चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत पूरा होता है. आपको बता दें कि सावन के अधिकमास में पड़ने वाली चतुर्थी तिथि की शुरूआत आज दोपहर 12 बजकर 45 मिनट पर हो रही है, जो अगले दिन यानी 05 अगस्त, शनिवार को सुबह 09 बजकर 39 मिनट पर होगा. इस आर्टिकल में हम आपको विघ्नहर्ता की पूजा शुरू करने के लिए आरती और मंत्र बताने वाले हैं जिसे करने से गणेश जी का आशीर्वाद आप पर बना रहेगा. 

गणेश आरती

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती
पिता महादेवा ॥

एक दंत दयावंत,
चार भुजा धारी ।
माथे सिंदूर सोहे
मूसे की सवारी ॥

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती
पिता महादेवा ॥

पान चढ़े फल चढ़े,
और चढ़े मेवा ।
लड्डुअन का भोग लगे
संत करें सेवा ॥

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती
पिता महादेवा ॥

अंधन को आंख देत,
कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत
निर्धन को माया ॥

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती
पिता महादेवा ॥

'सूर' श्याम शरण आए,
सफल कीजे सेवा ।
माता जाकी पार्वती
पिता महादेवा ॥

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती
पिता महादेवा ॥

दीनन की लाज रखो,
शंभु सुतकारी ।
कामना को पूर्ण करो
जाऊं बलिहारी ॥

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती
पिता महादेवा ॥

गणेश मंत्र

गणपूज्यो वक्रतुण्ड एकदंष्ट्री त्रियम्बक:। 
नीलग्रीवो लम्बोदरो विकटो विघ्रराजक :।। 
धूम्रवर्णों भालचन्द्रो दशमस्तु विनायक:। 
गणपर्तिहस्तिमुखो द्वादशारे यजेद्गणम।।

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। 
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

त्रयीमयायाखिलबुद्धिदात्रे बुद्धिप्रदीपाय सुराधिपाय। 
नित्याय सत्याय च नित्यबुद्धि नित्यं निरीहाय नमोस्तु नित्यम्।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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