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कब है नवंबर माह का पहला प्रदोष व्रत, जानिए भगवान शिव को समर्पित इस व्रत की पूजा विधि

Pradosh Vrat Date: इस महीने किस दिन रखा जाएगा प्रदोष व्रत जानिए यहां. मान्यतानुसार प्रदोष व्रत पर भगवान शिव की पूजा करने पर हर मनोकामना हो जाती है पूरी.

कब है नवंबर माह का पहला प्रदोष व्रत, जानिए भगवान शिव को समर्पित इस व्रत की पूजा विधि
Pradosh Vrat Puja Vidhi: इस तरह संपन्न की जाती है भोलेनाथ की पूजा.

Pradosh Vrat: भगवान शिव के भक्त हर माह में 2 बार प्रदोष व्रत रखते हैं. माह में दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को रखा जाने वाला यह व्रत भगवान शिव की पूजा अराधना के लिए समर्पित है. मान्यता है कि त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखकर प्रदोष काल में विधि-विधान से भगवान शिव (Lord Shiva) और माता पार्वती की पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है. इस व्रत से भगवान शिव की असीम कृपा प्राप्त होती है जिससे जीवन में सुख-समृद्धि आती है और परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है. नवंबर माह शुरू हो चुका है और इस माह में पहला प्रदोष व्रत बुधवार को होने के कारण बुध प्रदोष व्रत होगा. यहां जानिए क्या है इस प्रदोष व्रत की तिथि.

नवंबर में पहला प्रदोष व्रत | First Pradosh Vrat Of November 

हिंदू पंचांग के अनुसार, अभी कार्तिक माह चल रहा है और कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत नवंबर माह का पहला प्रदोष व्रत होगा. कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 13 नवंबर, बुधवार को दोपहर 1 बजकर 1 मिनट से शुरू होकर 14 नवंबर, गुरुवार को सुबह 9 बजकर 43 मिनट तक रहेगी. प्रदोष व्रत की पूजा संध्या के समय किए जाने के कारण 13 नवंबर के दिन ही प्रदोष व्रत रखा जाएगा. 

बुध प्रदोष व्रत के लिए पूजा का मुहूर्त

13 नवंबर को प्रदोष पूजा का मुहूर्त शाम को 5 बजकर 28 मिनट से लेकर 8 बजकर 7 मिनट तक कुल 2 घंटे 39 मिनट तक है. इस दिन दिन में प्रदोष काल (Pradosh Kaal) का समय भी को 5 बजकर 28 मिनट से लेकर 8 बजकर 7 मिनट तक है.

बुध प्रदोष व्रत की पूजा विधि

बुध प्रदोष व्रत (Budh Pradosh Vrat) के दिन प्रात:काल स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर हाथ में फूल और अक्षत लेकर व्रत का संकल्प करें. भगवान शिव की पूरे परिवार यानी माता पार्वती, दोनों पुत्रों भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय व नंदी के साथ पूजा करें. शाम के समय प्रदोष काल में भगवान शिव का अभिषेक करें और उनके पूरे परिवार के साथ उनकी विधिवत पूजा करें. बुध प्रदोष व्रत की कथा सुनें और घी का दिया जलाकर आरती करें. पूजा के बाद ऊं नम: शिवाय मंत्र को जाप करें. बुध प्रदोष व्रत का व्रत रखने और भगवान शिव की पूजा अराधना से ज्ञान, शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

बुध प्रदोष व्रत की कथा

प्राचीन समय में विदर्भ में एक ब्राह्मणी पति के निधन के बाद भिक्षा मांग कर जीवन बिता रही थी. एक दिन संध्याकाल में घर लौटते समय उसे दो बच्चे खेलते हुए नजर आए. बच्चों को अकेला देख ब्राह्मणी उन्हें अपने घर ले आई. दोनों बच्चे ब्राह्मणी का प्रेम पाकर बहुत प्रसन्न हो गए. समय के साथ बच्चे बड़े होते गए और ब्राह्मणी के काम में हाथ भी बंटाने लगे. बच्चों के बड़े हो जाने पर ब्राह्मणी ने ऋषि शांडिल्य के पास जाकर उन्हें सारी बातें बताई. ऋषि शांडिल्य अपनी दिव्य शक्ति से दोनों बच्चों का भविष्य जान गए और बोले, ये दोनों बालक विदर्भ के राजकुमार हैं. आक्रमण के कारण इनका राजपाट छीन गया है. जल्द ही इन्हें खोया हुआ राज्य प्राप्त होगा. इसके लिए तुम प्रदोष व्रत अवश्य करो और संभव हो तो बच्चों को व्रत रखने की सलाह दो. वृद्ध ब्राह्मणी ने प्रदोष व्रत करने लगी. उन्हीं दिनों बड़े लड़के की मुलाकात एक राजकुमारी से हुई और दोनों प्रेम करने लगे. यह जानकारी राजा को हुई तो राजा ने विदर्भ राजकुमार से मिलने की इच्छा जताई और दोनों का विवाह कर दिया. दोनों राजकुमारों ने अंशुमति के पिता की मदद से विदर्भ पर आक्रमण कर दिया और अपना राज्य वापस प्राप्त कर लिया. राजकुमारों ने वृद्ध ब्राह्मणी को मां का दर्जा दिया और नियमित रूप से प्रदोष व्रत रखने लगे.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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