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This Article is From Aug 01, 2020

Eid ul-Adha Mubarak 2020: इस्लाम में बकरीद का है खास महत्व, जानिए किन लोगों पर वाजिब है कुर्बानी

Eid-ul-Adha 2020: इस्लाम धर्म के दो सबसे बड़े त्योहार ईद-उल-फित्र और ईद-उल-अजहा (Eid-ul-Adha 2020) हैं. ईद-उल-अजहा बकरीद (Bakrid) को कहते हैं, जिस पर कुर्बानी की जाती है.

नई दिल्ली:

Eid-ul-Adha 2020: ईद का त्योहार देश में बड़े ही धूम-धाम से मनाया जा रहा है. इस्लाम धर्म के दो सबसे बड़े त्योहार ईद-उल-फित्र और ईद-उल-अजहा (Eid-ul-Adha 2020) हैं. ईद-उल-फित्र को मीठी ईद कहते हैं, यह ईद रमजान के महीने भर के रोज़े रखने के बाद मनाई जाती है, जबकि ईद-उल-अजहा बकरीद (Bakrid) को कहते हैं, जिस पर कुर्बानी की जाती है. ईद-उल-फित्र की तरह ही बकरीद का त्योहार भी तीन दिनों तक बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है और तीन दिन तक कुर्बानी का सिलसिला चलता है. ईद-उल-अजहा का त्योहार ईद की नमाज़ के साथ शुरू होता है, सभी मुस्लिम पुरुष मस्जिदों या ईद गाह में ईद की नमाज अदा करते हैं. ईद की नमाज के बाद कुर्बानी का सिलसिला शुरू होता है. हालांकि, इस साल कोरोनावायरस के चलते लोगों को अपने घरों में ही ईद की नमाज अदा करनी होगी. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, धू-अल-हिज्जा की 10 तारीख को बकरीद  (Bakrid 2020) मनाई जाती है.

बकरीद पर कुर्बानी का महत्व
इस्लाम धर्म में बकरीद का खास महत्व है. इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, अल्लाह  ने हज़रत इब्राहिम की परीक्षा लेने के लिए उनसे उनकी सबसे प्यारी और अज़ीज़ चीज़ की कुर्बानी देने के लिए कहा था. हज़रत इब्राहिम के लिए सबसे अज़ीज़ और प्यारे उनके बेटे हज़रत ईस्माइल ही थे. लेकिन हज़रत इब्राहिम ने बेटे के लिए अपनी मुहब्बत के बजाए अल्लाह के हुक्म को मानने का फैसला किया और अपने बेटे को अल्लाह के लिए कुर्बान करने के लिए तैयार हो गए. कहा जाता है कि जब हज़रत इब्राहिम के बेटे हज़रत ईस्माइल को इस बारे में पता चला तो वे भी कुर्बान होने के लिए राज़ी हो गए. हज़रत इब्राहिम ने आंखें बंद करके जैसे ही अपने बेटे की गर्दन पर छुरी चलाई तो अल्लाह ने उनके बेटे की जगह दुंबा भेज दिया. इस तरह उनके बेटे बच गए और दुंबा कुर्बान हो गया. इसके बाद से ही अल्लाह की राह में कुर्बानी देने का सिलसिला शुरू हो गया. 

इस्लाम में कुर्बानी करना इन लोगों पर है वाजिब
इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, बकरीद पर कुर्बानी करना हर हैसियतमंद शख्स पर वाजिब है. माना जाता है कि जो शख्स हैसियतमंद होने के बावजूद भी कुर्बानी नहीं करता है वह गुनाहगारों में शुमार होता है. यही वजह है कि हर साल मुस्लिम समुदाय के लोग अपनी हैसियत के हिसाब से कुर्बानी करते हैं. बकरीद के मौके पर बजारों की रौनक देखने लायक है. 

कैसे जानवरों की कुर्बानी देना है जायज़
बकरीद के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग बकरा, भेड़, ऊंट, भैंस जैसे जानवरों की कुर्बानी देते हैं. कुर्बानी सिर्फ उन्हीं जानवरों की हो सकती है, जो पूरी तरह से सेहतमंद हों. अगर किसी जानवर को कोई बीमारी हो या उसके शरीर पर किसी तरह की कोई चोट हो तो ऐसे जानवर की कुर्बानी जायज़ नहीं मानी जाती है. बकरे की कुर्बानी सिर्फ एक शख्स के नाम पर ही की जा सकती है. जबकि, बड़े जानवर जैसे भैंस और ऊंट की कुर्बानी में सात लोग शामिल हो सकते हैं,  यानी एक जानवर में सात लोगों के नाम की कुर्बानी हो सकती है. 

कुर्बानी के गोश्त के तीन हिस्से हैं जरूरी
इस्लाम धर्म में गरीबों का खास ध्यान रखने का हुक्म है. इसलिए कुर्बानी के गोश्त का एक हिस्सा गरीबों के नाम करने को कहा गया है. कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है, जिसमें एक हिस्सा पड़ोसियों और रिश्तेदारों का होता है, एक हिस्सा गरीबों में बांटा जाता है और एक हिस्सा अपने घर में रखा जाता है.

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