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80 साल पहले खोजा गया, वह कल्प केदार मंदिर फिर धरती में समाया, जानिए इसका पौराणिक इतिहास

धारली में अचानक आई बाढ़ के कारण भारी तबाही हुई है. यहां स्थित प्राचीन कल्प केदार मंदिर भी मलबे में दब गया है. जानिए इस महाभारत काल के इस मंदिर का इतिहास.

80 साल पहले खोजा गया, वह कल्प केदार मंदिर फिर धरती में समाया, जानिए इसका पौराणिक इतिहास
आइए जानते हैं  धराली  के कल्प केदार मंदिर का इतिहास.

Dharali Flood: उत्तराखंड में उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में मंगलवार को खीर गंगा नदी में आई अचानक बाढ़ (Dharali's floo) के कारण भारी तबाही हुई है. इस अचानक आई बाढ़ के लिए बादल फटने से लेकर हिमनदी के पिघलने तक को कारण बताया जा रहा है. नदी में अचानक पानी के काफी बढ़ने से पूरा गांव मलबे में दब गया है और कई इमारते बर्बाद हो गई है. खीर गंगा नदी में आई विनाशकारी बाढ़ से धराली का प्रसिद्ध प्राचीन शिव मंदिर कल्प केदार मंदिर (Kalp Kedar Temple) भी मलबे में दब गया. यह मंदिर 1945 में जमीन के नीचे से खोज कर निकाला गया था. माना जाता है कि मंदिर किसी आपदा के कारण सालों तक जमीन के नीचे दबा रहा था और केवल इसका उपरी हिस्सा ही दिखाई देता था. आइए जानते हैं  धराली  के कल्प केदार मंदिर का इतिहास (History of Kalp Kedar Temple ).

केदारनाथ मंदिर की शैली का मंदिर (A temple built in the style of Kedarnath Temple)

धराली में साल 1945 में की गई खुदाई के बाद कल्प केदार मंदिर के बारे में पता चला था. कई फुट तक खुदाई करने पर जमीन के नीचे एक प्राचीन शिव मंदिर मिला था जिसकी बनावट और शैली केदारनाथ मंदिर के समान थी. कत्युर शैली में निर्मित इस शिव मंदिर की वास्तुकला केदारनाथ धाम की तरह है. मंदिर का कुछ हिस्सा अब भी जमीन से नीचे स्थित था और भक्तों को मंदिर में प्रार्थना करने के लिए नीचे जाना पड़ता था. मंदिर के गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग पर खीर गंगा का पानी आता है और इसके लिए एक रास्ता भी बनाया गया है.

कल्प केदार मंदिर का इतिहास (History of Kalp Kedarnath Temple)

भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर कल्प केदार धाम कहलाता है और इसका अपना अलग ही इतिहास है. इस मंदिर की स्थापत्य शैली, बनावट सब कुछ केदारनाथ धाम जैसा ही है. केदारनाथ धाम मंदिर आइस एज में चार सौ साल तक बर्फ में दबा हुआ था वैसे ही धराली का कल्प केदार मंदिर भी बाढ़ या ऐसी ही किसी आपदा के कारण दब गया था. कुछ विद्वानों के अनुसार 19 वीं सदी में खीर गंगा में आई भीषण बाढ़ में यह मंदिर मलबे में दब गया और लुप्त हो गया था. 1945 में मंदिर के शिखर के नजर आने के बाद खुदाई  में यह मंदिर सामने आया और तब से इस मंदिर में पूजा पाठ शुरू हो गया.  

खुदाई में मिला था मंदिर (The temple was discovered during excavation)

खुदाई में मिले इस मंदिर को काफी भाग अभी भी जमीन में था और स्थानीय लोगों के मुताबिक भक्त नीचे उतरकर गहराई में ही जाकर मंदिर में भगवान का दर्शन-पूजन करते थे. लोगों ने मिट्टी हटाकर मंदिर में भीतर जाने का रास्ता बनाया था. माना जाता है कि यह मंदिर 240 लुप्त मंदिर समूहों में शामिल था, जो समय-समय पर होने वाले भौगोलिक परिवर्तन के कारण लुप्त हो गए थे. दावा किया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण आदि शंकराचार्य ने करवाया था.

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