दीपावली (Deepawali) के 15 दिनों बाद देव दीपावली (Dev Deepawali) मनाई जाती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसारा इस दिन भगवान शिव शंकर धरती पर आए थे. मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के दिन ही महादेव ने त्रिपुरा (Tripura) नामक राक्षस का वध अर उसके अत्याचार से देवताओं को मुक्ति दिलाई थी. भगवान शिव के विजयोत्सव को मनाने और अत्याचारी राक्षस के वध की खुशी में देवता गण पृथ्वी पर आए थे और दीवाली मनाई थी. यही वजह है कि शिव की नगरी काशी यानी कि वाराणसी में हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन धूमधाम से देव दीपावली मनाई जाती है. इस मौके पर लोग दूर-दूर से बनारस आते हैं और गंगा के घाटों पर दीप प्रज्ज्वलित करते हैं. देव दीपावली के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है. साथ ही इस दिन गंगा पूजा का भी विधान है. देव दीपावली के दिन ही गुरु नानक जयंती (Guru Nanak Jayanti) भी मनाई जाती है.
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देव दीपावली कब है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार देव दीपावली कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार देव दीपावली हर साल नवंबर महीने में आती है. इस बार देव दीपावली 12 नवंबर को है.
देव दीपावली की तिथि और शुभ मुहूर्त
देव दीपावली की तिथि: 12 नवंबर 2019
पूर्णिमा तिथि आरंभ: 11 नवंबर 2019 को शाम 06 बजकर 02 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 12 नवंबर 2019 को शाम 07 बजकर 04 मिनट तक
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देव दीपावली की पूजा विधि
- देव दीपावली के दिन सूर्योदय पूर्व उठकर गंगा स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें. मान्यताओं के अनुसार देव दीपावली के मौके पर गंगा स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. अगर गंगा स्नन करना संभव न हो तो घर पर ही नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें.
- अब घर के मंदिर में सबसे पहले भगवान गणेश और फिर महादेव शिव शंकर और भगवान विष्णु की विधिवत् पूजा करें.
- शाम के समय भगवान शिव को फूल, घी, नैवेद्य और बेलपत्र अर्पित करें.
- इसके बाद इन मंत्रों का जाप करें-
'ऊं नम: शिवाय',
'ॐ हौं जूं सः, ॐ भूर्भुवः स्वः
ॐ त्र्यम्बेकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धूनान् मृत्योवर्मुक्षीय मामृतात्,
ॐ स्वः भुवः भूः, ॐ सः जूं हौं ॐ
- अब भगवान विष्णु को पीले फूल, नैवेद्य, पीले वस्त्र और पीली मिठाई अर्पित करें.
- अब इन मंत्रों का जाप करें-
ऊं नमो नारायण नम:
नमो स्तवन अनंताय सहस्त्र मूर्तये, सहस्त्रपादाक्षि शिरोरु बाहवे।
सहस्त्र नाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटि युगधारिणे नम: ।।
- अब भगवान शिव और विष्णु को धूप-दीप दिखाकर आरती उतारें.
- इसके बाद तुलसी जी के पास दीपक जलाएं.
- अंत में गंगा के घाट जाकर दीपक जलाएं. मान्यता है कि ऐसा करने से सभी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है. अगर गंगा घाट जाना संभव न हो तो घर के अंदर और बाहर दीपक जलाएं.
देव दीपावली की कथाएं
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देव दीपावली के संबंध में ढेरों कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें मुख्य कथाएं इस प्रकार हैं:
- एक कथा के अनुसार, तारकासुर दैत्य के 3 पुत्र थे- तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली. इन तीनों को त्रिपुरा कहा जाता था. शिव-पार्वती के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया और उसका बदला लेने के लिए उसके पुत्रों ने तपस्या करके ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा. लेकिन ब्रह्मा जी ने उन्हें यह वरदान देने से मना कर दिया. ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम इसकी जगह कुछ और वरदान मांग लो. इसके बाद तारकासुर के पुत्रों ने कहा कि वह चाहते हैं कि उनके नाम के नगर बनवाए जाएं और जो भी हमारा वध करना चाहता है वो एक ही तीर से हमें नष्ट कर सके ऐसा वरदान दीजिए. ब्रह्मा जी ने उन्हें तथास्तु कह दिया. वरदान के बाद तारकासुर के तीनों पुत्रों ने तीनों लोकों पर कब्जा कर लिया. उनके अत्याचार से देवता महादेव शिव के पास पहुंचे. उन्होंने तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली (त्रिपुरा) का वध करने के लिए प्रार्थना की. तब भोलेनाथ ने विश्वकर्मा से एक रथ का निर्माण करवाया. उस दिव्य रथ पर सवार होकर भगवान शिव दैत्यों का वध करने निकले. देव और राक्षसों के बीच युद्ध छिड़ गया और जब युद्ध के दौरान तीनों दैत्य यानी त्रिपुरा एक साथ आए तो भगवान शंकर ने एक तीर से ही तीनों का वध कर दिया. इसके बाद से ही भोलेनाथ को त्रिपुरारी कहा जाने लगा और देवताओं की विजय की खुशी में देव दीपावली मनाई जाने लगी.
- एक दूसरी कथा के अनुसार त्रिशंकु को राजर्षि विश्वामित्र ने अपने तपोबल से स्वर्ग पहुंचा दिया. देवतागण इससे उद्विग्न हो गए और त्रिशंकु को देवताओं ने स्वर्ग से भगा दिया. शापग्रस्त त्रिशंकु अधर में लटके रहे. त्रिशंकु को स्वर्ग से निष्कासित किए जाने से क्षुब्ध विश्वामित्र ने पृथ्वी-स्वर्ग आदि से मुक्त एक नई समूची सृष्टि की ही अपने तपोबल से रचना प्रारंभ कर दी. उन्होंने कुश, मिट्टी, ऊंट, बकरी-भेड़, नारियल, कोहड़ा, सिंघाड़ा आदि की रचना का क्रम प्रारंभ कर दिया. इसी क्रम में विश्वामित्र ने वर्तमान ब्रह्मा-विष्णु-महेश की प्रतिमा बनाकर उन्हें अभिमंत्रित कर उनमें प्राण फूंकना आरंभ किया. सारी सृष्टि डांवाडोल हो उठी. हर ओर कोहराम मच गया. हाहाकार के बीच देवताओं ने राजर्षि विश्वामित्र की पूजा की. महर्षि प्रसन्न हो गए और उन्होंने नई सृष्टि की रचना का अपना संकल्प वापस ले लिया. देवताओं और ऋषि-मुनियों में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई. पृथ्वी, स्वर्ग, पाताल सभी जगह इस अवसर पर दीपावली मनाई गई. मान्यता है कि तब से ही देव दीपावली मनाने की शुरुआत हुई.
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