देव दिवाली से जुड़ी सभी बातें जानिए यहां
नई दिल्ली:
Dev Deepawali 2018: कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के दिन गुरु पर्व (Guru Parv) के साथ-साथ देव दीपावली (Dev Deepawali) भी मनाई जाती है. इस दिन मंदिरों में भगवानों की प्रतिमा के आगे दीपक जलाए जाते हैं. खासकर, उत्तर प्रदेश के शहर वाराणसी के दिन देव दिवाली (Dev Diwali) के लिए भव्य आयोजन किया जाता है. लोग वाराणसी जाकर गंगा में डुबकी लगाते हैं और दीपदान (Deepdan) करते हैं. मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के दिन दीया जलाने से घर में यश और कीर्ति आती है. गंगा घाट पर देव दीपावली (Dev Deepawali) के दिन लाखों दीए को जलाए जाते हैं. सिर्फ गंगा किनारे ही नहीं इस दिन बनारस के सभी मंदिर भी दीयों की रोशनी से जगमगा उठते हैं.
Kartik Purnima 2018: 23 नवंबर को है कार्तिक पूर्णिमा, जानिए पूजा-विधि, महत्व और कथा
देव दीपावली कब है?
दिवाली के 15 दिन और देव उठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi) के 4 दिन बाद देव दीपावली मनाई जाती है. इस बार देव दिवाली 23 नवंबर को है. देव दिवाली के दिन ही कार्तिक पूर्णिमा और गुरु नानक जयंती मनाई जाती है.
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देव दीपावली की पूजा विधि
1. इस दिन सुबह-सुबह गंगा स्नान किया जाता है.
2. भगवान शिव और विष्णु जी की पूजा की जाती है.
3. पूजा के बाद सुबह और शाम को मिट्टी के दीपक में घी या तिल का तेल डालकर जलाया जाता है.
4. जो लोग गंगा स्नान ना कर पाएं को घर पर ही गंगाजल का छिड़काव कर स्नान करें.
5. स्नान करते समय ॐ नमः शिवाय का जप करते जाएं. या फिर नीचे दिए गए महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें.
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!
6. कार्तिक पूर्णिमा के दिन विष्णु जी की भी पूजा की जाती है. भगवान विष्णु जी की पूजा करते वक्त श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें या फिर भगवान विष्णु के इस मंत्र को पढ़ें.
'नमो स्तवन अनंताय सहस्त्र मूर्तये, सहस्त्रपादाक्षि शिरोरु बाहवे।
सहस्त्र नाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटि युग धारिणे नम:।।'
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देव दिवाली का महत्व
मान्यता है कि देव दीपावली पर दीपदान करना बहुत शुभ माना जाता है. इस दिन मिट्टी के दीपक जलाने से भगवान विष्णु की खास कृपा मिलती है. घर में धन, यश और कीर्ति आती है. इसीलिए इस दिन लोग विष्णु जी का ध्यान करते हुए मंदिर, पीपल, चौराहे या फिर नदी किनारे बड़ा दिया जलाते हैं. दीप खासकर मंदिरों से जलाए जाते हैं. इस दिन मंदिर दीयों की रोशनी से जगमगा उठता है. दीपदान मिट्टी के दीयों में घी या तिल का तेल डालकर करें.
देव दीपावली की कथा
हिंदू पौराणिक कथाओं में देव दिवाली की एक नहीं बल्कि कई कथाएं प्रचलित हैं.
पहली कथा - त्रिपुरासुर नाम के एक राक्षक का भगवान शिव के बड़े बेटे कार्तिक ने वध किया था. क्योंकि त्रिपुरासुर अपनी शक्तियों से सभी देवताओं को बार-बार परेशान किया करता था. इससे बचने के लिए सभी देवतागण भगवान शिव के पास पहुंचे और इस समस्या का हल मांगा. इस पर भगवान शिव के बड़े बेटे कार्तिक ने त्रिपुरासुर का वध किया और देवताओं को इस परेशानी से निकाला. इस खुशी में सभी देव-देवता शिव की नगरी काशी पहुंचे और वहां जाकर शिव जी को दीपदान किया. तभी से कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाई जाने लगी.
दूसरी कथा - एक और पौराणिक कथा के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार उत्पन्न हुआ था. इस खुशी में भी इस दिन भगवान विष्णु के लिए दीपदान रखते हैं.
तीसरा कथा - मान्यता है कि आषाढ़ की देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) के बाद चार महीनों की निद्रा के बाद देवउठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi) के दिन भगवान विष्णु नींद से जागते हैं. इसके साथ ही देवउठनी एकादशी के बाद आऩे वाली वाराणसी के दिन चतुर्दशी के दिन भगवान शिव जागते हैं. इस खुशी में भी सभी देवी-देवता धरती पर आकर काशी में दीप जलाते हैं.
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देव दीपावली कब है?
दिवाली के 15 दिन और देव उठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi) के 4 दिन बाद देव दीपावली मनाई जाती है. इस बार देव दिवाली 23 नवंबर को है. देव दिवाली के दिन ही कार्तिक पूर्णिमा और गुरु नानक जयंती मनाई जाती है.
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देव दीपावली की पूजा विधि
1. इस दिन सुबह-सुबह गंगा स्नान किया जाता है.
2. भगवान शिव और विष्णु जी की पूजा की जाती है.
3. पूजा के बाद सुबह और शाम को मिट्टी के दीपक में घी या तिल का तेल डालकर जलाया जाता है.
4. जो लोग गंगा स्नान ना कर पाएं को घर पर ही गंगाजल का छिड़काव कर स्नान करें.
5. स्नान करते समय ॐ नमः शिवाय का जप करते जाएं. या फिर नीचे दिए गए महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें.
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!
6. कार्तिक पूर्णिमा के दिन विष्णु जी की भी पूजा की जाती है. भगवान विष्णु जी की पूजा करते वक्त श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें या फिर भगवान विष्णु के इस मंत्र को पढ़ें.
'नमो स्तवन अनंताय सहस्त्र मूर्तये, सहस्त्रपादाक्षि शिरोरु बाहवे।
सहस्त्र नाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटि युग धारिणे नम:।।'
Guru Nanak Jayanti: जब लालची आदमी ने नहीं पिलाया गुरु नानक को पानी, फिर हुआ था ये
देव दिवाली का महत्व
मान्यता है कि देव दीपावली पर दीपदान करना बहुत शुभ माना जाता है. इस दिन मिट्टी के दीपक जलाने से भगवान विष्णु की खास कृपा मिलती है. घर में धन, यश और कीर्ति आती है. इसीलिए इस दिन लोग विष्णु जी का ध्यान करते हुए मंदिर, पीपल, चौराहे या फिर नदी किनारे बड़ा दिया जलाते हैं. दीप खासकर मंदिरों से जलाए जाते हैं. इस दिन मंदिर दीयों की रोशनी से जगमगा उठता है. दीपदान मिट्टी के दीयों में घी या तिल का तेल डालकर करें.
देव दीपावली की कथा
हिंदू पौराणिक कथाओं में देव दिवाली की एक नहीं बल्कि कई कथाएं प्रचलित हैं.
पहली कथा - त्रिपुरासुर नाम के एक राक्षक का भगवान शिव के बड़े बेटे कार्तिक ने वध किया था. क्योंकि त्रिपुरासुर अपनी शक्तियों से सभी देवताओं को बार-बार परेशान किया करता था. इससे बचने के लिए सभी देवतागण भगवान शिव के पास पहुंचे और इस समस्या का हल मांगा. इस पर भगवान शिव के बड़े बेटे कार्तिक ने त्रिपुरासुर का वध किया और देवताओं को इस परेशानी से निकाला. इस खुशी में सभी देव-देवता शिव की नगरी काशी पहुंचे और वहां जाकर शिव जी को दीपदान किया. तभी से कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाई जाने लगी.
दूसरी कथा - एक और पौराणिक कथा के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार उत्पन्न हुआ था. इस खुशी में भी इस दिन भगवान विष्णु के लिए दीपदान रखते हैं.
तीसरा कथा - मान्यता है कि आषाढ़ की देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) के बाद चार महीनों की निद्रा के बाद देवउठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi) के दिन भगवान विष्णु नींद से जागते हैं. इसके साथ ही देवउठनी एकादशी के बाद आऩे वाली वाराणसी के दिन चतुर्दशी के दिन भगवान शिव जागते हैं. इस खुशी में भी सभी देवी-देवता धरती पर आकर काशी में दीप जलाते हैं.
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