नवरात्रि पर पाना चाहते हैं धन-लाभ तो अपनाना शुरू कर दीजिए ये उपाय, मान्यतानुसार देवी मां होती हैं प्रसन्न 

Chaitra Navratri Upay: चैत्र नवरात्रि के दौरान मां लक्ष्मी की भी मिल सकती है कृपा. जानिए मान्यतानुसार किन उपायों से मिलता है लाभ. 

नवरात्रि पर पाना चाहते हैं धन-लाभ तो अपनाना शुरू कर दीजिए ये उपाय, मान्यतानुसार देवी मां होती हैं प्रसन्न 

Chaitra Navratri 2023: इस तरह नवरात्रि पर हो सकता है धन-लाभ. 

Navratri Puja: चैत्र नवरात्रि के दिन शुरू हो चुके हैं और इस दौरान भक्त मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना करते हैं. नवरात्रि के दौरान रोजाना पूजा-पाठ किया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह समय देवी मां को प्रसन्न करने के लिए एकदम उचित होता है और इस समय में ही भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं. माना जाता है कि नवरात्रि (Navratri) के दौरान यदि भक्त कुछ खास उपाय करते हैं तो मां लक्ष्मी (Ma Lakshmi) की भी विशेष कृपा मिल सकती है और जातक को धन-लाभ मिल सकता है. जानिए नवरात्रि के दौरान किन कार्यों और उपायों से करें माता रानी को प्रसन्न. 

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चैत्र नवरात्रि के उपाय | Chaitra Navratri Upay 

सिंदूर का इस्तेमाल 

धन-लाभ और घर में सुख-समृद्धि लाने के लिए नवरात्रि के नौ दिन पूजा में सिंदूर का इस्तेमाल किया जा सकता है. सिंदूर को पूजा की थाली में रख सकते हैं या माता को दूर्वा से तिलक लगा सकते हैं. ऐसा करना बेहद शुभ माना जाता है. 

शुक्रवार के दिन पूजा 

नवरात्रि के दौरान जो शुक्रवार पड़ रहा है उसमें महालक्ष्मी की पूजा बेहद शुभ मानी जाती है. मान्यतानुसार मां लक्ष्मी के समक्ष चावल अर्पित करने चाहिए और साथ ही चावल से बनी खीर भी मां को भोग (Bhog) में लगाई जा सकती है. इससे घर में सुख-समृद्धि के द्वार खुलते हैं. 

गुड़हल के फूल 

घर में सुख-समृद्धि के द्वार खोलने के लिए गुड़हल के फूलों के उपाय किए जा सकते हैं. गुड़हल के फूल नवरात्रि की पूजा सामग्री में शामिल किए जा सकते हैं. इसके अतिरिक्त, गुड़हल के फूल को पर्स में रखा जा सकता है. अपनी अलमारी या धन रखने वाले डिब्बे में भी गुड़हल के फूल रखे जा सकते हैं. इन फूलों को नवरात्रि पर किए जाने वाले हवन में भी शामिल कर सकते हैं. 

उपवास रखना 

माना जाता है कि नवरात्रि के दौरान देवी मां के लिए उपवास (Fast) रखना अत्यधिक शुभ होता है. उपवास रखने वाले भक्तों पर मां लक्ष्मी की विशेष कृपा बरसती है और मां लक्ष्मी जातकों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर उनके जीवन के धन संबंधी कष्टों का निवारण कर देती हैं. 

लक्ष्मी चालीसा 

मान्यतानुसार नवरात्रि के दौरान लक्ष्मी चालीसा का पाठ धन-लाभ प्रदान करता है. 

तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदम्बा । सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥
तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥

क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥

चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥

तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥

तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥
ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥

लक्ष्मी माता की आरती, ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता

जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥
पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥

पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥

बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥

तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥
रूप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)