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Margashirsha Purnima 2025: अगहन पूर्णिमा को क्यों कहते हैं बत्तीसी पूर्णिमा? जानें इसकी पूजा विधि और बड़े लाभ

Battisi Purnima 2025: मार्गशीर्ष पूर्णिमा या फिर कहें अगहन पूर्णिमा को बत्तीसी पूर्णिमा क्यों कहते हैं? इस पूर्णिमा पर आखिर किस देवी या देवता की पूजा करने पर साधक को मिलता है 32 गुना ज्यादा पुण्यफल? बत्तीसी पूर्णिमा की पूजा विधि और धार्मिक महत्व जानने के लिए पढ़ें ये लेख.

Margashirsha Purnima 2025: अगहन पूर्णिमा को क्यों कहते हैं बत्तीसी पूर्णिमा? जानें इसकी पूजा विधि और बड़े लाभ
Battisi Purnima 2025: बत्तीसी पूर्णिमा की पूजा विधि एवं लाभ
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Battisi Purnima Kab Hai 2025: सनातन परंपरा में किसी भी मास के शुक्लपक्ष की पंद्रहवीं तिथि को पूर्णिमा कहते हैं. इस तिथि का सनातन परंपरा में बहुत ज्यादा महत्व माना गया है क्योंकि यह भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और चंद्र देवता की पूजा के लिए समर्पित है. हिंदू मान्यता के अनुसार किसी भी मास की पूर्णिमा श्रीहरि की पूजा करने पर व्यक्ति को सभी पापों और दोषों से मुक्ति मिल जाती है, लेकिन इसका महत्व तब और भी ज्यादा बढ़ जाता है, जब यह मार्गशीर्ष मास में पड़ती है क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण ने इस मास को अपना ही स्वरूप बताया है. साल की आखिरी पूर्णिमा को बत्तीसी पूर्णिमा क्यों कहते हैं और क्या है इसका महत्व, आइए इसे विस्तार से जानते हैं.

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बत्तीस पूर्णिमा व्रत क्या है

हिंदू मान्यता के अनुसार सुख-सौभाग्य की कामना लिए हुए अगहन महीने की पूर्णिमा से बत्तीसी पूर्णिमा व्रत की शुरुआत होती है और इसे कुल 32 पूर्णिमा तक रखे जाने का विधान है. मान्यता है कि इस व्रत को विधि-विधान से करने पर न सिर्फ साधक के सभी कष्ट दूर और सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं, बल्कि उसे बत्तीस गुना ज्यादा फल मिलता है. यही कारण है कि मार्गशीर्ष पूर्णिमा के व्रत को बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है. यह व्रत इस साल 04 दिसंबर 2025, बुधवार के दिन रखा जाएगा.

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बत्तीसी पूर्णिमा व्रत

हिंदू मान्यता के अनुसार बत्तीसी पूर्णिमा व्रत वाले दिन व्यक्ति को प्रात:काल स्नान-ध्यान करने के बाद अपने पूजा स्थान पर न सिर्फ भगवान श्री विष्णु और माता लक्ष्मी की बल्कि भगवान शिव की भी इस दिन विशेष पूजा करनी चाहिए. बत्तीसी पूर्णिमा व्रत वाले दिन श्री हरि की फल-फूल, धूप-दीप, तुलसी-मिष्ठान आदि अर्पित करने के बाद पूर्णिमा व्रत की कथा कहें या सुने और अंत में भगवान विष्णु की आरती करना न भूलें. बत्तीसी पूर्णिमा के उपवास में अन्न का सेवन नहीं किया जाता है और साधक सिर्फ इस दिन फलाहार करता है. हिंदू मान्यता के अनुसार जब 32वीं पूर्णिमा आए तो साधक को इसका विधि-विधान से उद्यापन करके ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद दान-दक्षिणा देना चाहिए.

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बत्तीस पूर्णिमा व्रत के लाभ

हिंदू मान्यता के अनुसार बत्तीस पूर्णिमा का व्रत जीवन से जुड़े रोग, शोक और दोष आदि को दूर करके सुख-सौभाग्य और संपत्ति दिलाता है. हिंदू मान्यता के अनुसार बत्तीस पूर्णिमा व्रत के पुण्य प्रभाव से व्यक्ति की आर्थिक तंगी दूर होती है और उस पर माता लक्ष्मी की पूरी क1पा बरसती है. मान्यता है कि इस व्रत के शुभ फल से विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं. शादी-शुदा लोगों को संतान सुख प्राप्त होता है. रोजी-रोजगार का लाभ मिलता है. इस व्रत के पुण्यफल से साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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