भारत ही नहीं पाकिस्तान में भी मनाई जाती है बसंत पंचमी
नई दिल्ली:
दक्षिणी दिल्ली में स्थित है हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह. वह चिश्ती घराने के चौथे संत थे. इनके एक सबसे प्रसिद्ध शिष्य थे अमीर खुसरो, जिन्हें पहले उर्दू शायर की उपाधि प्राप्त है. दिल्ली में इन दोनों शिष्य और गुरु की दरगाह और मकबरा आमने-सामने ही बने हुए हैं. यहां हर साल बसंत पंचमी बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है. जी हां, हरे रंग की चादर चढ़ाने वाले इन स्थानों पर बसंत पंचमी के दिन पीले फूलों की चादर चढ़ा दी जाती है, लोग बैठकर बसंत के गाने गाते हैं. लेकिन क्या है इसकी वजह चलिए आपको बताते हैं.
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तकीउद्दीन नूह की हुई मौत
संत हजरत निजामुद्दीन औलिया का एक भांजा था तकीउद्दीन नूह, जिससे वो बहुत प्यार करते थे. लेकिन बीमारी के चलते उसकी मृत्यु हो गई. इस बात से हजरत निजामुद्दीन बहुत दुखी हुए और उसकी याद में उनकी मानसिक स्थिति खराब होने लगी. वो ना किसी से बात करते थे और ना ही हंसते थे. अमीर खुसरो उन्हें फिर से हंसता हुआ देखना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने कई प्रयास भी किए लेकिन कुछ ना हुआ.
वहीं, एक दिन अमीर खुसरो ने कई औरतों को पीले रंग की साड़ी पहनें, हाथ में गेंदे के पीले फूल लिये और गाना गाते हुए देखा. वह सभी औरतें बहुत खुशी के साथ गा बजा रही थी. ये मौसम वंसत का था, इन औरतों के पीले वस्त्रों की तरह खेतों में भी पीले सरसों के खेत लहलहा रहे थे. हर तरफ मन को मोह लेने वाली हरियाली थी और सभी इस मौसम में बहुत खुश नज़र आ रहे थे. तभी अमीर खुसरो के दिमाग में एक विचार आया कि क्यों ना वो ये सब अपने गुरु के लिये भी करें.
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तभी उन्होंने एक पीले रंग का घाघरा और दुपट्टा पहना, गले में ढोलक डाला और हाथों में पीले फूल लेकर वंसत के गाने गाने लगे. अपने इस शिष्य को औरतों के भेष में गाते बजाते देख हजरत निजामुद्दीन औलिया अपनी हंसी रोक नहीं पाए. इसी दिन को याद कर आज भी उनकी दरगाह पर हर साल बसंत पंचमी मनाई जाती है.
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पाकिस्तान में बसंत पंचमी
वैसे तो बसंत पंचमी भारत में मनाया जाने वाला त्योहार है, लेकिन यह पाकिस्तान में भी लोग बड़ी धूमधाम से मनाते हैं. इसकी वजह है वहां रहने वाले पंजाबी. क्योंकि यह त्योहार उत्तरी भारत में बहुत प्रसिद्ध है, वहां के किसान इसे बड़े ही हर्षोउल्लास से मनाते हैं. ऐसे ही पाकिस्तान में रहने वाले पंजाबी भी इसे पंतग उड़ाकर, पीले फूलों के साथ उत्सव मनाते हैं. लेकिन पाकिस्तान की कई जगहों पर मांझे से पतंग उड़ाना मना है. इसकी वजह आतंकी गतिविधियां बताई जाती हैं. पाकिस्तानी प्रसाशन का मानना है कि पतंग उड़ाने के लिए जिन तारों का इस्तेमाल करते हैं उनमें कई बार लोग ऐसी चीजें मिला देते हैं जो लोगों के लिए जानलेवा बन जाती है. इसीलिए पाकिस्तान की कई जगहों पर इस त्योहार को गैर-इस्लामिक मानते है और इसे बैन किया हुआ है.
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वहीं, एक दिन अमीर खुसरो ने कई औरतों को पीले रंग की साड़ी पहनें, हाथ में गेंदे के पीले फूल लिये और गाना गाते हुए देखा. वह सभी औरतें बहुत खुशी के साथ गा बजा रही थी. ये मौसम वंसत का था, इन औरतों के पीले वस्त्रों की तरह खेतों में भी पीले सरसों के खेत लहलहा रहे थे. हर तरफ मन को मोह लेने वाली हरियाली थी और सभी इस मौसम में बहुत खुश नज़र आ रहे थे. तभी अमीर खुसरो के दिमाग में एक विचार आया कि क्यों ना वो ये सब अपने गुरु के लिये भी करें.
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तभी उन्होंने एक पीले रंग का घाघरा और दुपट्टा पहना, गले में ढोलक डाला और हाथों में पीले फूल लेकर वंसत के गाने गाने लगे. अपने इस शिष्य को औरतों के भेष में गाते बजाते देख हजरत निजामुद्दीन औलिया अपनी हंसी रोक नहीं पाए. इसी दिन को याद कर आज भी उनकी दरगाह पर हर साल बसंत पंचमी मनाई जाती है.
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पाकिस्तान में बसंत पंचमी
वैसे तो बसंत पंचमी भारत में मनाया जाने वाला त्योहार है, लेकिन यह पाकिस्तान में भी लोग बड़ी धूमधाम से मनाते हैं. इसकी वजह है वहां रहने वाले पंजाबी. क्योंकि यह त्योहार उत्तरी भारत में बहुत प्रसिद्ध है, वहां के किसान इसे बड़े ही हर्षोउल्लास से मनाते हैं. ऐसे ही पाकिस्तान में रहने वाले पंजाबी भी इसे पंतग उड़ाकर, पीले फूलों के साथ उत्सव मनाते हैं. लेकिन पाकिस्तान की कई जगहों पर मांझे से पतंग उड़ाना मना है. इसकी वजह आतंकी गतिविधियां बताई जाती हैं. पाकिस्तानी प्रसाशन का मानना है कि पतंग उड़ाने के लिए जिन तारों का इस्तेमाल करते हैं उनमें कई बार लोग ऐसी चीजें मिला देते हैं जो लोगों के लिए जानलेवा बन जाती है. इसीलिए पाकिस्तान की कई जगहों पर इस त्योहार को गैर-इस्लामिक मानते है और इसे बैन किया हुआ है.
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