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This Article is From Jul 30, 2020

Bakrid 2020: इस दिन मनाई जाएगी बकरीद, जानें ईद-उल-अजहा पर क्यों दी जाती है कुर्बानी

Eid ul Adha: इस्लाम में बकरीद का विशेष महत्व है. इस्लामिक मान्यता के मुताबिक हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे हजरत इस्माइल को इसी दिन खुदा के हुक्म पर खुदा की राह में कुर्बान किया था. तब खुदा ने उनके जज्बे को देखकर उनके बेटे को जीवन दान दिया था.

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Bakrid 2020: इस दिन मनाई जाएगी बकरीद, जानें ईद-उल-अजहा पर क्यों दी जाती है कुर्बानी
Eid ul Adha: 31 जुलाई को मनाई जाएगी बकरीद.

बकरा ईद (Bakra Eid), बकरीद (Bakreed), ईद-उल-अजहा (Eid Al Adha) या फिर ईद-उल जुहा (Eid Ul Adha) इस साल देशभर में 1 अगस्त को मनाई जाएगी. इस्लामिंक कैलेंडर (Islamic Calendar) के अनुसार 12वें महीने की 10 तारीख को बकरीद मनाई जाती है. हालांकि, साउदी अरब में 31 जुलाई को ही बकरीद मनाई जाएगी. बकरीद, रमजान (Ramadan) के पवित्र महीने के खत्म होने के लगभग 70 दिनों के बाद मनाई जाती है. बता दें, बकरीद पर कुर्बानी दी जाती है और मीठी ईद के बाद यह इस्लाम धर्म का प्रमुख त्योहार होता है. 

बकरीद, ईद-उल-अजहा का महत्व
बकरीद का दिन फर्ज-ए-कुर्बानी का दिन होता है. इस्लाम में मुस्लिमों और गरीबों का खास ध्यान रखने की परंपरा है. इस वजह से बकरीद पर गरीबों का विशेष ध्यान रखा जाता है. इस दिन कुर्बानी के बाद गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं. इन तीन हिस्सों में खुद के लिए एक हिस्सा रखा जाता है, एक हिस्सा पड़ोसियों और रिश्तेदारों को बांटा जाता है और एक हिस्सा गरीब और जरूरतमंदों को बांट दिया जाता है. इसके जरिए मुस्लिम लोग पैगाम देते हैं कि वो अपने दिल की करीब चीज भी दूसरों की बेहतरी के लिए अल्लाह की राह में कुर्बान कर देते हैं. 

क्यों मनाते हैं बकरीद
इस्लाम में बकरीद का विशेष महत्व है. इस्लामिक मान्यता के मुताबिक हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे हजरत इस्माइल को इसी दिन खुदा के हुक्म पर खुदा की राह में कुर्बान किया था. तब खुदा ने उनके जज्बे को देखकर उनके बेटे को जीवन दान दिया था. इस पर्व को हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में ही मनाया जाता है. इसके बाद अल्लाह के हुक्म के साथ इंसानों की जगह जानवरों की कुर्बानी देने का इस्लामिक कानून शुरू किया गया. 

क्यों देते हैं कुर्बानी?
दरअसल, हजरत इब्राहिम ने जब कुर्बानी दी थी तो उन्हें लगा कि उनकी भावनाएं बीच में आ सकती हैं और इस वजह से उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध कर कुर्बानी दी थी. इसके बाद जब उन्होंने अपनी आंखों से पट्टी हटाई तो उनका पुत्र उनके सामने जीवित खड़ा था. बेदी पर कटा हुआ दुम्बा (सउदी में पाया जाने वाला भेड़ जैसा जानवर) पड़ा था. इसी वजह से बकरीद पर कुर्बानी देने की प्रथा की शुरुआत हुई.

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