
Badrinath kapat closing rituals : इस साल 30 अप्रैल अक्षय तृतीया के दिन से चार धाम यात्रा शुरू हो गई है. 4 मई को बद्रीनाथ के कपाट भक्तों के लिए अगले 6 महीने के लिए खोल दिए गए. हर दिन मीलों की पैदल दूरी तय करके दर्शन पूजन के लिए मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. मान्यता है चार धाम की यात्रा करने से सारे पाप धुल जाते हैं. यही कारण हर साल लाखों की संख्या में भक्त चार धाम यात्रा में शामिल होते हैं. आज के इस लेख में हम आपको बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद होने की बहुत ही रोचक प्रक्रिया के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में बहुत कम लोगों को पता है.
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बद्रीनाथ धाम मंदिर बंद करने से पहले क्या किया जाता है
बद्रीनाथ धाम का कपाट बंद होने से पहले उसे कई कुंतल फूलों से सजाया जाता है और मंदिर के प्रांगण में कई वैदिक रस्म निभाई जाती है. मंदिर बंद करने से पहले भगवान बद्री विशाल को गाय के घी से कंबल गीला करके उढ़ाया जाता है, जो कच्चे सूत से बना होता है. साथ ही श्री हरि के बगल में अगले 6 महीने के लिए देवी लक्ष्मी को विराजमान किया जाता है. आपको बता दें कि मंदिर के मुख्य पुजारी कपाट बंद होने से पहले देवी लक्ष्मी को भगवान विष्णु के बगल में देवी पार्वती का वेश धारण करके विराजमान करते हैं. देवी पार्वती देवी लक्ष्मी की सखी हैं.
6 माह के लिए गर्भ गृह में दीप जलाया जाता हैइसके अलावा कपाट बंद करने से पहले श्रीहरि के समक्ष गर्भ गृह में एक दीप जलाया जाता है, जो 6 माह बाद कपाट खुलने तक जलता रहता है. बद्रीनाथ मंदिर के गर्भ गृह बंद होने के बाद बद्री विशाल की डोली को जोशीमठ स्थित नरसिंह मंदिर में स्थापित किया जाता है. जहां पूरी ठंड उनके चल विग्रह की पूजा होती है. फिर बद्रीनाथ धाम के पट खुलने पर इस डोली को बड़ी धूमधाम से वापस बद्रीनाथ में स्थापित किया जाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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