मंदार पर्वत को क्यों माना जाता है 3 धर्मों का संगम स्थल, समुद्र मंथन से लेकर महाभारत तक जुड़ी हैं मान्यताएं

हिंदू धर्म के साथ-साथ बौद्ध धर्म और सफा धर्म को मानने वाले लोगों के लिए भी मंदार पर्वत एक बड़ा तीर्थ स्थल है. 700 फीट ऊंचे इस पर्वत के बारे में पुराणों और महाभारत में कई कहानियां प्रचलित हैं. बताया जाता है कि इस पहाड़ से देवता और असुर दोनों ने मिलकर मथनी की तरह महके रत्नों के साथ अमृत प्राप्त किया था.

मंदार पर्वत को क्यों माना जाता है 3 धर्मों का संगम स्थल, समुद्र मंथन से लेकर महाभारत तक जुड़ी हैं मान्यताएं

जानिए मंदार पर्वत से जुड़ी मान्यताएं

नई दिल्ली:

मंदार पर्वत हिन्दुओं के लिए पवित्र स्थलों में से एक है. मंदार पर्वत को तीन धर्मों का संगम कहा जाता है. हिंदू धर्म के साथ-साथ बौद्ध धर्म और सफा धर्म को मानने वाले लोगों के लिए भी यह एक बड़ा तीर्थ स्थल है. 700 फीट ऊंचे इस पर्वत के बारे में पुराणों और महाभारत में कई कहानियां प्रचलित हैं. बिहार के भागलपुर से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर बसे बांका जिले में 'मंदार पर्वत' स्थित है. मंदार पर्वत से संबंधित एक कथा यह भी है कि देवताओं ने अमृत प्राप्ति के लिए दैत्यों के साथ मिलकर मंदार पर्वत से ही समुद्र मंथन किया था, जिसमें हलाहल विष के साथ 14 रत्न निकले थे. बताया जाता है कि इस पहाड़ से देवता और असुर दोनों ने मिलकर मथनी की तरह महके रत्नों के साथ अमृत प्राप्त किया था. धार्मिक ग्रंथों में समुद्र मंथन का विस्तार से वर्णन किया गया है.

कहा जाता है कि राजा बलि जब तीनों लोकों के स्वामी बने थे, उस दौरान स्वर्ग के देवता इंद्र समेत सभी देवता और ऋषियों ने भगवान श्री हरि विष्णु से तीनों लोकों की रक्षा की प्रार्थना की थी. देवों द्वारा याचना करने पर श्री हरि ने उन्हें समुद्र मंथन करने की युक्ति दी थी. भगवान विष्णु ने देवों को कहा कि समुद्र मंथन से अमृत की प्राप्ति होगी, जिसके पान से देवता अमर हो जाएंगे. कालांतर में क्षीर सागर में वासुकी नाग और मंदार पर्वत की सहायता से समुद्र मंथन किया गया. बताया जाता है कि इस मंथन से 14 रत्न, विष और अमृत प्राप्त हुए थे. मंथन के समय अमृत का पान देवताओं ने किया और विष का पान भगवान शिव ने. कहते हैं मंथन के बाद दानवों और देवताओं के बीच महासंग्राम भी हुआ, जिसमें देवताओं की विजय हुई. कालांतर में जिस पर्वत पर समुद्र मंथन हुआ, वर्तमान में वह बिहार के बांका जिले में अवस्थित है.

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मंदार पर्वत के पृथ्वी पर अवस्थित होने की अनोखी कथा

चिरकाल में मधु और कैटभ नामक दो दैत्य थे, जिनके अत्यचार से तीनों लोकों पर हाहाकार मचा हुआ था. भगवान श्री हरि विष्णु ने मधु और कैटभ राक्षस को पराजित कर उनका वध कर दोनों के धड़ को दो विपरीत दिशा में फेंक दिया, जिसके बावजूद दोनों के धर एकजुट होकर मधु और कैटभ बन गए. इसके उपरांत वापस से तीनों लोकों में इनका आतंक शुरू हो गया. पुराणों के अनुसार, यह लड़ाई लगभग दस हजार साल तक चली थी. इस दौरान श्री हरि विष्णु ने आदिशक्ति का आह्वान किया और मां दुर्गा ने मधु और कैटभ का वध कर दिया.

कालांतर में भगवान नारायण ने मधु और कैटभ को पृथ्वी लोक पर लाकर मंदार पर्वत के नीचे दबा दिया, ताकि वह फिर से उत्पन्न न हो सके. कहा जाता है कि मधु और कैटभ श्री हरि से मकर संक्रांति के दिन उनसे दर्शन देने का वरदान मांगा. दानवों के इस वरदान को श्री हरि ने स्वीकार कर लिया. मान्यता है कि कालांतर से भगवान नारायण मकर संक्रांति के दिन मंदार पर्वत दानवों को दर्शन देने आते हैं.

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बौद्ध और सफा धर्म का तीर्थ स्थल है मंदार पर्वत

जैन धर्म के भगवान वाशु पूज्य का निवास स्थल मंदार पर्वत माना जाता है. बता दें कि मंदार पहाड़ पर बने मंदिर में जैन धर्म के गुरुओं के पद चिन्ह विद्यमान हैं. जैन धर्म के 12 में तीर्थंकर वाशु पूज्य का मंदिर है, जिसमें करीब 3 सहस्त्र साल पुरानी चरण पादुका मौजूद है. जिनके दर्शन के लिए लोग देश-विदेश से यहां आते हैं. इसी तरह 1920 में सफा धर्म के गुरु चंद्र दास जी महाराज ने यहां रहना शुरू किया था. कहते हैं उन्हें यहीं ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. यहां उन्होंने 1934 में एक कुटिया का निर्माण कराया था.

मंदार पर्वत में है सीता कुंड

बता दें कि मंदार पर्वत पर ही सीता कुंड भी है. सीता कुंड से संबंधित कई कहानियों प्रचलित हैं. कहा जाता है कि भगवान श्री राम जब वनवास गए थे, तब वह मंदार पर्वत पर भी रुके थे. कहते हैं यहीं माता सीता ने भगवान भास्कर की उपासना की थी. माना जाता है कि पर्वत के जिस जलकुंड में माता सीता ने भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया था, उसका नाम सीताकुंड पड़ गया.

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मंदार पर्वत पर स्थित है पापहरणी तालाब

मंदार पर्वत पर पापहरणी तालाब स्थित है. प्रचलित कहानियों के अनुसार, कर्नाटक के एक कुष्ठपीड़ित चोलवंशीय राजा ने मकर संक्रांति के दिन इस तालाब में स्नान किया था, जिसके बाद से उनका स्वास्थ ठीक हो गया था, तभी से इसे पापहरणी के रूप में जाना जाता है. बता दें कि इसके पूर्व पापहरणी 'मनोहर कुंड' कुंड के नाम से जाना जाता था.

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तालाब के बीच स्थित है लक्ष्मी-विष्णु मंदिर

बता दें कि पापहरणी तालाब के बीचों-बीच माता लक्ष्मी और भगवान श्री हरि विष्णु का मंदिर है. हर मकर संक्रांति पर यहां मेले का आयोजन होता है. मेले के पहले यात्रा भी होती है, जिसमें लाखों लोग शामिल होते हैं.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)