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Akshaya Navami 2025 Katha: आंवले के पेड़ की क्यों होती है पूजा? पढ़ें अक्षय नवमी व्रत की पूरी कथा 

Akshay Navami Vrat Katha: आज कार्तिक मास के शुकलपक्ष की नवमी तिथि पर अक्षय नवमी का पावन पर्व मनाया जा रहा है. इसे सनातन परंपरा में आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है. आज इस व्रत में जिस कथा को कहे बगैर पूजा अधूरी मानी जाती है, उसे जानने के लिए पढ़ें ये लेख.

Akshaya Navami 2025 Katha: आंवले के पेड़ की क्यों होती है पूजा? पढ़ें अक्षय नवमी व्रत की पूरी कथा 
Akshay Navami 2025: अक्षय नवमी व्रत की कथा
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Amla Navami Vrat Story in Hindi: हिंदू धर्म में कार्तिक मास के शुक्लपक्ष में पड़ने वाली नवमी तिथि का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है क्योंकि इसी दिन अक्षय नवमी का महापर्व मनाया जाता है. हिंदू मान्यता का अक्षय नवमी जिसे आंवला नवमी भी कहते हैं, उसमें विधि-विधान से पूजा, जप, तप और व्रत आदि करने से व्यक्ति की सभी कामनाएं पूरी होती हैं. मान्यता ये भी है कि इस व्रत का पुण्यफल कभी क्षय नहीं होता है, इसलिए इसे अक्षय नवमी कहते हैं.

सनातन परंपरा का यह पावन पर्व प्रकृति की पूजा से जुड़ा हुआ है क्योंकि इस दिन आवंले के पेड़ की विशेष रूप से पूजा होती है. आइए जानते हैं कि अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा का क्या महत्व है और इसकी शुरुआत कब और किसने की थी.

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आंवला नवमी व्रत की कथा — 1

हिंदू मान्यता के अनुसार एक बार धन की देवी माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करने लिए पहुंचीं. पृथ्वी पर भ्रमण करते हुए उन्हें कहीं पर लोग जगत के पालनहार भगवान श्री विष्णु की तो कहीं पर देवों के देव महादेव की पूजा करते हुए नजर आए. ऐसे में उनके मन में ख्याल आया कि आखिर शिव और विष्णु दोनों की एक साथ कैसे पूजा की जा सकती है. विशेष तौर पर तब जब भगवान शिव को बेलपत्र और भगवान विष्णु को तुलसी पत्र चढ़ता हो.

इसके बाद उन्हें ध्यान आया कि पृथ्वी पर सिर्फ एक मात्र पेड़ है, जिसे फल में तुलसी और बेलपत्र दोनों के गुण पाए जाते हैं. जिसके बाद उन्होंने आंवले के पेड़ को भगवान शिव और श्री हरि का प्रतीक मान पूजन किया. मान्यता है कि जिस दिन माता लक्ष्मी ने यह पूजन किया वह कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की नवमी थी. तब से आज तक यह पूजा आंवला नवमी या फिर अक्षय नवमी की होती चली आ रही है.

आंवला नवमी व्रत की कथा — 2

हिंदू मान्यता के अनुसार एक राजा काफी धार्मिक प्रवृत्ति का था और वह प्रतिदिन आंवला दान करने का प्रण लिया था. वह प्रतिदिन आंवला दान करने के बाद ही अन्न का सेवन करता था. उसकी इस आदत के कारण लोग उसे आंवलया राजा कहते थे. एक दिन उसके बहू-बेटे ने सोचा कि राजा अगर ऐसे ही प्रतिदिन आंवला लोगों को मुफ्त में बांटते रहे तो एक दिन पूरा खजाना ही खाली हो जाएगा. ऐसा सोचते हुए उन्होंने राजा को आंवला दान करने से रोक दिया.

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इसके बाद राजा इतना दुखी हुआ कि वह सबकुछ छोड़कर अपनी रानी के साथ जंगल में चला गया. चूंकि जंगल में उसे कोई आंवले का पेड़ नहीं मिला तो वह दान नहीं कर पाया और इसलिए उसने सात दिनों तक कुछ भी नहीं खाया. इसके बाद भगवान विष्णु को लगा कि यदि उन्होंने अपने भक्त का मान या फिर कहें सत नहीं रखा तो उसका विश्वास उठ जाएगा. इकसे बाद श्री हरि ने अपनी माया से जंगल में ही भव्य महल और बाग- बगीचे बना दिए, जहां पर ढेर सारे आंवले के पेड़ लगे हुए थे. इसके बाद राजा अपनी रानी के साथ वहीं रहने लगे.

उधर राजा के बेटे बहू का राज्य शत्रुओं ने छीन लिया और वे दर-दर भटकते हुए अपने पिता के राज्य में पहुंच गये और उन्हीं के पास काम करने लगे. एक दिन जब उसकी बहू अपने रानी की सेवा कर रही थी तो उसने उनकी पीठ पर मसा देखा तो रोने लगी कि उसकी सास के पीठ पर भी ऐसा ही मसा था. इसके बाद रानी ने अपनी बहू को पहचान लिया और उसे आंवला के पेड़ की पूजा और उसके दान की महिमा बताते हुए धर्म की राह पर चलने की सीख दी. श्री हरि जैसा राजा और रानी का सत रखा वैसा हमारा भी सत रखना.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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