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Explainer: इधर तूफान, उधर पाकिस्तान, कैसे बचा इंडिगो का विमान, जानिए पूरी कहानी

सभी यात्री और चालक दल विमान से सकुशल नीचे उतर आए. लेकिन विमान उतरने के बाद ये अहसास और गहरा हुआ कि जिस तूफ़ान में ये विमान फंसा वो कितना ख़तरनाक था. तूफ़ान के कारण विमान के अगले हिस्से में काफी नुकसान हो गया. विमान का नोज कोन यानी उसके सबसे अगले हिस्से को तूफान के कारण कितना नुकसान पहुंचा.

दो देशों के बीच तनाव के नतीजे कितनी तरह के हो सकते हैं. इसका एक उदाहरण आप बीते बुधवार 21 मई को देख सकते हैं, जब इंडिगो एयरलाइंस का एक विमान तूफान में बुरी तरह फंस गया. तूफान से बचने के लिए उसे रास्ता थोड़ा बदलना था. लेकिन बाईं ओर जाना संभव नहीं था, क्योंकि वहां पाकिस्तान का एयरस्पेस शुरू हो गया था. ऐसे में जैसे-तैसे पायलट की समझबूझ के कारण ये विमान श्रीनगर हवाई अड्डे पर उतर पाया. ये विमान एयर टर्ब्युलेंस में फंस गया था.

इंडिगो की विमान संख्या 6E2142 के अंदर यात्रियों में मची अफरातफरी और घबराहट, जब विमान तूफान में फंस कर बुरी तरह हिचकोले खाने लगा. दिल्ली से श्रीनगर जा रहे इस विमान में चालक दल के अलावा 227 यात्री सवार थे. केबिन क्रू के कहने पर यात्रियों ने अपनी सीट बेल्ट बांध ली थी. लेकिन फिर भी विमान इतने हिचकोले खा रहा था कि यात्रियों को कुछ देर के लिए लगा कि विमान किसी दुर्घटना का शिकार न हो जाए. लेकिन पायलट की समझबूझ से ये विमान कुछ देर बाद श्रीनगर एयरपोर्ट पर उतर गया.

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तूफान के कारण कितना नुकसान पहुंचा?

सभी यात्री और चालक दल विमान से सकुशल नीचे उतर आए. लेकिन विमान उतरने के बाद ये अहसास और गहरा हुआ कि जिस तूफ़ान में ये विमान फंसा वो कितना ख़तरनाक था. तूफ़ान के कारण विमान के अगले हिस्से में काफी नुकसान हो गया. विमान का नोज कोन यानी उसके सबसे अगले हिस्से को तूफान के कारण कितना नुकसान पहुंचा. जानकारों के मुताबिक तूफान और बारिश में मौजूद ओलों के टकराने से विमान का अगला हिस्सा इतनी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया. ऐसे में विमान को कुशलता के साथ एयरपोर्ट पर उतार देना अपने पायलट की बड़ी कामयाबी मानी जानी चाहिए.

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विमान के साथ दरअसल हुआ क्या था?

ये विमान बुधवार शाम दिल्ली से श्रीनगर के लिए उड़ा था. कुछ देर बाद जब विमान पठानकोट के ऊपर करीब 36 हजार फीट की ऊंचाई पर था तो पायलट को इस बात का पता चल गया कि विमान के दायीं ओर एक बड़ा तूफ़ान उमड़ रहा है और विमान उसमें फंस सकता है. लोगों को याद होगा कि उसी दिन उत्तर पश्चिम भारत में उत्तर प्रदेश से लेकर पंजाब तक शाम के वक़्त अचानक एक तेज़ तूफ़ान आ गया था. वैसे विमान अक्सर इस तरह की तेज हवाओं जिसे एयर टर्ब्युलेंस कहते हैं उनके बीच फंसने पर कुछ हिचकोले खाने के बाद निकल ही जाता है. लेकिन ये तूफ़ान बड़ा था. ऐसे में विमान को दायीं ओर ले जाना ठीक नहीं था. वापस लौटने की कोशिश की गई लेकिन उसकी भी तब तक गुंजाइश नहीं बची थी. लिहाज़ा पायलट के सामने विमान का रास्ता बदलकर उसे बायीं ओर मोड़ने का ही सुरक्षित विकल्प था. लेकिन बायीं ओर पाकिस्तान की वायुसीमा शुरू हो रही थी. ऐसे में पायलट ने बायीं ओर के सबसे करीबी एयरपोर्ट लाहौर एयरपोर्ट के एयर ट्रैफिक कंट्रोल से संपर्क कर रास्ता बदलने की इजाजत मांगी. लेकिन पायलट का ये आग्रह लाहौर एयरपोर्ट के एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल की ओर से ठुकरा दिया गया. आमतौर पर मानवीय आधार पर इस तरह के आग्रह मान लिए जाते हैं. लेकिन पहलगाम आतंकी हमले के बाद से भारत की कार्रवाई के जवाब में पाकिस्तान ने भी अपना एयरस्पेस भारत के विमानों के लिए बंद किया हुआ है. लिहाज़ा इंडिगो के विमान को रास्ता बदलने की इजाजत नहीं मिली. ऐसे में पायलट के सामने दायीं ओर तूफीन के बीच आगे बढ़ने के अलावा को चारा नहीं था. विमान इस तरह एयरटर्ब्युलेंस में फंस गया. तूफ़ान में फंसने के कारण काफ़ी देर तक विमान हिचकोले खाता रहा. पायलट ने अपनी समझबूझ से विमान की ऊंचाई को एडजस्ट भी किया. लेकिन तूफ़ान का दायरा काफ़ी बड़ा और ऊंचा था. इसी दौरान तूफानी हवाओं में उड़ते ओलों से विमान के अगले हिस्से को काफ़ी नुक़सान हो गया. 

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पायलट ने तूफ़ान के बीच श्रीनगर तक का सबसे छोटा रास्ता लिया और फिर कुछ देर बाद विमान इस तूफ़ान से निकला और पायलट ने शाम क़रीब साढ़े छह बजे विमान को सुरक्षित श्रीनगर एयरपोर्ट पर उतार दिया. इस विमान में आम यात्रियों के अलावा डेरेक ओ ब्रायन के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस के पांच सांसदों का प्रतिनिधिमंडल भी था जो नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तान की ओर से हुई फ़ायरिंग से प्रभावित लोगों से मिलने और उनका हालचाल जानने के लिए श्रीनगर जा रहा था.

टर्ब्युलेंस में फंसना कोई नई और अनोखी बात नहीं

वैसे विमानों का एयर टर्ब्युलेंस में फंसना कोई नई और अनोखी बात नहीं है. अक्सर हवाई यात्रा करने वाले लोगों को अहसास होगा कि कई बार विमान उड़ते वक्त अचानक कुछ हिचकोले खाने लगता है. कई बार विमानों के तेज हवाओं के बीच फंसने पर पायलट को अचानक विमान की ऊंचाई घटानी या बढ़ानी पड़ जाती है. ताकि विमान एयर टर्ब्युलेंस से बाहर निकल जाए. और जब भी ऐसा होता है यात्रियों में घबराहट आनी स्वाभाविक है.

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एयर टर्ब्युलेंस का ऐसा ही एक डरा देने वाला वाकया ठीक एक साल पहले 21 मई 2024 को सामने आया था. सिंगापुर एयरलाइंस की विमान संख्या 321 लंदन से सिंगापुर जा रही थी और बीच हवा में उसे भयानक टर्ब्युलेंस का सामना करना पड़ा. विमान तेज़ी से हिचकोले खाने लगा. इससे विमान में बैठे यात्रियों में घबराहट फैल गई. विमान ने इतने झटके खाए कि लोगों के बैग, विमान की ट्रॉलियां वगैरह सब इधर उधर बिखर गए. ऊपर से ऑक्सीजन मास्क निकल आए. विमान के कुछ इलेक्ट्रिक पैनल तक टूट गए. विमान में चीज़ें इतनी बिखरीं कि इनसे कुछ यात्रियों को चोटें तक आ गईं. न्यूज़ीलैंड का एक यात्री जो उसी समय टॉयलेट से अपनी सीट पर लौट रहा था उसे सीट बेल्ट बांधने का समय नहीं मिला और सामान के टकराए से वो घायल हुआ और बेहोश हो गया. जब उठा तो पता चला कि उसकी गर्दन की हड्डी टूट गई थी. उसे रीढ़ की हड्डी की सर्जरी करानी पड़ी. इस हादसे के एक साल बाद जब जांच रिपोर्ट आई है तो सिंगापुर के परिवहन मंत्रालय ने पाया है कि विमान साढ़े चार सेकंड के अंदर ही क़रीब 54 मीटर नीचे की ओर आ गया था और इसके बाद अचानक विमान तेज़ी से ऊपर की ओर उठ गया. इस घटना के बाद सिंगापुर एयरलाइंस ने अपने सेफ्टी प्रोटोकॉल्स में कुछ सुधार किए. अगर सीट बेल्ट न बंधी हो तो गर्म ड्रिंक्स और खाना सर्व नहीं किया जाएगा. केबिन क्रू को भी इस दौरान बैठे रहने और सीट बेल्ट लगाने के निर्देश दिए गए.

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वैसे विमानों को बनाया ही इस तरह जाता है कि हवा में इस तरह के टर्ब्युलेंस का वो सामना कर पाएं. लेकिन कई बार प्रकृति की ताक़त कुछ ज़्यादा ही बड़ी साबित होती है. एयर टर्ब्युलेंस के कारण कई बार विमान काबू से बाहर भी हो जाता है या हवा में उलट पलट भी सकता है. हालांकि, आधुनिक विमानों में वेदर रडार सिस्टम होते हैं जिनके इस्तेमाल से पायलट टर्ब्युलेंस का पता लगा सकते हैं और उसी हिसाब से विमान का रास्ता बदल सकते हैं. आधुनिक टैक्नोलॉजी से मौसम विज्ञान विभाग टर्ब्युलेंस की 75% घटनाओं को 18 घंटे पहले ही बता सकते हैं. लेकिन मौसम की अनिश्चितता फिर भी बनी रहती है.

कई बार आख़िरी समय तक एयर टर्ब्युलेंस का पता नहीं चल पाता. इन्हें क्लियर एयर टर्ब्युलेंस यानी CAT कहते हैं. Clear air turbulence बहुत ज़्यादा ऊंचाई पर होता है जहां विमान तेज़ी से उड़ रहे होते हैं. इतनी ऊंचाई पर बादल न होने से हवा में होने वाले बदलाव का आंखों से या विमान के सामान्य सेंसर्स से पता नहीं चल पाता. यहां तक कि उपग्रह भी इस तरह के टर्ब्युलेंस को नहीं देख पाते. टर्ब्युलेंस से जुड़े क़रीब 40% हादसे Clear air turbulence के कारण होते हैं. हालांकि अब विमानों में लगी LIDAR यानी Light Detection and Ranging जैसी टैक्नोलॉजी से clear-air turbulence की चेतावनी थोड़ी पहले मिल सकती है.

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ये एयर टर्ब्युलेंस होता क्यों है?

हवाओं में जब भी अचानक से बदलाव आ जाए. शांत हवाएं अचानक तेज़ हो जाएं या नीचे से तेजी से ऊपर की ओर उठें या ऊपर से तेजी से नीचे की ओर आएं तो ये एयर टर्ब्युलेंस है. यानी अशांत हवा. कोई भी चीज इस हवा के बीच आएगी तो हवा के धक्के का असर उस पर पड़ेगा. कई बार ऊंचे आसमान में उड़ रहे विमान ऐसी अशांत हवा के बीच फंस जाते हैं. जैसे जेट स्ट्रीम्स, जो वातावरण में काफी ऊंचाई लगभग 30 से 40 हजार फीट और उससे भी ऊपर पश्चिम से पूर्व की ओर उड़ने वाली काफी तेज हवाएं होती है जो एक पतले से गलियारे यानी narrow bands से गुजरती हैं. ये जेट स्ट्रीम्स गर्म और ठंडी हवाओं के तापमान में अंतर के कारण कई बार उत्तर और दक्षिण की ओर भी शिफ्ट हो जाती हैं. एयर टर्ब्युलेंस से जुड़े करीब दो तिहाई हादसे तीस हजार फीट से ऊपर होते हैं.

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इसके अलावा थर्मल टर्ब्युलेंस भी होता है. जैसे गर्मियों के मौसम में जब जमीन काफी गर्म हो जाती है तो गर्म हुई हवाएं हल्की होने के कारण ऊपर की ओर उठती हैं और ऊपर की ठंडी हवाएं भारी होने के कारण नीचे की ओर आती है. ये चक्र जब बहुत तेज होता है तो तूफान की शक्ल ले लेता है. हवाओं की रफ़्तार काफ़ी तेज़ हो जाती है. इसे थर्मल टर्ब्युलेंस कहते हैं. विमान इस अशांत हवा यानी एयर टर्ब्युलेंस में फंस सकते हैं.

कई बार लैंडस्केप के कारण यानी भौगोलिक वजह से भी टर्ब्युलेंस होता है जिसे मैकेनिक टर्ब्युलेंस कहते हैं. हवाओं के सामने कोई पहाड़ या बहुत ऊंची इमारत आ जाए तो हवा के फ्लो को बदल देते हैं. हवा एकदम से ऊपर की ओर उठती है और फिर दूसरी ओर नीचे की ओर जाती है. ऐसे में हवा के भंवर से बन जाते हैं जिनमें फंस कर विमान हिचकोले खा सकता है. तेजी से उड़ते हुए विमान भी अपने पीछे एक एयर टर्ब्युलेंस छोड़ते हुए जाते हैं. यानी विमान आगे निकलते हैं तो पीछे अशांत हवा के तेज़ झोंकों को छोड़ते हुए जाते हैं. इस कारण अगर कोई विमान ठीक पीछे आ रहा हो तो उसे टर्ब्युलेंस का सामना करना पड़ सकता है. इसी वजह से विमान एक दूसरे के बीच में उचित दूर रखकर ही उड़ते हैं.

कुदरती कारणों से एयर टर्ब्युलेंस हमेशा से ही होता रहा है. लेकिन बदलती आबो हवा यानी क्लाइमेट चेंज से गर्म होती धरती के कारण एयर टर्ब्युलेंस में इज़ाफ़ा हो रहा है. ब्रिटेन की University of Reading के एक अध्ययन के मुताबिक 1979 से 2020 तक उत्तर अटलांटिक रूट पर काफी तीव्र एयर टर्ब्युलेंस 55% तक बढ़े हैं. इसकी वजह बताई गई कि कार्बन उत्सर्जन के कारण गर्म हवा से काफी ऊंचाई पर हवाओं की गति काफी ज़्यादा बढ़ी है.

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अध्ययन के मुताबिक अकेले अमेरिका में हर साल 65 हज़ार विमान सामान्य टर्ब्युलेंस का सामना करते हैं और 5500 विमान बहुत ही गंभीर टर्ब्युलेंस में फंसते हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो के वैज्ञानिकों का पूर्वानुमान है कि बढ़ते तापमान से सबसे ऊंचाई वाली जेट स्ट्रीम्स में हवाओं की रफ़्तार और बढ़ सकती है. दुनिया के तापमान में हर एक डिग्री की वृद्धि पर हवाओं की रफ़्तार 2% बढ़ जाती है. क्लाइमेट चेंज के कारण आने वाले दशकों में एयर टर्ब्युलेंस के दोगुने से तीन गुने होने की आशंका है. यानी विमानन से जुड़ी कंपनियों के लिए ये चुनौती आगे और बढ़ने वाली है.

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वैसे एक और दिलचस्प तथ्य आपको बता दें. दुनिया में कुछ जगह ऐसी होती हैं जहां एयर टर्ब्युलेंस ज़्यादा होने के कारण विमान वहां से होकर उड़ने से बचते हैं. दुनिया में ऐसा ही एक बड़ा इलाका तिब्बत का पठार... flightradar24.com पर आप कभी भी देखेंगे तो पाएंगे कि तिब्बत के पठार के ऊपर विमान नहीं उड़ रहे होंगे. उसके ऊपर या नीचे से होकर विमान आते या जाते दिखेंगे. इसकी वजह ये है कि क़रीब 25 लाख वर्ग किलोमीटर का तिब्बत का पठार काफ़ी ऊंचाई पर है. औसतन 4500 मीटर की ऊंचाई पर. यानी इसका एल्टिट्यूड काफ़ी ज़्यादा है. इसीलिए इसे दुनिया की छत यानी Roof of the world भी कहा जाता है.. इतनी ऊंचाई पर होने के कारण यहां हवाएं बहुत तेज़ चलती हैं. आंधी तूफ़ान आते रहते हैं. इसके अलावा इस ऊबड़ खाबड़ इलाके के ऊंचाई पर होने से यहां हवा भी काफ़ी विरल होती है जिसका असर विमानों के इंजन पर पड़ सकता है. जेट इंजन्स के काम करने के लिए हवा का घनत्व एक निश्चित मात्रा से ऊपर होना चाहिए. लेकिन इतनी ऊंचाई पर ऑक्सीजन कम होने से जेट इंजन की परफॉर्मेंस काफ़ी घट जाती है. इससे इंजन फेल हो सकता है. इसके अलावा इस पूरे इलाके में एयरपोर्ट भी ना के बराबर हैं जहां किसी इमरजेंसी की स्थिति में विमान उतर सके. न ही एयर ट्रैफ़िंक कंट्रोल से जुड़ी सुविधाएं इस इलाके में हैं.

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