- ब्लूबर्ड सैटेलाइट सीधे आपके हैंडसेट से जुड़कर बगैर किसी टावर, डिश या टर्मिनल के इंटरनेट और कॉल सुविधा देगा.
- बड़े कम्युनिकेशन एरे की मदद से 120 Mbps तक की हाई स्पीड के साथ यह धरती पर मौजूदा डेड जोन खत्म कर सकता है.
- पहाड़, समुद्र, सुदूर गांव या हों आपदा से प्रभावित इलाके. बेधड़क कनेक्टिविटी से ये दुनिया को पूरी तरह बदल देगा.
भारत के बाहुबली रॉकेट LVM3-M6 ने जिस ब्लूबर्ड स्मार्टफोन सैटेलाइट को लॉन्च किया है उससे बहुत बड़ा क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है. हाईस्पीड डेटा और कॉल कनेक्टिविटी की दिशा में ये एक बड़ा कदम है. इससे इंटरनेट अब सीधे स्मार्टफोन तक पहुंचेगा. इससे स्पेशल टर्मिनल या ग्राउंड स्टेशन की जरूरत खत्म हो जाएगी. मतलब, दूर-दराज के इलाके, समुद्र, पहाड़ और आपदा प्रभावित क्षेत्र भी बिना किसी अतिरिक्त उपकरणों के कनेक्ट हो सकते हैं. दरअसल, ब्लूबर्ड सैटेलाइट को सीधे 5जी मोबाइल सेट से कनेक्ट करने के लिए तैयार किया गया है.
ब्लू बर्ड में बड़े कम्युनिकेशन एरे लगे हैं, ये खोलने पर 2400 वर्ग फीट तक बड़े हो सकते हैं. यह ब्लूबर्ड 1-5 तक के सैटेलाइट से करीब 3.5 गुना बड़ा है. इसे बनाने वाली कंपनी AST ने कहा है कि बड़े ब्लूबर्ड्स इन-हाउस तैयार किए गए चिप्स का इस्तेमाल करेंगे ताकि हर सैटेलाइट पर 10 गीगाहर्ट्ज की प्रोसेसिंग बैंडविड्थ मिल सके - जो पहले के ब्लूबर्ड मॉडलों की क्षमता से 10 गुना ज्यादा है. यानी सैटेलाइट 120Mbps तक की पीक डेटा स्पीड को सपोर्ट करता है, जिससे सीधे स्पेस से हाई-डेफिनिशन वीडियो स्ट्रीमिंग और फुल ब्रॉडबैंड डेटा सर्विस मिल सकेगी.
सैटेलाइट की मदद से लोग अपने स्मार्टफोन से अभी की तरह ही कॉल कर सकेंगे, डेटा यूज कर सकेंगे और वीडियो देख पाएंगे लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि इसके लिए उन्हें किसी खास टर्मिनल या रिसीवर की जरूरत नहीं होगी. यानी सैटेलाइट की मदद से यूजर्स के फोन सीधे स्पेस में मौजूद ब्लूबर्ड से जुड़ जाएंगे.
Kudos Team #ISRO for the successful launch of LVM3-M6 carrying BlueBird Block-2.
— Dr Jitendra Singh (@DrJitendraSingh) December 24, 2025
With the visionary patronage of PM Sh @narendramodi, @isro continues to achieve one success after another, reiterating India's growing prowess in Space technology. pic.twitter.com/gsnYimTwZs
सीधे स्मार्टफोन तक इंटरनेट
इसकी सबसे क्रांतिकारी बात है इसकी Direct-to-Smartphone Connectivity. स्पेसएक्स के Starlink और भारत में एयरटेल जैसी कंपनी को उसकी इंटरनेट सेवा के लिए अपने लो अर्थ ऑर्बिट सैटेलाइट की सुविधा देने वाली OneWeb के लिए खास टर्मिनल या डिश की जरूरत होती है, वहीं AST SpaceMobile की तकनीक सीधे आम स्मार्टफोन से कनेक्ट होती है. इससे स्पेशल टर्मिनल या ग्राउंड स्टेशन की जरूरत खत्म हो जाएगी.
बता दें कि मोबाइल नेटवर्क के लिए टावरों और अन्य बुनियादी ढांचे की जरूरत होती है. लेकिन पहाड़ी या समुद्री इलाके हों या दूर दराज के गांव या फिर जिन इलाकों में आपदा आई होती है वहां टावरों पर आधारित मोबाइल नेटवर्क सही से काम नहीं कर पाते. ऐसे क्षेत्रों में टावर रहित मोबाइल नेटवर्क यानी सैटेलाइट फोन जैसी सुविधाएं बहुत कारगर साबित होंगी. ब्लूबर्ड यही डेड जोन खत्म कर सकता है. यह दूर दराज की घाटियों, समुद्र, रेगिस्तान में और इमरजेंसी के दौरान कनेक्टिविटी सुनिश्चित कर सकता है.
दुनिया की लगभग आधी आबादी के पास भरोसेमंद मोबाइल इंटरनेट कनेक्शन नहीं है. अफ्रीका का सहारा हो या एशिया के ग्रामीण इलाके, यहां तक कि लैटिन अमेरिका के द्वीपीय देशों में इसकी तकनीक पहुंचने से हाई स्पीड इंटरनेट सर्विस पहुंच सकेगी. जिससे ऑनलाइन पढ़ाई, टेली हेल्थ और रिमोट डायग्नोस्टिक, मोबाइल बैंकिंग, अन्य वित्तीय सेवाएं, इमरजेंसी अलर्ट और रिमोट जॉब्स के अवसरों में वृद्धि होगी, जिसका चौतरफा बजटीय फायदा कंपनियों और यूजर्स दोनों को होगा.

तेजी से चल रहा काम...
जिस कंपनी ने ब्लूबर्ड सैटेलाइट को तैयार किया है उसका नाम AST SpaceMobile है. इसके साथ मौजूदा मोबाइल ऑपरेटरों में Vodafone, AT&T, Verizon, Bell Canada, Rakuten, आदि कंपनियां शामिल हैं. कंपनी ने अब तक कई ब्लूबर्ड सैटेलाइट लॉन्च किए हैं. इसने पार्टनर नेटवर्क के साथ ट्रायल में सैटेलाइट और स्टैंडर्ड फोन के बीच वेरिफाइड 4G और 5G कॉल, मैसेजिंग और ब्रॉडबैंड डेटा सेशन पूरे कर लिए हैं.
कंज्यूमर सर्विस की कमर्शियल लॉन्चिंग 2026 की शुरुआत में प्लान की गई है. दुनिया भर में इस कैरियर के साथ पार्टनरशिप बढ़ रही है. इस सर्विस की उपलब्धता पूरी दुनिया में धीरे-धीरे लाइसेंसिंग के जरिए बढ़ रही है. AST सैटेलाइट से वोडाफोन ग्रुप के जरिए पहला मोबाइल वीडियो कॉल हुआ. वहीं बेल कनाडा ने सैटेलाइट से स्टैंडर्ड फोन पर वॉयस, वीडियो और ब्रॉडबैंड का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया. इसने दर्जनों अन्य ऑपरेटर्स के साथ समझौते किए हैं.
कुछ बाधाएं भी हैं...
बेशक इसके इस्तेमाल से कनेक्टिविटी की कई बुनियादी समस्याओं का हल होना सुनिश्चित होता है. पर यह इतना आसान भी नहीं है, इसमें कुछ प्रमुख बाधाएं भी हैं. पहला, इसके लिए स्पेक्ट्रम और इसे चलाने के लिए लाइसेंस लेना अलग-अलग देशों के कायदे कानूनों के मुताबिक होगा लिहाजा इसमें यह सबसे बड़ी बाधा होगी. दूसरा, इसमें प्रतिस्पर्धा भी है क्योंकि अन्य सैटेलाइट नेटवर्क (जैसे- स्टारलिंक) भी सैटेलाइट इंटरनेट को आगे बढ़ा रहे हैं. हालांकि उनमें टावर की बाध्यता होगी, वहां AST की तरह सीधे फोन पर कवरेज नहीं है. तीसरा, चूंकि इसमें सैटेलाइट से सीधे कनेक्टिविटी मिलने की बात है तो उसे लॉन्च करने में समय लगता है और बहुत बड़ी पूंजी लगती है. Bluebird 6 का अनुमानित लागत 550 करोड़ रुपये से भी अधिक है. इसके अलावा इंजीनियरिंग की कुछ और चुनौतियां भी हैं जैसे मोबाइल नेटवर्क को अतिरिक्त डेटा क्षमता के अनुरूप ढालना.
इन सभी चुनौतियों के बीच अगर यह विजन पूरी तरह सफल रहा तो मोबाइल इंटरनेट के क्षेत्र में जबरदस्त बदलाव होगा. समुद्र से लेकर रेगिस्तान तक केवल फोन के जरिए लोग काम कर सकेंगे. यह करोड़ों यूजर्स को हाई स्पीड मोबाइल इंटरनेट हर वक्त उपलब्ध कराएगा, खासकर उन इलाकों में जहां अब तक तेज इंटरनेट पहुंचाना मुश्किल रहा है.
AST अब ब्लूबर्ड 7 को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी कर रहा है जिसे फ्लोरिडा से लॉन्च करने की योजना है. 2026 के अंत तक 45 से 60 सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजने वाला है ताकि अपने शुरुआती बाजारों में बेधड़क 5जी सर्विस दे सके.
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