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Explainer: नक्सलवाद गिन रहा अपनी अंतिम सांसें, सुरक्षाबलों ने तोड़ दी 'कमर', पढ़ें इस ऑपरेशन की इनसाइड स्टोरी

इस बीच नक्सलियों के ख़िलाफ इस सबसे बड़े अभियान पर लगातार निगाह रखे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस ऑपरेशन को एक बड़ी जीत बताया है. अमित शाह ने दिल्ली के एम्स अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कई घायल जवानों से मुलाक़ात की.

नई दिल्ली:

आतंकवादियों के ठिकानों से अक्सर इंसान राइफलें, अंडर बैरल ग्रैनेड लॉन्चर, स्नाइपर गन, हैंड ग्रेनेड, सैकड़ों इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोजिव डिवाइस यानी आईईडी और कई महीनों का राशन आदि जब्त होता रहता है. ऐसा आपने कई बार खबरों में सुना भी होगा, ख़ासतौर पर जम्मू-कश्मीर में सीमा के नजदीक से इस तरह की खबरें आती रहती हैं लेकिन हम फिलहाल देश के बीचों-बीच बसे कई दशकों से समानांतर सरकार चलाने की कोशिश कर रहे नक्सलियों के सबसे बड़े गढ़ की. 

यहां आपको बता दें कि सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के ख़िलाफ़ अब तक के सबसे बड़े ऑपरेशन में उनके इस बड़े किले कर्रेगुट्टा की पहाड़ियों पर कब्ज़ा कर लिया है. 22 अप्रैल से शुरू हुआ ये ऑपरेशन अपने आप में ऐतिहासिक रहा. एनडीटीवी एक्स्प्लेनर में हम आज करेंगे इसी मुद्दे की पड़ताल करेंगे.

दरअसल, ये है छत्तीसगढ़- तेलंगाना की सीमा से लगा वो इलाका जहां भीषण गर्मी और उमस के बीच सुरक्षा बलों के दस हज़ार से ज़्यादा जवान नक्सलियों की तलाश में तीन हफ़्ते खाक छानते रहे. कर्रेगुट्टा यानी कुर्रगुट्टालू की घने जंगलों से घिरी ये पहाड़ियां महीने भर पहले तक नक्सलियों की सबसे घातक यूनिट बटैलियन नंबर वन की पनाहगाह हुआ करती थीं लेकिन हमारे जांबाज़ जवानों ने अब ये पनाह उनसे छीन ली है. बीते दशकों में एक से एक घातक हमलों में शामिल नक्सलियों को यहां ढूंढना भूसे में सुई ढूंढने से कम नहीं था. लेकिन केंद्र, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना सरकारों के मिले जुले अभियान में लगे सुरक्षा बलों न सिर्फ़ कई नक्सलियों को ढूंढ कर उन्हें मौत के घाट उतारा बल्कि यहां उनकी लाइफलाइन बने उस पूरे बंदोबस्त, उस बुनियादी ढांचे, उस सप्लाई लाइन को भी तबाह कर दिया जिसके सहारे सालों से नक्सली एक बड़े इलाके में अपनी हिंसक गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे. कुल मिलाकर नक्सलियों के गढ़ कर्रेगुट्टा की पहाड़ियों में नक्सलियों की रीढ़ को तोड़ दिया. इस ऑपरेशन में 21 दिनों के दौरान सुरक्षा बलों ने 31 नक्सलियों को ढेर कर दिया. जिनमें 16 पुरुष और 15 महिला नक्सली शामिल रहे. मारे गए नक्सलियों में से 28 की पहचान हो चुकी है. इन नक्सलियों पर क़रीब पौने दो करोड़ रुपए का इनाम घोषित था. इस गंभीर ऑपरेशन के दौरान सुरक्षा बलों के 18 जवान घायल भी हुए. ऑपरेशन के दौरान सुरक्षा बलों ने नक्सलियों की हथियारों की सबसे बड़ी फैक्टरी को खोज निकाला और उसे वहीं तहस-नहस भी कर दिया.

  • कर्रेगुट्टा की पहाड़ियों में नक्सलियों की हथियार बनाने की 4 फैक्ट्रियां ध्वस्त की गईं
  • नक्सलियों के छुपने के 214 ठिकानों और बंकरों को बर्बाद किया गया
  • घायल नक्सलियों के इलाज के लिए बनाए गए अस्पताल का पता लगाया
  • कई महीनों तक बड़ी नक्सली टीम का पेट भर सकने वाली क़रीब 12 हजार किलोग्राम खाद्य सामग्री को बरामद किया गया.

नक्सलियों के अलग अलग ठिकानों से भारी मात्रा में हथियार भी बरामद हुए. सुरक्षा बलों को दूर से निशाना बनाने के लिए नक्सलियों के सबसे घातक हथियार Under Barrel Grenade Launchers को ज़ब्त किया गया. कई इंसास राइफ़लें, Self loading rifle यानी SLR, माउज़र, 303 राइफ़लें, विस्फोटक, विस्फोटकों से जुड़े लंबे वायर और भारी मात्रा में गोलियां बरामद की हैं. इतना जखीरा सुरक्षा बलों को कई दिन तक रोके रखने के लिए काफ़ी है. जानकारों के मुताबिक नक्सलियों ने दो साल तक सुरक्षा बलों का मुक़ाबला करने के लिए हथियार जमा किए हुए थे लेकिन सुरक्षा बलों के हौसले के आगे कई नक्सली या तो भाग खड़े हुए या फिर मौके पर मारे गए. इस ऑपरेशन को कवर करने वाले हमारे सहयोगी विकास तिवारी ने इस जखीरे का जायज़ा लिया.

नक्सलियों के ख़िलाफ़ अब तक के सबसे बड़े अभियान के तहत सुरक्षाबलों के सामने सबसे बड़ी चुनौती कर्रेगुट्टा की पहाड़ियों के अंदर तक पहुंचने की थी. करीब 200 किलोमीटर व्यास में फैले इन पहाड़ी जंगलों में ढाई सौ से ज़्यादा गुफ़ाएं नक्सलियों के छुपने और रहने का ठिकाना रहीं हैं. नक्सलियों ने बीते कई दशक में इस पहाड़ी को अपने अभेद्य किले में बदल दिया था. इस घने जंगली इलाके में हर ओर नक्सलियों द्वारा घात लगाकर हमले किए जाने की आशंका थी. गर्मी और उमस का मौसम भी कम परेशान नहीं कर रहा था. ऊपर से कहां पैरों के नीचे बम धमाका हो जाए, इसका भी कोई ठिकाना नहीं था. नक्सलियों ने पहाड़ी पर चढ़ने और उतरने के तमाम रास्तों पर improvised explosive device यानी IED लगाए हुए थे. ऐसा मान लीजिए जैसे बारूदी सुरंग हर कदम आगे रखना चुनौती भरा था लेकिन सुरक्षा बल भी पूरी तैयारी के साथ इस अभियान में जुटे थे. ख़ास उपकरणों से लैस सुरक्षा बलों की अग्रणी टोलियों ने 400 से ज़्यादा IED को डिफ्यूज़ किया और नक्सलियों को अपने जिस अभेद्य पर नाज था उसे तिनका तिनका कर ध्वस्त कर दिया.

सुरक्षाबलों को पहले से अहसास था कि ये ऑपरेशन लंबा चलने वाला है इसलिए पूरी प्लानिंग के साथ इसे शुरू किया गया. केंद्र सरकार ने 31 मार्च, 2026 तक नक्सलियों का पूरी तरह सफ़ाया करने का लक्ष्य रखा है. इसी क्रम में ये ऑपरेशन एक मील का पत्थर बन गया.

  • ऑपरेशन के लिए बीजापुर, जगदलपुर में कंट्रोल रूम बनाए गए थे
  • पूरे समय वरिष्ठ अफसरों द्वारा ऑपरेशन की लाइव मॉनिटरिंग की जा रही थी
  • जवानों से संचार बनाए रखने के लिए अस्थाई बेस बनाए गए थे
  • ऑपरेशन में वायुसेना के हेलिकॉप्टरों की मदद ली गई थी
  • हेलिकॉप्टर से जवानों तक जरूरत का हर सामान पहुंचाया गया
  • एक पहाड़ी के टॉप पर अस्थाई हेलीपैड और बेस भी बनाया गया

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कहा कि नक्सलियों के ख़िलाफ ये निर्णायक लड़ाई है और नक्सलवाद अब अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है. ख़ास बात ये है कि सुरक्षाबलों के आक्रामक रुख को देखते हुए नक्सलियों की लगातार कोशिश रही कि उनकी सरकार से बातचीत हो जाए और ये ऑपरेशन रुक जाए. इस सिलसिले में उन्होंने राज्य सरकार को पत्र भी लिखे.

जैसे नक्सलियों की सेंट्रल कमेटी की ओर से एक ताज़ा पत्र बुधवार को ही आया. इसमें शांति वार्ता और युद्धविराम की पेशकश की गई. नक्सलियों के केंद्रीय प्रवक्ता अभय की ओर से ये पत्र जारी किया गया. इसमें नक्सलियों के प्रवक्ता ने लिखा था कि शांति वार्ता के लिए हम हरदम तत्पर हैं. साथ ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से शांति वार्ता की पहल करने की अपील भी की गई थी. छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने कहा कि शर्तों के साथ शांति वार्ता नहीं हो सकती. उन्होंने ये भी कहा कि पहले इन पत्रों की प्रामाणिकता की जांच करने की ज़रूरत है. अगर बचे हुए नक्सली बातचीत को तैयार हुए तो सरकार भी इसके लिए तैयार है.

इस बीच नक्सलियों के ख़िलाफ इस सबसे बड़े अभियान पर लगातार निगाह रखे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस ऑपरेशन को एक बड़ी जीत बताया है. अमित शाह ने दिल्ली के एम्स अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कई घायल जवानों से मुलाक़ात की. सुरक्षा बलों के 18 जवान इस ऑपरेशन के दौरान घायल हुए हैं. ऑपरेशन के दौरान नक्सलियों से निपटने के लिए बनी ग्रेहाउंड्स फोर्स के तीन जवानों ने तेलंगाना में एक IED धमाके में जान गंवाई. इसके अलावा अन्य धमाकों में सुरक्षा बलों के दो जवान गंभीर रूप से घायल हो गए. अमित शाह ने घायल जवानों से नक्सल ऑपरेशन की जानकारी ली और उनका हौसला बढ़ाया. अमित शाह ने सोशल मीडिया एक्स पर भी इस ऑपरेशन की कामयाबी का ज़िक्र किया.

उन्होंने लिखा NaxalFreeBharat के संकल्प में एक ऐतिहासिक सफलता प्राप्त करते हुए सुरक्षा बलों ने नक्सलवाद के विरुद्ध अब तक के सबसे बड़े ऑपरेशन में छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा के कुर्रगुट्टालू पहाड़ (KGH) पर 31 कुख्यात नक्सलियों को मार गिराया. जिस पहाड़ पर कभी लाल आतंक का राज था, वहां आज शान से तिरंगा लहरा रहा है. कुर्रगुट्टालू पहाड़ PLGA बटालियन 1, दंडकारण्य स्पेशल ज़ोनल कमेटी, TSC और CRC जैसी बड़ी नक्सल संस्थाओं का Unified Headquarter था, जहां नक्सल ट्रेनिंग के साथ-साथ रणनीति और हथियार भी बनाए जाते थे. नक्सल विरोधी इस सबसे बड़े अभियान को हमारे सुरक्षा बलों ने मात्र 21 दिनों में पूरा किया और मुझे अत्यंत हर्ष है कि इस ऑपरेशन में सुरक्षा बलों में एक भी casualty नहीं हुई. खराब मौसम और दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में भी अपनी बहादुरी और शौर्य से नक्सलियों का सामना करने वाले हमारे CRPF, STF और DRG के जवानों को बधाई देता हूं. पूरे देश को आप पर गर्व है.

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में हम नक्सलवाद को जड़ से मिटाने के लिए संकल्पित हैं. मैं देशवासियों को पुनः विश्वास दिलाता हूं कि 31 मार्च 2026 तक भारत का नक्सलमुक्त होना तय है. नक्सलियों यानी सीपीआई-माओवादियों के हथियारबंद काडर के ख़िलाफ़ इस अभियान में सीआरपीएफ़, महाराष्ट्र के C-60, तेलंगाना के ग्रेहाउंड्स और छत्तीसगढ़ के DRG जवान शामिल रहे. ये सभी नक्सलियों के ख़िलाफ़ लड़ाई में माहिर हैं. इस ऑपरेशन में उन्होंने नक्सलियों की सप्लाई लाइन काट दी और 31 नक्सलियों को मार गिराने में सफल रहा लेकिन एक सवाल ये उठ रहा है कि जब ये ऑपरेशन शुरू हुआ तब कहा गया था कि नक्सलियों के कई कुख्यात कमांडर भी शिकंजे में आ गए हैं. जैसे हिडमा, देवा, केशव, सहदेव वगैरह. हिडमा पिछले साल तक Maoists Peoples Liberation Guerilla Army Battalion नंबर 1 का कमांडर रहा और अब सीपीआई माओवादी की सेंट्रल कमेटी में शामिल है. हिडमा की जगह लेने वाला बटैलियन नंबर वन का कमांडर देवा भी घिरा हुआ बताया गया. साथ ही सीपीआई-माओवादी की सेंट्रल कमेटी, दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी, DVCM, ACM और संगठन सचिव जैसे बड़े स्तर के कैडर भी घिरे हुए बताए गए लेकिन सवाल ये है कि क्या ये कुख्यात नक्सली भागने में कामयाब रहे. या फिर कुछ और नक्सली जो मारे गए हैं और जिनके शव नहीं मिल पाए हैं, उनमें ये नक्सली कमांडर शामिल हो सकते हैं. वैसे कर्रेगुट्टा की पहाड़ियों का एक सिरा छत्तीसगढ़ तो दूसरा तेलंगाना की तरफ है. इन पहाड़ियों का इस्तेमाल नक्सली दोनों राज्यों में आने-जाने के लिए करते थे. क्या कुछ नक्सली, ख़ासतौर पर नक्सली कमांडर तेलंगाना की ओर भाग गए हैं. ये नक्सली सुरक्षा बलों, अफ़सरों, नेताओं और आम जनता के ख़िलाफ़ हुए कई बड़े हमलों के आरोपी रहे हैं.

निश्चित ही इस ऑपरेशन के हासिल और उसमें रह गई कुछ कमियों की समीक्षा हो रही होगी लेकिन ये तय है कि नक्सलियों को ये समझ में आ गया होगा कि जितना भी इलाका अब उनके प्रभाव में बचा हुआ है, वो भी बस कुछ ही दिनों के लिए है. कभी देश के कम से कम सात राज्यों के करीब 200 ज़िलों में सक्रिय रहे. नक्सली सरकार के दावे के मुताबिक अब सिर्फ़ 38 ज़िलों तक ही सिमट गए हैं. इनमें भी नक्सलियों से सबसे ज़्यादा प्रभावित ज़िलों की तादाद अब महज 6 रह गई है. इनमें चार ज़िले छत्तीसगढ़ के हैं, ये हैं बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर और सुकमा हैं. 

इसके अलावा झारखंड का पश्चिमी सिंहभूम और महाराष्ट्र का गड़चिरौली ही नक्सलियों से सबसे ज़्यादा प्रभावित ज़िलों में शामिल है. 2014 से सुरक्षा बलों ने क़रीब 2100 नक्सलियों को मार गिराया है जबकि 928 नक्सलियों ने हथियार डाले हैं. इसी साल अब तक 197 नक्सली मारे जा चुके हैं. इनमें कई सीनियर नक्सली कमांडर शामिल हैं जबकि 718 नक्सली अब तक हथियार डाल चुके हैं.

अगर पिछले कुछ साल के आंकड़ों को देखें तो 2009 के बाद सबसे ज़्यादा 219 नक्सलवादियों को पिछले साल 2024 में मार गिराया गया था. 2023 में 22 नक्सलवादी और 2022 में 30 नक्सली सुरक्षा बलों के ऑपरेशनों में मारे गए थे. उससे पहले 2016 और 2018 में सौ से ज़्यादा नक्सलवादी मारे गए थे. 2016 में 134 नक्सली मारे गए थे. 2025 में अब तक 197 नक्सली मारे गए हैं. अगर नक्सलियों के हमलों को देखें तो वो साल दर साल लगभग बराबर बने रहे. थोड़े कम तो थोड़े ज़्यादा. जिस साल नक्सली हमले बढ़े उस साल उनके मारे जाने की तादाद भी बढ़ी. बीते साल नक्सलियों के हमलों के मुक़ाबले सुरक्षा बलों द्वारा उनके ख़िलाफ़ ऑपरेशन में काफ़ी ज़्यादा तेज़ी आई जिसका नतीजा 200 से ज़्यादा नक्सलवादियों के मारे जाने की शक्ल में सामने आए.

फिलहाल, कर्रेगुट्टा की पहाड़ी में नक्सलियों के ख़िलाफ़ चले अब तक के सबसे बड़े ऑपरेशन के सिलसिले में 17 FIR दर्ज की गई हैं. नक्सल नेटवर्क को वित्तीय मदद और अन्य मदद की जांच के लिए नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी भी जल्द जांच में शामिल हो सकती है. 

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