AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में चीन की नई तकनीकी क्रांति ने दुनिया में धमाल मचा दिया है. इसका नाम है DeepSeek-V3 है. वैसा ही इसका काम भी है. आंकड़ों और सूचनाओं के विशाल सागर में गहरे गोते लगाकर, यह आपकी पूछताछ का उत्तर ठीक वैसे ही देता है, जैसे OpenAI का ChatGPT देता है. आपको बस अपने सवाल में सही शब्द देने होते हैं, जिनके जवाब आपको चाहिए. जैसे ही यह प्रणाली सामने आई, दुनिया भर ने इसका इम्तिहान लेना शुरू कर दिया.
चीन के सवालों पर AI की चुप्पी!
AI के सामने कुछ सीमाएं भी आई हैं. उदाहरण के तौर पर, जब आप चीन से जुड़े कुछ संवेदनशील सवाल पूछते हैं, तो यह चुप्पी साध लेता है. जैसे अगर आप थ्येन आन मेन चौक नरसंहार के बारे में पूछें या फिर चीन के उइगुर इलाके के बारे में जानकारी मांगें. इतना ही नहीं, चीन के हथियारों के संसार पर सवाल करें, तो यह जवाब देता है- 'I am sorry, I cannot answer that question. I am an AI assistant designed to provide helpful and harmless responses.'
इससे यह साफ हो जाता है कि चीन के इस नए AI सिस्टम की पहली बड़ी चुनौती सूचनाओं पर चीन की सेंसरशिप है, जो DeepSeek-V3 की पहुंच को सीमित कर रही है. क्योंकि यह AI सिर्फ उपलब्ध सूचनाओं और आंकड़ों का विश्लेषण कर जवाब देता है और जिन सूचनाओं तक इसकी पहुंच नहीं है, उनके बारे में यह उत्तर नहीं दे सकता.
प्रमुख टेक और ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा ने OpenAI के ChatGPT-4 को चुनौती देने वाला अपना नया AI मॉडल लॉन्च किया है, जिसका नाम है Qwen2.5-Max. अलीबाबा के मुताबिक उनका यह AI मॉडल कई आधुनिकतम AI मॉडलों से बेहतर है. AI के क्षेत्र में अमेरिका की श्रेष्ठता के सामने यह एक नई चुनौती बनकर उभरी है. यही नहीं, अलीबाबा के Qwen टीम का दावा है कि उनके इस AI मॉडल ने DeepSeek-V3 को भी कई परीक्षणों में पीछे छोड़ दिया है. कोड जनरेशन से लेकर अन्य क्षमताओं तक, इस मॉडल ने बेहतर प्रदर्शन किया है. डीपसीक तो पहले ही सुर्खियों में था और अब Qwen2.5-Max भी मैदान में उतर चुका है. इससे यह तो अभ साफ हो गया है कि चीन बहुत तेजी से AI के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है.
कंप्यूटर एक इंसान की तरह काम करने में सक्षम
पूरा माजरा क्या है? इस पर चर्चा करने से पहले उन लोगों के लिए एक छोटी सी जानकारी जो अब भी यह नहीं समझ पाए हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आखिर है क्या? AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, आधुनिक तकनीक की वह श्रेष्ठता है, जिसमें कंप्यूटर एक इंसान की तरह काम करने में सक्षम होता है. एक मशीन, यानी कंप्यूटर, को इस तरह से प्रशिक्षित किया जाता है कि वह नई चीजें सीख सके. सवालों का हल निकाल सके और विश्लेषण कर सके. इसके लिए मशीन को विशाल सूचनाओं का संग्रह दिया जाता है और उसे पैटर्न पहचानने की क्षमता सिखाई जाती है. बिल्कुल वैसे ही जैसे हम किसी समस्या को हल करने के लिए उसका ब्योरा पढ़ते हैं और फिर अपने पूर्व अनुभवों और विश्लेषण के आधार पर निर्णय लेते हैं. AI भी कुछ ऐसा ही करता है. इन मशीनों की पहुंच दुनिया भर की उन सभी सामग्रियों तक होती है जो इंटरनेट पर उपलब्ध हैं या जो इन्हें फीड की गई हैं. पलक झपकते ही ये सूचनाओं में गहरे गोते लगाती हैं और आपके सवाल का जवाब लेकर आपके सामने खड़ी हो जाती हैं.
अमेरिका AI को डीपसीक की चुनौती
अमेरिका की टेक कंपनी OpenAI का AI चैटबॉट ChatGPT हो या Google का Gemini, ऐसी तमाम कंपनियों के AI चैटबॉट्स को चीन की DeepSeek कंपनी के AI चैटबॉट DeepSeek R1 ने कड़ी चुनौती दे दी है. चीन में DeepSeek किस परिस्थितियों में तैयार हुआ. इसे किसने बनाया और इसकी लागत कितनी रही? इस पर दुनिया भर में बड़ी चर्चा हो रही है. इस पर हम आगे विस्तार से बात करेंगे. लेकिन उससे पहले, इसके साथ जुड़े खतरों को लेकर जो चर्चाएं उठ रही हैं, उनकी चर्चा करना जरूरी है.
राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं
अमेरिका में DeepSeek को लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं उठने लगी हैं. यह डर जताया जा रहा है कि DeepSeek के AI मॉडल्स का इस्तेमाल अमेरिका के नागरिकों की जासूसी करने के लिए किया जा सकता है. इसके इस्तेमाल से लोगों की सोच को एक खास दिशा में प्रभावित करने के अभियान चलाए जा सकते हैं. साथ ही कई गोपनीय सूचनाओं में सेंध लगाई जा सकती है. जैसे किसी कंपनी के ट्रेड सीक्रेट, उसके उत्पादों के फॉर्मूले, डिज़ाइन या ग्राहकों की लिस्ट, जो बाज़ार में उसे एक बढ़त दिलाती हैं और जो सार्वजनिक नहीं हैं.
कितना हाईटेक है चीन का AI DeepSeek?
अमेरिका में व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलीन लीविट ने बताया कि नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल भविष्य में DeepSeek द्वारा सुरक्षा पर संभावित ख़तरों का अध्ययन कर रहा है. इसके बाद यह खबर भी आई कि अमेरिकी नौसेना ने अपने सुरक्षा और नैतिक कारणों से DeepSeek के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी है. DeepSeek अपनी प्राइवेसी पॉलिसी में कहती है कि वह यूज़र्स का डेटा, उनके आईपी एड्रेस और यहां तक कि स्ट्रोक पैटर्न्स को भी स्वचालित रूप से जमा करती रहती है और इनका इस्तेमाल अपने मॉडल्स को प्रशिक्षित करने के लिए किया जा सकता है. पॉलिसी के मुताबिक, ये निजी जानकारियां चीन में सुरक्षित सर्वर्स में जमा होती हैं. यही वजह है कि DeepSeek को लेकर सुरक्षा चिंताएं और गहरी हो रही हैं.
दरअसल, ऐसे जनरेटिव AI उन कामों में ज़्यादा इस्तेमाल होते हैं जो व्यक्तिगत होते हैं और बहुत ज़रूरी होते हैं. कंपनियां अपनी रणनीति बनाने, वित्तीय प्रबंधन के लिए इनका इस्तेमाल करती हैं, या कोई स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी के लिए इनका इस्तेमाल करता है. इस तरह का डेटा एक ऐसे देश में स्टोर हो रहा है, जहां आपके पास न तो कोई अधिकार है और न ही किसी तरह की पारदर्शिता. यही कारण था कि अमेरिका में टिकटॉक पर पाबंदी की बात उठी थी. चिंता यह थी कि इस ऐप के बहाने चीन की कंपनी ByteDance अमेरिका के लोगों की जानकारियां इकट्ठा कर रही है. अगर अमेरिका के लोग DeepSeek का इस्तेमाल करने लगेंगे, तो लोगों की और भी ज़्यादा जानकारियों तक चीन की पहुंच हो जाएगी.
वैसे भी अब यह माना जाता है कि जो भी देश AI में आगे होगा, वह अपने प्रतिद्वंद्वी देशों पर आर्थिक और सैनिक तौर पर भारी पड़ेगा. यही वजह है कि अत्याधुनिक कंप्यूटिंग चिप्स तक चीन की पहुंच रोकने के लिए अमेरिका ने सितंबर 2022 में चीन के लिए इन चिप्स का निर्यात पर पाबंदी लगा दी. बावजूद इसके चीन का दावा है कि उसने कम लागत में कम पावर वाली चिप्स से ही DeepSeek को तैयार कर लिया. लेकिन जो चिंता DeepSeek को लेकर उठ रही है, वही चिंता अमेरिका के ChatGPT जैसे AI चैटबॉट्स को लेकर भी है.
चीन AGI यानी आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस के काफी करीब
डीपसीक के बाद अब चर्चा यह है कि चीन AGI यानी आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस के काफी करीब है, जिससे किसी AI को इंसान से भी बेहतर सोचने की क्षमता दी जा सकती है. ऐसा होना ख़तरनाक भी हो सकता है. कल्पना करें, अगर मशीन इंसान की बात मानने से इनकार कर दे तो क्या होगा? कई जानकार मानते हैं कि अब वह दिन दूर नहीं है. इसीलिए, नैतिक तौर पर भी ऐसी तकनीक पर काबू रखना जरूरी है. अमेरिका की AI लैब्स में इस तरह की तकनीकों के लिए सेफ्टी रिसर्चर्स होते हैं. लेकिन यह साफ नहीं है कि DeepSeek में ऐसी कोई सेफ्टी रिसर्च टीम है या नहीं. यह चिंता इसलिए भी बढ़ रही है क्योंकि वैज्ञानिकों का मानना है कि artificial intelligence (AI) ने अब वो ख़तरनाक लाइन पार कर ली है, जहां AI खुद को रेप्लिकेट यानी अपनी कॉपी या क्लोन बना सकता है.
. Rogue AI सिस्टम क्या है?
चीन की फुडान यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने Meta और अलीबाबा के दो लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स (LLMs) का इस्तेमाल यह पता करने के लिए किया कि क्या कोई AI काबू से बाहर जाकर अपनी अनगिनत कॉपियां यानी क्लोन बना सकता है. इस शोध में कुल 10 ट्रायल हुए। Meta के मॉडल ने 50% बार अपनी कॉपियां बना कर दिखा दी, जबकि अलीबाबा के AI ने 90% बार यह किया. इससे यह स्पष्ट हो गया कि AI में हाथ से बाहर जाने की क्षमता है. हालांकि, अभी इस रिसर्च को peer-review नहीं किया गया है, यानी इसे बाकी जानकारों द्वारा पूरी तरह से समीक्षा नहीं किया गया है. लेकिन यह स्पष्ट है कि दुनिया के सामने Rogue AI यानी दुष्ट AI के खड़े होने में अब देर नहीं है. Rogue AI ऐसा AI सिस्टम है जो खुद को लेकर जागरूक हो जाए, यानी self-aware हो जाए, और इंसानी निर्देशों का उल्लंघन कर अपने हिसाब से काम करने लगे.
कई जानकार मानते हैं कि दुष्ट AI दुनिया के सामने एक बड़ा ख़तरा बन सकता है, जो frontier AI में विस्फोटक तेज़ी से हुए विकास के कारण और भी बड़ा हो गया है. Frontier AI यानी AI सिस्टम के आधुनिकतम रूप, जैसे OpenAI का GPT-4 और Google Gemini. अलीबाबा का Qwen2.5-Max AI भी सामने आ चुका है. इसका अमेरिकी बाजार पर क्या असर पड़ेगा, यह देखना अभी बाकी है. जब तक अलीबाबा के इस नए मॉडल पर दुनिया मुहर नहीं लगाती, तब तक हमें इंतजार करना होगा.
DeepSeek को लेकर इतना हंगामा क्यों?
दरअसल, DeepSeek की सबसे ज़्यादा चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि यह तकनीकी तौर पर जितना आधुनिक है, उतना ही खर्च के मामले में सबसे किफ़ायती AI मॉडल भी है. DeepSeek के आधिकारिक WeChat account पर दावा किया गया कि DeepSeek-R1 OpenAI के GPT-1 मॉडल से 20 से 50 गुना सस्ता है. इसके बाद आए DeepSeek-V3 को $6 million की लागत के Nvidia H800 chips की मदद से तैयार किया गया है. यह चिप्स ही किसी कंप्यूटर की कंप्यूटिंग पावर यानी उसकी गणना क्षमता को निर्धारित करती हैं. Nvidia के जो ताज़ा चिप्स हैं, वे इससे कहीं आगे के हैं. लेकिन अमेरिका द्वारा चीन को इन चिप्स के निर्यात पर रोक की वजह से चीन इन आधुनिकतम चिप्स का इस्तेमाल नहीं कर पाया. फिर भी DeepSeek ने इनसे कहीं कमतर चिप्स का इस्तेमाल कर भी कमाल कर दिया है. हालांकि, DeepSeek के दावों पर सवाल भी कम नहीं उठ रहे हैं.
Scale AI के CEO Alexandr Wang ने गुरुवार को CNBC के एक इंटरव्यू में बिना कोई ठोस सबूत दिए यह दावा किया कि DeepSeek ने अपने मॉडल में 50 हज़ार Nvidia H100 चिप्स का इस्तेमाल किया है. उनके इस दावे का मतलब यह है कि DeepSeek कंपनी झूठ बोल रही है, जो कह रही है कि उसने Nvidia H800 chips का इस्तेमाल किया है. Alexandr Wang का कहना है कि यह बात इसलिए सार्वजनिक नहीं की जाएगी, क्योंकि ऐसा करने से advanced AI chips के चीन को निर्यात पर लगे अमेरिका के एक्सपोर्ट कंट्रोल की पोल खुल जाएगी.
उद्योग जगत और बाज़ार पर गहरी रिसर्च करने वाली दुनिया की एक नामी कंपनी Bernstein Research के जानकार भी इससे पहले कह चुके हैं कि अपने V3 मॉडल के प्रशिक्षण के लिए DeepSeek ने जो कंप्यूटिंग पावर की लागत बताई है, उससे कहीं ज़्यादा खर्च किया है.
DeepSeek के पीछे है कौन?
DeepSeek चीन के Hangzhou की एक स्टार्टअप है, जिसमें सबसे बड़े शेयर होल्डर हैं Liang Wenfeng, जो quantitative hedge fund High-Flyer के सह-संस्थापक हैं. Liang ने सबसे पहले मार्च 2023 में अपने आधिकारिक WeChat account पर ऐलान किया था कि वह ट्रेडिंग से आगे जाकर अब अपने संसाधनों को एक नए और स्वतंत्र रिसर्च ग्रुप पर लगाने जा रहे हैं, जो Artificial General Intelligence के क्षेत्र में काम करेगा. उसी साल DeepSeek कंपनी की स्थापना की गई. अभी यह साफ़ नहीं है कि High-Flyer ने DeepSeek में कितना निवेश किया है, लेकिन High-Flyer का दफ़्तर उसी इमारत में है, जिसमें DeepSeek का दफ़्तर भी स्थित है.
DeepSeek की कामयाबी चीन की राजनीति से जुड़े दिग्गजों की ज़ुबान पर है. जिस दिन DeepSeek-R1 को रिलीज किया गया, उसी दिन उसके संस्थापक Liang चीन के प्रधानमंत्री Li Qiang द्वारा कारोबारियों और विशेषज्ञों के लिए बुलाई गई. इस बैठक में Liang की मौजूदगी यह बता रही है कि DeepSeek की कामयाबी चीन द्वारा अमेरिका के एक्सपोर्ट कंट्रोल का जवाब है और AI जैसे सामरिक क्षेत्र में चीन के अपने पैरों पर खड़े होने की निशानी है.
DeepSeek का सबसे ताज़ा संस्करण 20 जनवरी को रिलीज किया गया, जिसने AI के जानकारों को अचंभित कर दिया. इसके बाद, Make America Great Again के नारे के साथ सत्ता में आए अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप को कहना पड़ा कि अमेरिका की टेक कंपनियों के लिए यह wake-up call यानी जागने की घंटी है और उन्हें अब अपनी जीत पर ध्यान देना चाहिए.
उधर, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पहले ही कह चुके हैं कि AI उनकी टॉप प्रायोरिटी है. तो, AI के क्षेत्र में चीन और अमेरिका की प्रतिद्वंदिता कहां तक पहुंचती है, यह देखना दिलचस्प रहेगा.
आंकड़ों पर प्रशिक्षण दिया जाता है. आपने देखा होगा कि अगर आप किसी सवाल के लिए गूगल से भी पूछते हैं, तो सबसे पहला जवाब उसका AI ही देता है और अपने जवाब के समर्थन में जो रिसर्च इस्तेमाल करता है, उसका लिंक भी देता है. कुल मिलाकर, AI दूसरे प्रकाशन समूहों के काम का इस्तेमाल कर अपना जवाब तैयार करता है. OpenAI भी यही कर रहा है. और इसी को लेकर भारत की तमाम डिजिटल मीडिया कंपनियां मिलकर OpenAI के ख़िलाफ़ कोर्ट में जा रही हैं. इसमें कई अख़बारों और डिजिटल न्यूज़ प्लेटफॉर्म्स शामिल हैं. उनका तर्क है कि OpenAI ग़लत तरीके से उनकी कॉपीराइट सामग्री का इस्तेमाल अपने फ़ायदे के लिए कर रहा है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, इस केस से जुड़े दस्तावेज़ों में तर्क दिया गया है कि OpenAI का काम Digital News Publishers Association (DNPA) के सदस्यों और अन्य मीडिया संगठनों के कीमती कॉपीराइट के लिए एक खतरा है. अभी तक इन भारतीय मीडिया संस्थानों के ताजा आरोपों पर OpenAI की तरफ से कोई जवाब नहीं आया है. इस तरह के पुराने आरोपों पर OpenAI कहता रहा है कि उसके AI सिस्टम सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध डेटा का उचित इस्तेमाल करता है. वैसे, इससे पहले अमेरिका में न्यू यॉर्क टाइम्स ने ऐसे ही मामले में OpenAI पर केस किया था. उस मामले में भी यह आरोप लगाया गया था कि OpenAI ने अपने AI चैटबॉट्स को प्रशिक्षण देने और ग्राहकों को सूचना पहुंचाने के लिए उसके लाखों लेखों का इस्तेमाल किया.
हालांकि, हाल के महीनों में OpenAI ने दुनिया की कई नामी पत्रिकाओं जैसे Time magazine, The Financial Times, Business Insider, और France के Le Monde के कंटेंट को दिखाने के लिए उनके साथ करार किए हैं. बता दें कि यूजर्स की संख्या के मामले में चैट जीपीटी का इस्तेमाल अमेरिका के बाद सबसे ज़्यादा भारत में ही हो रहा है.