प्रतीकात्मक चित्र
नई दिल्ली:
पूरा दिल्ली शहर प्रदूषण के शिकंजे में है, तो दिल्ली और केंद्र सरकार पूरी न्यायपालिका के दबाव में। वक्त पर कदम नहीं उठाए तो अब सरकार को सुप्रीम कोर्ट से लेकर एनजीटी तक में जवाब देना पड़ रहा है। यानी अब सरकार को देश की सबसे बड़ी अदालत, दिल्ली हाईकोर्ट की दो बेंच और एनजीटी के सारे सवालों से गुजरना होगा। साथ ही उसे अपने फार्मूले पर कोर्ट की मुहर भी लगानी होगी।
इसकी शुरुआत 4 दिसम्बर से हुई जब दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस बीडी अहमद ने सरकार को लताड़ लगाते हुए कहा कि पूरा शहर गैस चेंबर बन गया है। सरकार के पास कोई एक्शन प्लान नहीं है। कोर्ट ने कहा कि 21 दिसम्बर तक प्लान कोर्ट में दाखिल करें।
अगले ही दिन दिल्ली सरकार ने सम विषम गाड़ियों का प्लान तैयार कर लिया। केजरीवाल सरकार के लिए राहत की खबर 6 दिसंबर को आई जब नए चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने कहा कि दिल्ली में प्रदूषण को लेकर चिंता हो रही है। इस मामले में वो और सुप्रीम कोर्ट के जज भी कार पूल करने को तैयार हैं। दिल्ली के सम विषम गाड़ियों के प्रस्ताव से सहमति जताते हुए जस्टिस ठाकुर ने कहा कि सवाल ये है कि इस योजना से प्रदूषण को कितना काबू किया जा सकता है।
इसी दौरान इस फार्मूले को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर दी गई। 9 दिसम्बर को हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस जी रोहिणी ने सुनवाई की और कहा कि सम विषम गाड़ियों पर दिल्ली सरकार के फैसले का इंतजार किया जाना चाहिए क्योंकि ये अभी प्रस्ताव है। उसके बाद 23 दिसम्बर को सुनवाई तय की गई है।
वहीं ग्रीन टैक्स मामले में सुनवाई के दौरान 10 दिसम्बर को चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि प्रदूषण से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छवि खराब हुई, इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के जज के सामने शर्मिंदगी महसूस हुई। केंद्र और दिल्ली सरकार को चाहिए था कि पहले ही बैठकर कोई योजना तैयार करते लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। अब जो कदम उठाए जा रहे हैं वो इमरजेंसी हालात के लिए हैं। उन्होंने आदेश दिया कि दिल्ली और केंद्र सरकार 15 दिसम्बर तक ठोस प्रस्ताव लेकर आएं।
मुसीबत यहीं खत्म नहीं हुई। लगातार वायु प्रदूषण को लेकर सुनवाई कर रही एनजीटी ने शुक्रवार को दिल्ली सरकार पर सवाल उठाए।
एनजीटी चेयरमैन जस्टिस स्वतंत्र कुमार ने कहा कि सरकार का सम विषम गाड़ियों का फैसला सही नहीं लगता क्योंकि इससे लोग दूसरी गाड़ी खरीदने की कोशिश करेंगे। इसके अलावा कारों को हटाकर दिल्ली में हजारों बसें चलेंगी तो प्रदूषण कैसे खत्म होगा। साफ है कि अब सरकार को सभी सवालों के जवाब देने होंगे।
इसकी शुरुआत 4 दिसम्बर से हुई जब दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस बीडी अहमद ने सरकार को लताड़ लगाते हुए कहा कि पूरा शहर गैस चेंबर बन गया है। सरकार के पास कोई एक्शन प्लान नहीं है। कोर्ट ने कहा कि 21 दिसम्बर तक प्लान कोर्ट में दाखिल करें।
अगले ही दिन दिल्ली सरकार ने सम विषम गाड़ियों का प्लान तैयार कर लिया। केजरीवाल सरकार के लिए राहत की खबर 6 दिसंबर को आई जब नए चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने कहा कि दिल्ली में प्रदूषण को लेकर चिंता हो रही है। इस मामले में वो और सुप्रीम कोर्ट के जज भी कार पूल करने को तैयार हैं। दिल्ली के सम विषम गाड़ियों के प्रस्ताव से सहमति जताते हुए जस्टिस ठाकुर ने कहा कि सवाल ये है कि इस योजना से प्रदूषण को कितना काबू किया जा सकता है।
इसी दौरान इस फार्मूले को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर दी गई। 9 दिसम्बर को हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस जी रोहिणी ने सुनवाई की और कहा कि सम विषम गाड़ियों पर दिल्ली सरकार के फैसले का इंतजार किया जाना चाहिए क्योंकि ये अभी प्रस्ताव है। उसके बाद 23 दिसम्बर को सुनवाई तय की गई है।
वहीं ग्रीन टैक्स मामले में सुनवाई के दौरान 10 दिसम्बर को चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि प्रदूषण से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छवि खराब हुई, इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के जज के सामने शर्मिंदगी महसूस हुई। केंद्र और दिल्ली सरकार को चाहिए था कि पहले ही बैठकर कोई योजना तैयार करते लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। अब जो कदम उठाए जा रहे हैं वो इमरजेंसी हालात के लिए हैं। उन्होंने आदेश दिया कि दिल्ली और केंद्र सरकार 15 दिसम्बर तक ठोस प्रस्ताव लेकर आएं।
मुसीबत यहीं खत्म नहीं हुई। लगातार वायु प्रदूषण को लेकर सुनवाई कर रही एनजीटी ने शुक्रवार को दिल्ली सरकार पर सवाल उठाए।
एनजीटी चेयरमैन जस्टिस स्वतंत्र कुमार ने कहा कि सरकार का सम विषम गाड़ियों का फैसला सही नहीं लगता क्योंकि इससे लोग दूसरी गाड़ी खरीदने की कोशिश करेंगे। इसके अलावा कारों को हटाकर दिल्ली में हजारों बसें चलेंगी तो प्रदूषण कैसे खत्म होगा। साफ है कि अब सरकार को सभी सवालों के जवाब देने होंगे।
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