नई दिल्ली:
दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि उसने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के लापता छात्र नजीब अहमद का पता लगाने के लिए पुलिस से संबंधित लोगों का पॉलीग्राफ परीक्षण कराने जैसी अन्य तरकीबों की संभावना तलाशने को कहा है क्योंकि अन्य सभी तरकीबों का कोई परिणाम नहीं निकला है. न्यायमूर्ति जी एस सिस्तानी तथा न्यायमूर्ति विनोद गोयल की पीठ ने कहा, ‘छात्र अक्टूबर 2016 में लापता हुआ था और अब फरवरी का महीना आ चुका है. लगभग चार महीने हो गए लेकिन किसी भी सुराग का कोई परिणाम नहीं निकला है. हमने पॉलीग्राफ परीक्षण के लिए कहा है क्योंकि अन्य सभी तरकीबों का कोई परिणाम नहीं निकला है.’ पीठ मामले में संदिग्ध नौ छात्रों में से एक छात्र के आवेदन पर सुनवाई कर रही थी. आवेदन में हाई कोर्ट के 14 दिसंबर और 22 दिसंबर 2016 के आदेशों को वापस लेने का आग्रह किया गया है.
आवेदन में कहा गया है कि इन दो आदेशों के जरिए अदालत जांच के तरीके को विनियमित कर रही है और इसलिए जांच पूर्वाग्रह युक्त हो गई तथा संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 के तहत उनके अधिकारों का उल्लंघन हुआ है. छात्र ने दिल्ली पुलिस द्वारा उसे जारी किए गए एक नोटिस को भी चुनौती दी है जिसमें उसे लाई-डिटेक्टर टेस्ट के लिए अपनी सहमति देने के वास्ते अदालत में पेश होने को कहा गया है.
दिल्ली सरकार के स्थाई अधिवक्ता राहुल मेहरा ने आवेदन का विरोध किया और कहा कि इसी छात्र ने पूर्व में भी अन्य वकील के जरिए यही आवेदन दायर किया था और उच्च न्यायालय ने इसे यह कहकर निपटा दिया था कि छात्र को आगे आना चाहिए. मेहरा ने कहा कि वर्तमान आवेदन ‘अदालत की प्रक्रिया का घोर उल्लंघन’ है. उन्होंने कहा कि इस तरह के आवेदन दायर कर ‘पुलिस को उन क्षेत्रों में जाने को विवश किया जा रहा है जहां यह अब तक ऐसा नहीं कर पाई थी.’ उन्होंने कहा कि छात्रों को ‘छात्रों की तरह व्यवहार करना चाहिए’ और वे ‘कानून से उपर नहीं हैं.’
छात्र के वकील ने कहा कि वह पुलिस के नोटिस में इस्तेमाल की गई भाषा से क्षुब्ध हैं जो आवश्यकता से अधिक प्रतिक्रिया प्रतीत होती है. पीठ ने अधिवक्ता से कहा कि यदि छात्र लाई-डिटेक्टर परीक्षण नहीं चाहता तो वह इससे इनकार कर सकता है. इसने कहा कि लेकिन मौजूदा मामले में ‘छात्रों को स्वयं आगे आकर और जांच में शामिल होकर पुलिस की मदद करनी चाहिए.’ पीठ ने कहा कि पुलिस नजीब के लापता होने के महीनों बाद भी छात्रों को थाने लेकर नहीं गई, जो कि आम तौर पर होता नहीं है. इसने कहा, ‘इस तरह क्या हम उस पर आवश्यकता से अधिक या आवश्यकता से कम प्रतिक्रिया का आरोप लगा सकते हैं.’ इसने पूछा, ‘यदि लापता छात्र के कमरे में रहने वाले छात्र के लाई डिटेक्टर परीक्षण के लिए कहा जा सकता है तो उन छात्रों से क्यों नहीं जिनसे उसका (नजीब का) झगड़ा हुआ था.’
पीठ ने कहा, ‘हम यह नहीं कह रहे हैं कि सिर्फ झगड़े की वजह से उन्होंने उसके साथ कुछ कर दिया. उन्हें घिरा हुआ महसूस क्यों करना चाहिए? आप आज जा सकते हैं. यदि आप हां कहना चाहते हैं तो हां कहें. यदि आप ना कहना चाहते हैं तो ना कहें. आशंकित नहीं हों. आपके लिए कानून खुला है. ज्यादा संवेदनशील ना हों.’ अदालत ने मामले को 13 फरवरी के लिए सूचीबद्ध कर दिया. इसने यह भी कहा कि अदालत जांच की निगरानी नहीं कर रही है जैसी कि छात्रों ने आशंका जताई है. वह नजीब का पता लगाने के लिए सिर्फ परामर्श दे रही है. नजीब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े छात्रों के साथ कथित झगड़े के बाद पिछले साल 15 अक्टूबर से जेएनयू हॉस्टल से लापता है. एबीवीपी ने उसके लापता होने की घटना में अपनी संलिप्तता से इनकार किया है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
आवेदन में कहा गया है कि इन दो आदेशों के जरिए अदालत जांच के तरीके को विनियमित कर रही है और इसलिए जांच पूर्वाग्रह युक्त हो गई तथा संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 के तहत उनके अधिकारों का उल्लंघन हुआ है. छात्र ने दिल्ली पुलिस द्वारा उसे जारी किए गए एक नोटिस को भी चुनौती दी है जिसमें उसे लाई-डिटेक्टर टेस्ट के लिए अपनी सहमति देने के वास्ते अदालत में पेश होने को कहा गया है.
दिल्ली सरकार के स्थाई अधिवक्ता राहुल मेहरा ने आवेदन का विरोध किया और कहा कि इसी छात्र ने पूर्व में भी अन्य वकील के जरिए यही आवेदन दायर किया था और उच्च न्यायालय ने इसे यह कहकर निपटा दिया था कि छात्र को आगे आना चाहिए. मेहरा ने कहा कि वर्तमान आवेदन ‘अदालत की प्रक्रिया का घोर उल्लंघन’ है. उन्होंने कहा कि इस तरह के आवेदन दायर कर ‘पुलिस को उन क्षेत्रों में जाने को विवश किया जा रहा है जहां यह अब तक ऐसा नहीं कर पाई थी.’ उन्होंने कहा कि छात्रों को ‘छात्रों की तरह व्यवहार करना चाहिए’ और वे ‘कानून से उपर नहीं हैं.’
छात्र के वकील ने कहा कि वह पुलिस के नोटिस में इस्तेमाल की गई भाषा से क्षुब्ध हैं जो आवश्यकता से अधिक प्रतिक्रिया प्रतीत होती है. पीठ ने अधिवक्ता से कहा कि यदि छात्र लाई-डिटेक्टर परीक्षण नहीं चाहता तो वह इससे इनकार कर सकता है. इसने कहा कि लेकिन मौजूदा मामले में ‘छात्रों को स्वयं आगे आकर और जांच में शामिल होकर पुलिस की मदद करनी चाहिए.’ पीठ ने कहा कि पुलिस नजीब के लापता होने के महीनों बाद भी छात्रों को थाने लेकर नहीं गई, जो कि आम तौर पर होता नहीं है. इसने कहा, ‘इस तरह क्या हम उस पर आवश्यकता से अधिक या आवश्यकता से कम प्रतिक्रिया का आरोप लगा सकते हैं.’ इसने पूछा, ‘यदि लापता छात्र के कमरे में रहने वाले छात्र के लाई डिटेक्टर परीक्षण के लिए कहा जा सकता है तो उन छात्रों से क्यों नहीं जिनसे उसका (नजीब का) झगड़ा हुआ था.’
पीठ ने कहा, ‘हम यह नहीं कह रहे हैं कि सिर्फ झगड़े की वजह से उन्होंने उसके साथ कुछ कर दिया. उन्हें घिरा हुआ महसूस क्यों करना चाहिए? आप आज जा सकते हैं. यदि आप हां कहना चाहते हैं तो हां कहें. यदि आप ना कहना चाहते हैं तो ना कहें. आशंकित नहीं हों. आपके लिए कानून खुला है. ज्यादा संवेदनशील ना हों.’ अदालत ने मामले को 13 फरवरी के लिए सूचीबद्ध कर दिया. इसने यह भी कहा कि अदालत जांच की निगरानी नहीं कर रही है जैसी कि छात्रों ने आशंका जताई है. वह नजीब का पता लगाने के लिए सिर्फ परामर्श दे रही है. नजीब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े छात्रों के साथ कथित झगड़े के बाद पिछले साल 15 अक्टूबर से जेएनयू हॉस्टल से लापता है. एबीवीपी ने उसके लापता होने की घटना में अपनी संलिप्तता से इनकार किया है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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