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दिल्ली के इस बाजार के मसालों की खुशबू से आज भी महकता है आपका किचन, मुगलकाल से इस बात के लिए है मशहूर

खरी बावली बाजार में जाने का सबसे उचित समय नवंबर और फरवरी के बीच का होता है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि इस दौरान दिल्ली का तापमान काफी कम होता है.  

दिल्ली के इस बाजार के मसालों की खुशबू से आज भी महकता है आपका किचन, मुगलकाल से इस बात के लिए है मशहूर
आज भी मशहूर हैं खरी बावली के मसाले
  • दिल्ली का खरी बावली बाजार एशिया का सबसे बड़ा मसाला बाजार है, जिसकी स्थापना सलीम शाह के शासनकाल में हुई थी
  • खरी बावली नाम खारे पानी वाले कुएं के कारण पड़ा था जो इस बाजार के पास मुगल काल में मौजूद था
  • खरी बावली बाजार तक पहुंचने का सबसे आसान तरीका मेट्रो है. चावड़ी बाजार यहां का नजदीकी मेट्रो स्टेशन है.
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नई दिल्ली:

दिल्ली में एक बाजार ऐसा भी है जिसके मसालों की खुशबू से ना सिर्फ भारत बल्कि विदेशों में भी लोगों की रसोई महग उठती है. ये बाजार एशिया का सबसे बड़ा मसाला बाजार है. चलिए इससे पहले कि आपको इस बाजार के बारे में विस्तार से कुछ बताएं, आपको ये बता दें कि इस बाजार को ख्वाजा अब्दुल्ला लाजर कुरैशी ने 1551 में सलीम शाह के शासनकाल के दौरान बनाया था. यहां मिलने वालों मसालों की गुणवत्ता जहां सर्वोत्तम होती है वहीं देश के दूसरे बाजारों की तुलना में यहां इनकी कीमत भी कम होती. इसकी यह खासीयत ही इस बाजार को देश के दूसरे बाजारों से इसे अलग बनाती है. 

अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर देश की राजधानी दिल्ली में ये कौन सा बाजार है जिसकी महक दुनिया के दूसरे देशों तक फैल चुकी है.इस बाजार का नाम है खरी बावली. जैसे इस बाजार के मसाले अनोखे होते हैं वैसे ही इसका नाम भी काफी अलग है. 

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खरी बावली का मतलब क्या होता है? 

मसालों के लिए फेमस ये बाजार मुगल काल के दौरान अस्तित्व में आया था. इस बाजार का नाम दो शब्दों से जुड़कर बना है. पहला खरी और दूसरा बावली. यहां खरी का मतलब खारे पानी से होता है, जबकि बावली का मतलब होता है सीढ़ीदार कुआं. अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर किसी बाजार का नाम खरी बावली क्यों रखा गया होगा. इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है. कहानी कुछ ऐसी है कि जिस समय और जिस जगह ये बाजार अस्तित्व में आया था उस दौरान वहां पर एक खारे पानी का कुआं हुआ करता था. उसी कुएं की वजह से इस बाजार  तक जाने के लिए उस समय के लिए खरी बावली वाला बाजार, के नाम से पुकारते थे. धीरे-धीरे इसका नाम खरी बावली ही पड़ गया. 

बाजार में कई सौ साल पुरानी हैं दुकाने

ये बाजार कितनी पुरानी है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि यहां कई दुकानें ऐसी हैं जिनके मालिकों की ये 20वीं पीढ़ी है. यानी पीछे की 20 पीढ़ियों से इस दुकान को चलाया जा रहा है. इस बाजार मसालों की खरीद के लिए आए दिन बड़ी संख्या में थोक और खुद्रा व्यापारी यहां आते हैं. मोलभाव करते हैं और उचित दामों पर मसालों की बड़ी खेप को अपने साथ लेकर जाते हैं. 

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इस बाजार में जाने का सबसे बेस्ट समय कौन सा? 

आपको बता दें कि खरी बावली बाजार में जाने का सबसे उचित समय नवंबर और फरवरी के बीच का होता है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि इस दौरान दिल्ली का तापमान काफी कम होता है.  सर्दियों के मौसम में इस बाजार में मार्केटिंग करने का अनुभव गर्मियों की तुलना ज्यादा बेहतर माना जाता है. बात अगर बाजार के खुलने की करें तो ये सुबह 10 बजे के करीब खुलता है जबकि  शाम में आठ बजे तक यहां दुकानें खुली होती हैं. 

आखिर इस बाजार तक पहुंचे कैसे

अगर आप भी इस बाजार में खीरदारी करने जाना चाहते हैं तो आप इसके लिए दिल्ली मेट्रो ले सकते हैं. इस बाजार के सबसे करीबी स्टेशन चावड़ी बाजार है. साथ ही चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन पर उतर कर भी इस बाजार तक पहुंचा जा सकता है. अगर आप अपने वाहन से जाना चाहें तो भी आप यहां तक पहुंच सकते हैं. हालांकि, ये इलाका बेहद भीड़भाड़ वाला है ऐसे में निजी वाहन से यहां तक जाना टाल सकें तो ये ज्यादा सही होगा. 

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