दिल्ली पुलिस ने फर्जी लाइसेंस बनाने वाले एक रैकेट का भंडाफोड़ करते हुए दो आरोपियों को गिरफ्तार किया है. गिरफ्तार आरोपियों की पहचान चंद्रभान मिश्रा और कमल के रूप में की है. मामला दक्षिणी दिल्ली स्थित साकेत थाने का है. पुलिस के अनुसार गिरफ्तार आरोपी बीते साल-डेढ़ साल से सक्रिय थे. इस दौरान उन्होंने बड़ी संख्या में लोगों के फर्जी लाइसेंस बनाए. आरोपी फर्जी लाइसेंस बनाने के लिए सिम कार्ड का इस्तेमाल करते थे. पुलिस ने आरोपियों के पास से कई फर्जी लाइसेंस और दस्तावेज कब्जे में लिया है. पुलिस फिलहाल गिरोह के लिए काम करने वाले अन्य आरोपियों की भी तलाश कर रही है.
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दक्षिणी दिल्ली जिले के डीसीपी विजय कुमार ने बताया कि हमें कुछ दिन पहले सूचना मिली थी कि इलाके में फर्जी लाइसेंस बनाने वाला एक गिरोह सक्रिय है. इसके बाद हमनें साकेत एसएचओ केशव माथुर की देखरेख में सब-इंस्पेक्टर जितेंद्र मलिक और हेड कांस्टेबल मुकेश की विशेष टीम बनाई. हमारी टीम को जांच में पता चला कि आरोपी जरूरतमंदों से पैसे लेकर उन्हें एक से दो दिन में लाइसेंस दे रहे हैं. मामले का पता तब लगा जब इस गिरोह के हाथों ठगे जाने के बाद एक युवक ने साकेत थाने में शिकायत दर्ज कराई. पीड़ित ने पुलिस को दी शिकायत में बताया कि आरोपी ने उसका लाइसेंस बनाने के नाम पर छह हजार रुपये लिए. लेकिन जो लाइसेंस उसे दिया गया वह फर्जी था. इस शिकायत के आधार पर ही हमारी विशेष टीम ने आरोपियों की तलाश शुरू की. कुछ दिन की जांच के बाद हमें चंद्रभान मिश्रा के बारे में जानकारी मिली. पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया और इससे पूछताछ के आधार पर ही हमें इस पूरे रैकेट का पता चला. डीसीपी विजय ने बताया कि इस रैकेट को चलाने वाले कुछ अन्य लोगों की भी हम तलाश कर रहे हैं. उन्हें भी जल्द ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा.
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गुमराह करने के लिए करते थे सिम कार्ड के चिप का इस्तेमाल
पुलिस के अनुसार आरोपी लोगों को गुमराह करने के लिए फर्जी लाइसेंस में सिम कार्ड का चिप लगाते थे. वह पहले लाइसेंस बनवाने वाले से उसके दस्तावेज लेते थे. उसके बाद अलग-अलग लोगों से अलग-अलग पैसे चार्ज किए जाते थे. लाइसेंस असली जैसा दिखे इसके लिए आरोपी पुराने पड़े सीम कार्ड का चिप निकालकर उसे फर्जी लाइसेंस पर लगा देते थे. इसके बाद कार्ड का लेमिनेशन ऐसे किया जाता था कि वह बिल्कुल असली सा दिखे.
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फर्जी लाइसेंस का कुछ ऐसे खुला राज
पुलिस के अनुसार इस रैकेट का पता किसी को नहीं चलता अगर शिकायतकर्ता ने आरोपियों द्वारा दिए गए लाइसेंस पर लिखे नंबर को विभाग की वेबसाइट पर जांचा नहीं होता. शिकायतकर्ता ने पुलिस को दी शिकायत में बताया कि जब उसने अपने लाइसेंस की प्रमाणिकता जांचने की कोशिश की तो उसे इस नंबर से कोई लाइसेंस नहीं मिला. इसके बाद ही उसने पुलिस को सूचना दी.
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देश भर के आरटीओ ऑफिस की थी जानकारी
पुलिस की जांच में पता चला है कि आरोपियों के पास देश भर के आरटीओ ऑफिस(जहां से लाइसेंस बनता है) के कोड की जानकारी थी. वह एक जगह से बैठे बैठे ही देश के किसी भी आरटीओ के कोर्ड का इस्तेमाल कर वहां का लाइसेंस बनाते थे. पुलिस सूत्रों के अनुसार आरोपियों ने बीते डेढ़ साल में 100 से ज्यादा लोगों को चूना लगाया है.
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