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जम्मू-कश्मीर को 6 साल में मिला 80 हजार करोड़ का निवेश, अनुच्छेद 370 हटने के बाद कैसे बही विकास की बयार

जम्‍मू-कश्‍मीर में 6 साल में आर्थिक विकास और इंफ्रास्ट्रक्चर के मोर्चे पर भी विकास की बयार बही है. फिर चाहे वो जम्मू-कश्मीर में चिनाब नदी पर बना दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे आर्च पुल हो या फिर पहाड़ को चीरते हुए हाइवे का विस्‍तार. 

जम्मू-कश्मीर को 6 साल में मिला 80 हजार करोड़ का निवेश, अनुच्छेद 370 हटने के बाद कैसे बही विकास की बयार
  • जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाए जाने के 6 वर्षों में विकास, शांति और लोकतंत्र की दिशा में खूब प्रगति हुई.
  • 5 अगस्त 2019 को विशेष दर्जा खत्म करने के बाद शासन, इंफ्रास्ट्रक्चर और अन्‍य मोर्चे पर व्यापक सुधार हुए.
  • 6 वर्षों में जम्मू-कश्मीर में 80,000 करोड़ से अधिक का निवेश हुआ है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला है.
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नई दिल्‍ली:

जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाए जाने के 6 साल पूरे हो गए हैं. इन 6 वर्षों में जम्मू-कश्मीर ने विकास, शांति और लोकतंत्र की दिशा में एक लंबी यात्रा तय की है. 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटाकर जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किया गया था, जिसके बाद यहां शासन, इंफ्रास्ट्रक्चर, पर्यटन, स्वास्थ्य, शिक्षा में बड़े व्‍यापक बदलाव आए हैं.  इस दौरान आर्थिक विकास और इंफ्रास्ट्रक्चर के मोर्चे पर भी विकास की बयार बही है और विकास-पथ पर सरकार ने कई मील के पत्‍थर गाड़े. फिर चाहे वो जम्मू-कश्मीर में चिनाब नदी पर बना दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे आर्च पुल हो या फिर पहाड़ को चीरते हुए हाइवे का विस्‍तार. 

80,000 करोड़ रुपये से ज्‍यादा का निवेश 

समाचार एजेंसी IANS की रिपोर्ट के मुताबिक, इन छह सालों में जम्मू-कश्मीर में 80,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश हुआ है. सरकार का दावा है कि नागरिक भागीदारी बढ़ी है, इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास हुआ है और हिंसा में कमी आई है.

रोजगार और सशक्तीकरण

प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (PMEGP), मुमकिन और तेजस्विनी जैसी योजनाओं ने हजारों लोगों, खासकर महिलाओं को उद्यमिता के लिए सशक्त बनाया है. आलोचनाओं के बावजूद, स्पष्ट दिखता है कि जम्मू-कश्मीर संघर्ष और अनिश्चितता से बाहर निकलकर विकास, आशा और लोकतांत्रिक आकांक्षाओं की ओर बढ़ रहा है. 

आर्टिकल 370 हटने के बाद कैसा रहा चुनाव?

5 अगस्त 2019 को आर्टिकल 370 हटाया गया था, जिसके बाद जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) में विभाजित कर दिया गया. इस पुनर्गठन के बाद जम्मू-कश्मीर में लंबे समय तक कोई विधानसभा चुनाव नहीं हुआ. 2014 में आखिरी विधानसभा चुनाव हुए थे.  2018 में वहां की गठबंधन सरकार बिखर गई और नवंबर 2018 में राज्यपाल शासन लागू हो गया. 

6 साल बाद 2024 में विधानसभा चुनाव हुए.  18 सितंबर से 1 अक्टूबर तक तीन चरणों में वोटिंग हुई. इस चुनाव में जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (JKNC) 42 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी, जबकि बीजेपी ने 29 सीटें जीतीं. कांग्रेस और पीडीपी समेत अन्य पार्टियों ने भी कुछ सीटें हासिल कीं. 

विकास पथ पर कई मील के पत्‍थर 

  • कनेक्टिविटी: उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक पूरी तरह से चालू हो गया है, जबकि जोजिला और जेड-मोड़ जैसी बड़ी सुरंग परियोजनाएं कनेक्टिविटी को बेहतर बना रही हैं.

  • डिजिटल पहुंच: भारतनेट के तहत 9,700 से ज्यादा घरों को डिजिटल रूप से जोड़ा गया है, जिससे दूरदराज के इलाकों में इंटरनेट की पहुंच बढ़ी है.
  • स्वास्थ्य और शिक्षा: आईआईटी जम्मू जैसे नए संस्थान और एम्स अवंतीपोरा (जो 2025 के अंत तक शुरू होगा) शिक्षा के नए अवसर प्रदान कर रहे हैं. आयुष्मान भारत SEHAT के तहत 7 लाख निवासियों को मुफ्त इलाज मिल रहा है.

आर्थिक विकास में पर्यटन का अहम रोल 

जम्‍मू-कश्‍मीर की अर्थव्‍यवस्‍था में पर्यटन का अहम रोल रहा है. यहां पर्यटकों की संख्या लगातार बढ़ रही है. साल 2021 में 7 लाख पर्यटक आए थे, जबकि 2024 में ये संख्या बढ़कर 35 लाख तक पहुंच गई. 

श्रीनगर को यूनेस्को 'वर्ल्ड क्राफ्ट सिटी' का दर्जा मिला है. 2023 में सफल G20 पर्यटन कार्य समूह की बैठक हुई, जिससे कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय समुदाय का विश्वास बढ़ा है.  2024 में अकेले ट्यूलिप गार्डन में 8.5 लाख पर्यटक आए. 

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