नई दिल्ली:
दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में लगातार बढ़ रही भीड़ को कम करने का दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने एक नया तरीका निकाला है. दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री का कहना है कि सरकारी अस्पताल में अब फीस लेनी शुरू की जाए. दिल्ली के जो नागरिक मरीज के तौर पर आएंगे उनका पैसा दिल्ली सरकार देगी, जबकि दूसरे राज्यों खासतौर से उत्तर प्रदेश और हरियाणा के नागरिक अगर मरीज बनकर आएंगे तो तो स्वास्थ्य सेवाओं की फीस उनसे वसूली जाए. इससे दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में भीड़ कम हो सकती है.
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दिल्ली के चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय के 15 साल पूरे होने के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा, 'मैंने तो डॉक्टर साहब से कहा है कि आप सब कुछ पेड कर दो. दिल्ली वालों के पैसे मैं दे दूंगा, जिस राज्य से जो आए वह दे दे. आप मजे से काम करो उनका. उनको तो वहां के अस्पताल इसलिए भेज रहे हैं, क्योंकि वहां की राज्य सरकारें अपने यहां कुछ करती नहीं. अपने आप कुछ करते नहीं और हमारे यहां भेज देते हैं. उनकी सरकार की जिम्मेदारी है कि या तो नए अस्पताल खोलें इलाज करें और अगर नहीं करते तो मोहता साहब (डॉ अनूप मोहता, निदेशक, चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय) को फीस दें.'
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हालांकि सत्येंद्र जैन का कहना है कि ऐसा होने पर भी प्राइवेट के मुकाबले फिर भी यहां पैसा कम ही लगेगा जो इलाज प्राइवेट में एक लाख रुपये का होता है उसके यहां पर 10 से 20 हज़ार रुपये लग जाएंगे. आप आपको बता दें कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार पिछले कुछ महीनों से अपनी इस नीति पर आगे बढ़ रही है कि दिल्ली के अस्पताल और दिल्ली के स्कूल विशेष तौर पर दिल्ली वालों के लिए हो. इसी के तहत दिल्ली सरकार ने सबसे पहले अपने सबसे अहम अस्पताल जीबी पंत अस्पताल में 50 फ़ीसदी बेड दिल्ली वालों के लिए आरक्षित किए. उसके बाद उत्तर पूर्वी दिल्ली के गुरु तेग बहादुर अस्पताल में ओपीडी में 80 फ़ीसदी आरक्षण दिल्ली के के नागरिकों के लिए लागू किया साथ ही दवाएं और बड़े टेस्ट भी केवल दिल्ली के नागरिकों के लिए मुफ़्त रखे गए हैं.
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सत्येंद्र जैन का कहना है कि 2015 में जब उनकी सरकार दिल्ली में आई थी तब सरकारी अस्पतालों में करीब 3 करोड़ सालाना ओपीडी हो रही थी, जबकि आज सालाना करीब साढ़े चार करोड़ ओपीडी हो रही है जिनको संभालना बिल्कुल असंभव है और ऐसा इसलिए क्योंकि हमने अपना सिस्टम बढ़िया किया. सत्येंद्र जैन ने दूसरी राज्य सरकारों को नसीहत देते हुए कहा कि 'जिन राज्य से यह मरीज दिल्ली भेजे जा रहे हैं वहां की राज्य सरकारें भी कुछ सोच लें अपने यहां ही कुछ कर लें! अपने अस्पतालों में इलाज तो कर लें. वह लोग रेफरल के अलावा और कुछ करते ही नहीं. उनके अस्पताल से रेफेरल आते हैं. हॉस्पिटल वाले रेफर करने में शान समझते हैं कि दिल्ली के अस्पताल चले जाओ जी. फिर तुम किस लिए बैठे हो?'
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दिल्ली के चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय के 15 साल पूरे होने के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा, 'मैंने तो डॉक्टर साहब से कहा है कि आप सब कुछ पेड कर दो. दिल्ली वालों के पैसे मैं दे दूंगा, जिस राज्य से जो आए वह दे दे. आप मजे से काम करो उनका. उनको तो वहां के अस्पताल इसलिए भेज रहे हैं, क्योंकि वहां की राज्य सरकारें अपने यहां कुछ करती नहीं. अपने आप कुछ करते नहीं और हमारे यहां भेज देते हैं. उनकी सरकार की जिम्मेदारी है कि या तो नए अस्पताल खोलें इलाज करें और अगर नहीं करते तो मोहता साहब (डॉ अनूप मोहता, निदेशक, चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय) को फीस दें.'
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हालांकि सत्येंद्र जैन का कहना है कि ऐसा होने पर भी प्राइवेट के मुकाबले फिर भी यहां पैसा कम ही लगेगा जो इलाज प्राइवेट में एक लाख रुपये का होता है उसके यहां पर 10 से 20 हज़ार रुपये लग जाएंगे. आप आपको बता दें कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार पिछले कुछ महीनों से अपनी इस नीति पर आगे बढ़ रही है कि दिल्ली के अस्पताल और दिल्ली के स्कूल विशेष तौर पर दिल्ली वालों के लिए हो. इसी के तहत दिल्ली सरकार ने सबसे पहले अपने सबसे अहम अस्पताल जीबी पंत अस्पताल में 50 फ़ीसदी बेड दिल्ली वालों के लिए आरक्षित किए. उसके बाद उत्तर पूर्वी दिल्ली के गुरु तेग बहादुर अस्पताल में ओपीडी में 80 फ़ीसदी आरक्षण दिल्ली के के नागरिकों के लिए लागू किया साथ ही दवाएं और बड़े टेस्ट भी केवल दिल्ली के नागरिकों के लिए मुफ़्त रखे गए हैं.
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सत्येंद्र जैन का कहना है कि 2015 में जब उनकी सरकार दिल्ली में आई थी तब सरकारी अस्पतालों में करीब 3 करोड़ सालाना ओपीडी हो रही थी, जबकि आज सालाना करीब साढ़े चार करोड़ ओपीडी हो रही है जिनको संभालना बिल्कुल असंभव है और ऐसा इसलिए क्योंकि हमने अपना सिस्टम बढ़िया किया. सत्येंद्र जैन ने दूसरी राज्य सरकारों को नसीहत देते हुए कहा कि 'जिन राज्य से यह मरीज दिल्ली भेजे जा रहे हैं वहां की राज्य सरकारें भी कुछ सोच लें अपने यहां ही कुछ कर लें! अपने अस्पतालों में इलाज तो कर लें. वह लोग रेफरल के अलावा और कुछ करते ही नहीं. उनके अस्पताल से रेफेरल आते हैं. हॉस्पिटल वाले रेफर करने में शान समझते हैं कि दिल्ली के अस्पताल चले जाओ जी. फिर तुम किस लिए बैठे हो?'
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