 
                                            नरेला की अनाज मंडी में धान लेकर आए किसान.
                                                                                                                        
                                        
                                        
                                                                                नई दिल्ली: 
                                        नोटबंदी हुए एक महीने से ज्यादा वक्त बीत चुका है पर अब भी किसान और मजदूरों को उनकी मेहनत का पैसा नहीं मिल पा रहा है. नौबत यह है कि किसान के पास गेहूं की बुआई करने के लिए बीज और खाद खरीदने के पैसे नहीं हैं.
उमेश और प्रदीप अलवर के एक गांव से अपनी धान बेचने नरेला मंडी आए हैं पर आढ़ती के पास इनको देने के लिए पैसे नहीं हैं. परेशान हैं कि गाड़ी का भाड़ा कहां से निकलेगा. इनके खेत में उगाई गई धान पहले 2400 रुपये क्विंटल बिक जाती थी पर अब आढ़ती 2000 रुपये में भी लेने को तैयार नहीं हैं.
नरेला देश की कुछ बड़ी अनाज मंडियों में से एक है. यहां उत्तर भारत के लगभग सभी हिस्सों से किसान अपना अनाज बेचने आते हैं. नोटबंदी के बाद किसान यहां अपना अनाज बेचने तो आ रहे हैं पर उनको अनाज के खरीददार नहीं मिल रहे हैं. आढ़ती उनको साफ कह रहे हैं कि उनके पास किसानों को देने के लिए नए नोट नहीं हैं. किसान या तो पैसे बाद में लें या फिर कम पैसों में अनाज बेच दें. बेचारा किसान क्या करे, उसे तुरंत पैसे चाहिए जिससे कि वह गेहूं बोने के लिए बीज और खाद खरीद सके. वैसे भी बुआई में 20 दिन से ज्यादा की देरी हो चुकी है.
सरकार के ऐलान के बावजूद सरकारी दुकानों में किसानों को बीज पुराने नोटों में नहीं मिल रहे हैं. बेचारा किसान "मरता क्या न करता" की स्थिति में है और अपनी धान कम पैसों में बेचने के लिए मजबूर है.
                                                                        
                                    
                                उमेश और प्रदीप अलवर के एक गांव से अपनी धान बेचने नरेला मंडी आए हैं पर आढ़ती के पास इनको देने के लिए पैसे नहीं हैं. परेशान हैं कि गाड़ी का भाड़ा कहां से निकलेगा. इनके खेत में उगाई गई धान पहले 2400 रुपये क्विंटल बिक जाती थी पर अब आढ़ती 2000 रुपये में भी लेने को तैयार नहीं हैं.
नरेला देश की कुछ बड़ी अनाज मंडियों में से एक है. यहां उत्तर भारत के लगभग सभी हिस्सों से किसान अपना अनाज बेचने आते हैं. नोटबंदी के बाद किसान यहां अपना अनाज बेचने तो आ रहे हैं पर उनको अनाज के खरीददार नहीं मिल रहे हैं. आढ़ती उनको साफ कह रहे हैं कि उनके पास किसानों को देने के लिए नए नोट नहीं हैं. किसान या तो पैसे बाद में लें या फिर कम पैसों में अनाज बेच दें. बेचारा किसान क्या करे, उसे तुरंत पैसे चाहिए जिससे कि वह गेहूं बोने के लिए बीज और खाद खरीद सके. वैसे भी बुआई में 20 दिन से ज्यादा की देरी हो चुकी है.
सरकार के ऐलान के बावजूद सरकारी दुकानों में किसानों को बीज पुराने नोटों में नहीं मिल रहे हैं. बेचारा किसान "मरता क्या न करता" की स्थिति में है और अपनी धान कम पैसों में बेचने के लिए मजबूर है.
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