चीनी मिल में गन्ना उत्पाद किसान.
नई दिल्ली:
नोटबंदी को लेकर प्रधानमंत्री चाहे जो कुछ भी कहें, किसानों और मजदूरों पर इसकी मार सबसे ज्यादा है. जो कुछ साधन संपन्न किसान हैं वे भी परेशान हैं और जिनके पास कुछ नहीं हैं वो तो बेहाल हैं ही.
मोदीनगर के गन्ना किसान राजकुमार परेशान हैं. गन्ने की नई फसल की कटाई चल रही है. लेकिन चीनी कंपनियों ने पिछला भुगतान नहीं किया है. जो थोड़ा-बहुत भुगतान मिला है वह बैंक खाते में जमा है और नोटबंदी के बाद कैश के संकट की वजह से निकालना मुश्किल हो रहा है.
राजकुमार कहते हैं, "चीनी मिलों के पास मेरा करीब 70,000 हजार रुपया फंसा है. बैंक मैनेजर पैसा नहीं दे पा रहे क्योंकि बैंकों में लाइन इतनी लंबी लग रही है. एटीएम भी हमारे इलाके में बंद हैं. हम मजदूरों के कैश में पेमेंट नहीं दे पा रहे, और घर का खर्च-बच्चों की फीस देना मुश्किल हो रहा है."
गन्ना किसानों की मुश्किल यह है कि चीनी मिल बकाया का भुगतान नहीं कर रहे और जो थोड़ा-बहुत मिला भी वह बैंकों से निकालना मुश्किल हो रहा है. इसकी नतीजा यह हुआ है कि किसान मजदूरों को पैसा नहीं दे पा रहे. कैश की कमी की वजह से मजदूरों का घर चलाना भी मुश्किल हो रहा है.
दरअसल यूपी में गन्ना किसानों और चीनी मिलों के बीच भुगतान का विवाद नया नहीं है. नई बस यह खबर है कि नोटबंदी के बाद चीनी मिलों से अब थोक व्यापारी कम माल खरीद रहे हैं. इसको आधार बनाकर चीनी मिल पेमेंट करने में देरी कर रही हैं.
राजकुमार के खेत में काम करने वाली चमनकली का संकट कही ज्यादा बड़ा है. बेटा एक महीने से अस्पताल में है. मजदूरी के पैसे मिल नहीं रहे. चमनकली एनडीटीवी से कहती हैं, "किसानों को बैंक से कैश नहीं मिल रहा है तो वे हमें कैसे पैसे देंगे. उधारी लेकर अनाज लाते हैं, इधर-उधर से...उसी से परिवार चलता है आजकल." उनके साथ काम करने वालीं अमरेश कहती हैं, "हमें कैश नहीं मिलता है. काम करने के एवज में...सिर्फ चारा मिलता है जो हम भैसों को खिलाते हैं."
एनडीटीवी की टीम जब मोदी मिल पहुंची तो वहां गन्ना किसानों की लंबी लाइन लगी थी. गन्ना किसान इकबाल सिंह कहते हैं कि उनके चार लाख बकाया हैं. अभी जो गन्ना जमा करेंगे उसका भुगतान कब होगा पता नहीं. बैंक लोन की किस्तें तक नहीं जा पा रही हैं. जाहिर है, नोटबंदी ने गन्ना किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं.
मोदीनगर के गन्ना किसान राजकुमार परेशान हैं. गन्ने की नई फसल की कटाई चल रही है. लेकिन चीनी कंपनियों ने पिछला भुगतान नहीं किया है. जो थोड़ा-बहुत भुगतान मिला है वह बैंक खाते में जमा है और नोटबंदी के बाद कैश के संकट की वजह से निकालना मुश्किल हो रहा है.
राजकुमार कहते हैं, "चीनी मिलों के पास मेरा करीब 70,000 हजार रुपया फंसा है. बैंक मैनेजर पैसा नहीं दे पा रहे क्योंकि बैंकों में लाइन इतनी लंबी लग रही है. एटीएम भी हमारे इलाके में बंद हैं. हम मजदूरों के कैश में पेमेंट नहीं दे पा रहे, और घर का खर्च-बच्चों की फीस देना मुश्किल हो रहा है."
गन्ना किसानों की मुश्किल यह है कि चीनी मिल बकाया का भुगतान नहीं कर रहे और जो थोड़ा-बहुत मिला भी वह बैंकों से निकालना मुश्किल हो रहा है. इसकी नतीजा यह हुआ है कि किसान मजदूरों को पैसा नहीं दे पा रहे. कैश की कमी की वजह से मजदूरों का घर चलाना भी मुश्किल हो रहा है.
दरअसल यूपी में गन्ना किसानों और चीनी मिलों के बीच भुगतान का विवाद नया नहीं है. नई बस यह खबर है कि नोटबंदी के बाद चीनी मिलों से अब थोक व्यापारी कम माल खरीद रहे हैं. इसको आधार बनाकर चीनी मिल पेमेंट करने में देरी कर रही हैं.
राजकुमार के खेत में काम करने वाली चमनकली का संकट कही ज्यादा बड़ा है. बेटा एक महीने से अस्पताल में है. मजदूरी के पैसे मिल नहीं रहे. चमनकली एनडीटीवी से कहती हैं, "किसानों को बैंक से कैश नहीं मिल रहा है तो वे हमें कैसे पैसे देंगे. उधारी लेकर अनाज लाते हैं, इधर-उधर से...उसी से परिवार चलता है आजकल." उनके साथ काम करने वालीं अमरेश कहती हैं, "हमें कैश नहीं मिलता है. काम करने के एवज में...सिर्फ चारा मिलता है जो हम भैसों को खिलाते हैं."
एनडीटीवी की टीम जब मोदी मिल पहुंची तो वहां गन्ना किसानों की लंबी लाइन लगी थी. गन्ना किसान इकबाल सिंह कहते हैं कि उनके चार लाख बकाया हैं. अभी जो गन्ना जमा करेंगे उसका भुगतान कब होगा पता नहीं. बैंक लोन की किस्तें तक नहीं जा पा रही हैं. जाहिर है, नोटबंदी ने गन्ना किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं.
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