प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:
भारतीय क्रिकेट के लिए गुरुवार का दिन काफी ऐतिहासिक था, जब टीम अपना 500वां टेस्ट मैच खेल रही है. भारत चौथा ऐसा देश है जिसने 500 टेस्ट मैच खेलने का गौरव हासिल किया है. अगर रिकॉर्ड पर गौर करें तो इंग्लैंड ने सबसे ज्यादा 976 टेस्ट मैच खेले हैं, ऑस्ट्रेलिया 791 टेस्ट के साथ दूसरे स्थान पर है जबकि वेस्टइंडीज 517 टेस्ट के साथ तीसरे स्थान पर.
भारत में जब टेस्ट मैच की शुरुआत हुई तब क्रिकेट के भविष्य को लेकर कई सवाल उठाये जा रहे थे. 1932 में भारत ने टेस्ट मैच खेलना शुरू किया और पहले मैच में इंग्लैंड से करारी हार मिली. 1932 से लेकर 1946 के बीच भारत ने अपने सभी टेस्ट मैच सिर्फ इंग्लैंड के खिलाफ खेले थे. किसी भी दूसरी टीम के खिलाफ खेलने का मौका नहीं मिला. हर सीरीज़ में भारत को हार मिली थी. चलिए उन पांच मैचों पर नज़र डालते हैं जिसमें भारत को अविस्मरणीय जीत मिली.
टेस्ट क्रिकेट में भारत की पहली जीत
टेस्ट क्रिकेट में पहला मैच जीतने के लिए भारत को 19 साल लग गए थे. 1932 से लेकर 1949 के बीच भारत ने 11 टेस्ट मैच खेले थे और हर मैच में उसको हार का सामना करना पड़ा था. यह 1952 की बात है. पांच मैचों की टेस्ट सीरीज़ खेलने के लिए इंग्लैंड ने भारत का दौरा किया. यह उम्मीद की जा रही थी कि पहले की तरह भारत इंग्लैंड के खिलाफ बुरी तरह हारेगा. 2 नवंबर को दोनों टीमों के बीच पहला टेस्ट मैच दिल्ली में खेला गया और भारत इस मैच को ड्रॉ करने में कामयाब हुआ. यह पहली बार हुआ था जब भारत कोई टेस्ट मैच ड्रॉ करने में कामयाब हुआ था. दूसरा और तीसरा टेस्ट भी ड्रॉ रहा. चौथा टेस्ट मैच इंग्लैंड जीतने में कामयाब हुआ. अब दोनों टीमों का सीरीज़ का आखिरी टेस्ट मैच खेला जाने वाला था.
6, फरवरी 1952 चेन्नई में दोनों टीमों के बीच इस सीरीज़ का आखिरी टेस्ट मैच शुरू हुआ. टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करते हुए इंग्लैंड अपनी पहली पारी में सिर्फ 266 रन बना पाया. वीनू माकड़ शानदार गेंदबाजी करते हुए इंग्लैंड की पहली पारी के आठ विकेट लेने में कामयाब हुए. भारत ने अपनी पहली पारी में पंकज रॉय और पल्ली उमरीगर के शानदार शतकों के बदौलत 457 रन बनाए. पंकज रॉय ने 111 और उमरीगर ने 130 रन बनाए थे. इंग्लैंड पहली पारी के आधार पर भारत से 191 रन पीछे था और उसके ऊपर काफी दवाब था. अब भारत को कैसे भी हो यह मैच जीतकर पहला टेस्ट जीतने का रिकॉर्ड बनाना था. इंग्लैंड ने अपनी दूसरी पारी शुरू की और पूरी टीम सिर्फ 183 रन पर सिमट गयी. इस तरह भारत ने इस मैच को एक पारी और आठ रन से जीत लिया. इंग्लैंड के खिलाफ पहला मैच जीतना भारत के लिए बहुत बड़ी बात थी. आज़ादी के बाद इंग्लैंड के खिलाफ यह जीत भारत के लिए काफी मायने रखती थी. वीनू माकड़ ने शानदार गेंदबाज़ी की और इंग्लैंड की दूसरी पारी के चार विकेट लेने में कामयाब हुए थे और कुल मिलाकर इस मैच में 12 विकेट लिए थे.
वेस्टइंडीज के खिलाफ शानदार जीत के साथ रचा इतिहास
अगर भारत की दूसरी सबसे बड़ी जीत की बात की जाए तो वह है 1971 में वेस्टइंडीज के खिलाफ शानदार जीत. उस वक्त वेस्टइंडीज सबसे शानदार टीम मानी जाती थी. वेस्टइंडीज को हराना काफी मुश्किल था. पांच टेस्ट मैच खेलने के लिए भारत ने वेस्टइंडीज का दौरा किया. दोनों टीमों के बीच हुए 19 साल के क्रिकेट इतिहास में भारत एक भी मैच नहीं जीत पाया था. दोनों टीमों के बीच इस सीरीज का पहला टेस्ट ड्रॉ रहा. पहले टेस्ट में शानदार खेलते हुए दिलीप सरदेसाई ने 212 रन की शानदार पारी खेली थी और यह पहली बार था जब टीम इंडिया की तरफ से किसी खिलाड़ी ने वेस्टइंडीज के खिलाफ दोहरा शतक ठोका था. अब वह दिन आया जिसका भारत को इंतज़ार था. 6 मार्च 1971 को दोनों टीमों के बीच क्वींस पार्क ओवल में दूसरा टेस्ट मैच खेला गया.
वेस्टइंडीज ने टॉस जीता और पहले बल्लेबाजी करने का निर्णय लिया. वेस्टइंडीज की टीम अपनी पहली पारी में सिर्फ 214 रन बना पाई. भारत की तरफ से इरापल्ली प्रसन्ना और बिशन सिंह बेदी ने शानदार गेंदबाज़ी की. प्रसन्ना को चार विकेट मिले थे जबकि बेदी को तीन विकेट. भारत अपना पहली पारी में 352 रन बनाने में कामयाब हुआ और इस तरह भारत को पहली पारी के आधार पर 138 रन की बढ़त मिल गई. भारत की तरफ से शानदार बल्लेबाजी करते दिलीप सरदेसाई ने 112 रन बनाये थे. अब वेस्टइंडीज के ऊपर दवाब था और भारत को इस दवाब का फ़ायदा उठाना था. फिर एस वेंकटराघवन ने अपना कमाल दिखाया. वेंकटराघवन की फिरकी के सामने वेस्टइंडीज के दिग्गज ढेर होते नज़र आए. वेस्टइंडीज की दूसरी पारी सिर्फ 261 रन पर सिमट गई. वेंकटराघवन वेस्टइंडीज की दूसरी पारी के पांच विकेट लेने में कामयाब हुए. अब भारत को जीतने के लिए सिर्फ 124 रन की जरुरत थी. टीम इंडिया ने इस मौके को हाथ से जाने नहीं दिया. दूसरी पारी में भारत सिर्फ तीन विकेट गंवा कर जीत के लक्ष्य तक पहुंच गया. इस मैच में टीम इंडिया के लिए और एक हीरो का पदार्पण हुआ. इस टेस्ट मैच के जरिए सुनील मनोहर गावस्कर ने अपना क्रिकेट करियर शुरू किया. गावस्कर ने पहली पारी में 65 रन की शानदार पारी खेली और दूसरी पारी में 67 रन पर नॉटआउट रहते हुए टीम इंडिया को जीत दिलवाई. इस मैच को जीतकर भारत ने इतिहास रचा. 23 सालों में वह पहली बार वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट मैच जीता वह भी उसी के मैदान पर. इस जीत के साथ भारत सीरिज़ जीतने का कामयाब हुआ था.
इंग्लैंड में रचा इतिहास
यह 1971 की बात है. टीम इंडिया ने तीन टेस्ट मैच खेलने के लिए इंग्लैंड का दौरा किया. इससे पहले भी 1952, 1959 और 1967 में टीम इंडिया इंग्लैंड का दौरा कर चुकी थी, लेकिन तीनों बार इंग्लैंड के हाथों भारत को करारी हार मिली. इस बार जीत की उम्मीद इसलिए की जा रही थी क्योंकि टीम इंडिया काफी अच्छे फॉर्म में थी. वेस्टइंडीज जैसी शानदार टीम को उसी के मैदान पर हरा चुकी थी.
22 जुलाई को लॉर्ड्स के मैदान पर खेला गया पहला मैच ड्रॉ रहा. पांच अगस्त को मैनचेस्टर के मैदान पर खेला गया दूसरा टेस्ट मैच भी ड्रॉ रहा. अब टीम इंडिया को आखिरी टेस्ट मैच में कुछ कमाल करना था. आखिरी टेस्ट जीतकर इतिहास रचना था. इंग्लैंड के मैदान पर झंडा फहराना था. 15 अगस्त के दिन टीम इंडिया इंग्लैंड में थी. यही रणनीति बना रही थी कि कैसे इंग्लैंड को हराया जाए. 19 अगस्त 1971 को दोनों टीमों के बीच तीसरा टेस्ट मैच शुरू हुआ. टॉस जीतने के बाद इंग्लैंड ने पहले बल्लेबाजी करने का निर्णय लिया. इंग्लैंड की पहली पारी के 355 रन के जवाब में टीम इंडिया ने 284 रन बनाए. इस तरह इंग्लैंड को पहली पारी में 71 रन की बढ़त मिली. टीम इंडिया के खिलाड़ी थोड़ा घबराए हुए थे. फिर इंग्लैंड की दूसरी पारी शुरू हुई. टीम इंडिया के कप्तान अजीत वाडेकर को अपने स्पिन गेंदबाज़ों पर काफी भरोसा था. वाडेकर ने जल्दी स्पिन आक्रमण शुरू कर दिया.
बिशन सिंह बेदी, भागवत चंद्रशेखर और आर वेंकटराघवन जैसे स्पिन गेंदबाज़ टीम में थे. यह तीन गेंदबाज़ इंग्लैंड की पहली पारी में छह विकेट लेने में कामयाब हुए थे. अब इन गेंदबाजों पर काफी दबाव था. चंद्रशेखर को गेंदबाजी के लिए कप्तान ने बुलाया. फिर क्या हुआ, चंद्रशेखर की फिरकी के सामने इंग्लैंड के बल्लेबाज फिसल गए. एक के बाद एक विकेट गिरने लगा. चंद्रशेखर ने इंग्लैंड के छह बल्लेबाजों को आउट किया. वेंकटराघवन को दो विकेट मिले और बिशन सिंह बेदी भी एक विकेट लेने में कामयाब हुए. इंग्लैंड की पूरी टीम अपनी दूसरी पारी में सिर्फ 101 रन बनाकर आउट हो गई. अब टीम इंडिया को जीतने के लिए 173 रन चाहिए थे. लक्ष्य तो कम था लेकिन आसान नहीं था. इंग्लैंड के घरेलू मैदान और घरेलू दर्शकों के सामने टीम इंडिया दवाब में थी.
टीम इंडिया का स्कोर जब सिर्फ दो रन था तब बिना रन बनाए सुनील गावस्कर आउट हो गए. टीम इंडिया फिर ज्यादा दवाब में आ गई. अशोक माकड़ भी सिर्फ 11 रन बनाकर पवेलियन लौट गए. लेकिन कप्तान वाडेकर और दिलीप सरदेसाई ने शानदार बल्लेबाजी करते हुए टीम इंडिया को जीत के करीब पहुंचा दिया. कप्तान वाडेकर ने सबसे ज्यादा 45 रन बनाए जबकि सरदेसाई ने 40 रन की पारी खेली. गुंडप्पा विश्वनाथ ने 33 रन बनाए. टीम इंडिया ने छह विकेट गंवाकर इंग्लैंड के मैदान पर इतिहास रचा और मैच जीतने के साथ-साथ सीरीज भी जीती. इस जीत के बाद टीम इंडिया के खिलाड़ी तिरंगे के साथ पूरे मैदान पर दौड़ रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे वह वर्ल्ड वॉर जीत गए हों.
सबसे बड़े लक्ष्य की पीछा करते हुए जीत
यह 1976 की बात है, टीम इंडिया ने चार टेस्ट मैचों की सीरीज खेलने के लिए वेस्टइंडीज का दौरा किया. ब्रिजटाउन में खेले गये पहले टेस्ट मैच को वेस्टइंडीज ने एक पारी और 97 रन से जीता. दूसरा टेस्ट मैच ड्रॉ रहा. इसी तरह पोर्ट ऑफ़ स्पेन में जब तीसरा टेस्ट मैच शुरू हुआ तब सब यही सोच रहे थे कि तीसरे टेस्ट में भी वेस्टइंडीज की जीत होगी. टॉस जीतने के बाद वेस्टइंडीज ने पहले बल्लेबाजी का निर्णय लिया और अपनी पहली पारी में 359 रन बनाए. भारत ने अपनी पहली पारी में सिर्फ 228 रन बनाए. इस तरह वेस्टइंडीज को पहली पारी के हिसाब से 131 रन की बढ़त मिल गई. वेस्टइंडीज ने अपनी दूसरी पारी 271 रन पर घोषित कर दी. इस तरह भारत के सामने 403 रन का एक विशाल लक्ष्य रखा.
भारत को इतने बड़े लक्ष्य का पीछा करते हुए मैच जीतना मुश्किल लग रहा था. इससे पहले दुनिया की कोई भी टीम इतने बड़े लक्ष्य का पीछा करते हुए मैच नहीं जीत पाई थी. वेस्टइंडीज की टीम में कई शानदार गेंदबाज़ थे. उनका सामना करना भारत के बल्लेबाज़ों के लिए आसान नहीं था. लेकिन भारत की किस्मत में कुछ और लिखा हुआ था. इस मैच में टीम इंडिया को जीत मिली थी और टीम इंडिया ने वेस्टइंडीज के खिलाफ रिकॉर्ड भी कायम किया था.
इस जीत के हीरो थे सुनील गावस्कर और गुंडप्पा विश्वनाथ. विश्वनाथ, गावस्कर के जीजा हैं. जीजा-साले दोनों ने मिलकर वेस्टइंडीज के गेंदबाज़ों की काफी धुलाई की थी. इन दोनों छोटे कद के बल्लेबाज़ों के सामने वेस्टइंडीज के लंबे-लंबे गेंदबाज़ घुटने टेकते हुए नज़र आए थे. सलामी बल्लेबाज के रूप में सुनील गावस्कर ने 102 रन की शानदार पारी खेली, विश्वनाथ कमाल की बल्लेबाजी करते हुए 112 रन पर नॉट-आउट रहे और भारत को जीत दिलवाई. महेंद्र अमरनाथ ने भी 85 रन की पारी खेली थी. इतिहास में यह पहली बार हुआ था जब कोई भी टीम 400 से भी ज्यादा रन का लक्ष्य का पीछा करते हुए मैच जीती थी. हालांकि बाद में यह रिकॉर्ड ज़रूर टूटा लेकिन दोनों टीमों के बीच यह रिकॉर्ड अभी-तक कायम है.
ईडन गार्डन पर ऑस्ट्रेलिया को दी मात
चौथे स्थान पर जिस टेस्ट मैच की बात हो सकती है वह है 11 मार्च 2001 को कोलकाता के ईडन गार्डन मैदान पर भारत और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेला गया टेस्ट मैच. हार की कगार तक पहुंच जाने के बाद भी टीम इंडिया ने ऑस्ट्रेलिया को मात देते हुए यह टेस्ट मैच जीता था. भारत के लिए जो हीरो साबित हुए थे वे थे वीवीएस लक्षण, राहुल द्रविड़ और हरभजन सिंह. ऑस्ट्रेलिया ने टॉस जीतकर बल्लेबाजी करते हुए अपनी पहली पारी में 445 रन बनाए थे और भारत अपनी पहली पारी में सिर्फ 171 रन पर ऑल आउट हो गया था. फॉलोऑन खेलते हुए भारत ने 232 रन पर चार विकेट गंवा दिये थे. लेकिन लक्षण और द्रविड़ ने शानदार बल्लेबाजी करते हुए ऑस्ट्रेलिया के प्लान पर पानी फेर दिया था. दोनों के बीच 376 रन की साझेदारी हुयी थी और भारत ने अपनी दूसरी पारी 657 रनों पर घोषित कर दी थी. इस तरह ऑस्ट्रेलिया के सामने 383 रन का लक्ष्य रखा था. लक्ष्मण ने शानदार 281 रन बनाये थे जबकि द्रविड़ ने 180 रन. लक्ष्मण और द्रविड़ के बाद हरभजन सिंह ने अपना कमल दिखाया था. हरभजन सिंह ने ऑस्ट्रेलिया की दूसरी पारी के छह विकेट लेने में कामयाबी हासिल की थी और ऑस्ट्रेलिया की पूरी टीम सिर्फ 212 रन पर ऑल आउट हो गयी. इस तरह भारत ने इस मैच को 171 रन से जीत लिया था.
भारत में जब टेस्ट मैच की शुरुआत हुई तब क्रिकेट के भविष्य को लेकर कई सवाल उठाये जा रहे थे. 1932 में भारत ने टेस्ट मैच खेलना शुरू किया और पहले मैच में इंग्लैंड से करारी हार मिली. 1932 से लेकर 1946 के बीच भारत ने अपने सभी टेस्ट मैच सिर्फ इंग्लैंड के खिलाफ खेले थे. किसी भी दूसरी टीम के खिलाफ खेलने का मौका नहीं मिला. हर सीरीज़ में भारत को हार मिली थी. चलिए उन पांच मैचों पर नज़र डालते हैं जिसमें भारत को अविस्मरणीय जीत मिली.
टेस्ट क्रिकेट में भारत की पहली जीत
टेस्ट क्रिकेट में पहला मैच जीतने के लिए भारत को 19 साल लग गए थे. 1932 से लेकर 1949 के बीच भारत ने 11 टेस्ट मैच खेले थे और हर मैच में उसको हार का सामना करना पड़ा था. यह 1952 की बात है. पांच मैचों की टेस्ट सीरीज़ खेलने के लिए इंग्लैंड ने भारत का दौरा किया. यह उम्मीद की जा रही थी कि पहले की तरह भारत इंग्लैंड के खिलाफ बुरी तरह हारेगा. 2 नवंबर को दोनों टीमों के बीच पहला टेस्ट मैच दिल्ली में खेला गया और भारत इस मैच को ड्रॉ करने में कामयाब हुआ. यह पहली बार हुआ था जब भारत कोई टेस्ट मैच ड्रॉ करने में कामयाब हुआ था. दूसरा और तीसरा टेस्ट भी ड्रॉ रहा. चौथा टेस्ट मैच इंग्लैंड जीतने में कामयाब हुआ. अब दोनों टीमों का सीरीज़ का आखिरी टेस्ट मैच खेला जाने वाला था.
6, फरवरी 1952 चेन्नई में दोनों टीमों के बीच इस सीरीज़ का आखिरी टेस्ट मैच शुरू हुआ. टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करते हुए इंग्लैंड अपनी पहली पारी में सिर्फ 266 रन बना पाया. वीनू माकड़ शानदार गेंदबाजी करते हुए इंग्लैंड की पहली पारी के आठ विकेट लेने में कामयाब हुए. भारत ने अपनी पहली पारी में पंकज रॉय और पल्ली उमरीगर के शानदार शतकों के बदौलत 457 रन बनाए. पंकज रॉय ने 111 और उमरीगर ने 130 रन बनाए थे. इंग्लैंड पहली पारी के आधार पर भारत से 191 रन पीछे था और उसके ऊपर काफी दवाब था. अब भारत को कैसे भी हो यह मैच जीतकर पहला टेस्ट जीतने का रिकॉर्ड बनाना था. इंग्लैंड ने अपनी दूसरी पारी शुरू की और पूरी टीम सिर्फ 183 रन पर सिमट गयी. इस तरह भारत ने इस मैच को एक पारी और आठ रन से जीत लिया. इंग्लैंड के खिलाफ पहला मैच जीतना भारत के लिए बहुत बड़ी बात थी. आज़ादी के बाद इंग्लैंड के खिलाफ यह जीत भारत के लिए काफी मायने रखती थी. वीनू माकड़ ने शानदार गेंदबाज़ी की और इंग्लैंड की दूसरी पारी के चार विकेट लेने में कामयाब हुए थे और कुल मिलाकर इस मैच में 12 विकेट लिए थे.
वेस्टइंडीज के खिलाफ शानदार जीत के साथ रचा इतिहास
अगर भारत की दूसरी सबसे बड़ी जीत की बात की जाए तो वह है 1971 में वेस्टइंडीज के खिलाफ शानदार जीत. उस वक्त वेस्टइंडीज सबसे शानदार टीम मानी जाती थी. वेस्टइंडीज को हराना काफी मुश्किल था. पांच टेस्ट मैच खेलने के लिए भारत ने वेस्टइंडीज का दौरा किया. दोनों टीमों के बीच हुए 19 साल के क्रिकेट इतिहास में भारत एक भी मैच नहीं जीत पाया था. दोनों टीमों के बीच इस सीरीज का पहला टेस्ट ड्रॉ रहा. पहले टेस्ट में शानदार खेलते हुए दिलीप सरदेसाई ने 212 रन की शानदार पारी खेली थी और यह पहली बार था जब टीम इंडिया की तरफ से किसी खिलाड़ी ने वेस्टइंडीज के खिलाफ दोहरा शतक ठोका था. अब वह दिन आया जिसका भारत को इंतज़ार था. 6 मार्च 1971 को दोनों टीमों के बीच क्वींस पार्क ओवल में दूसरा टेस्ट मैच खेला गया.
वेस्टइंडीज ने टॉस जीता और पहले बल्लेबाजी करने का निर्णय लिया. वेस्टइंडीज की टीम अपनी पहली पारी में सिर्फ 214 रन बना पाई. भारत की तरफ से इरापल्ली प्रसन्ना और बिशन सिंह बेदी ने शानदार गेंदबाज़ी की. प्रसन्ना को चार विकेट मिले थे जबकि बेदी को तीन विकेट. भारत अपना पहली पारी में 352 रन बनाने में कामयाब हुआ और इस तरह भारत को पहली पारी के आधार पर 138 रन की बढ़त मिल गई. भारत की तरफ से शानदार बल्लेबाजी करते दिलीप सरदेसाई ने 112 रन बनाये थे. अब वेस्टइंडीज के ऊपर दवाब था और भारत को इस दवाब का फ़ायदा उठाना था. फिर एस वेंकटराघवन ने अपना कमाल दिखाया. वेंकटराघवन की फिरकी के सामने वेस्टइंडीज के दिग्गज ढेर होते नज़र आए. वेस्टइंडीज की दूसरी पारी सिर्फ 261 रन पर सिमट गई. वेंकटराघवन वेस्टइंडीज की दूसरी पारी के पांच विकेट लेने में कामयाब हुए. अब भारत को जीतने के लिए सिर्फ 124 रन की जरुरत थी. टीम इंडिया ने इस मौके को हाथ से जाने नहीं दिया. दूसरी पारी में भारत सिर्फ तीन विकेट गंवा कर जीत के लक्ष्य तक पहुंच गया. इस मैच में टीम इंडिया के लिए और एक हीरो का पदार्पण हुआ. इस टेस्ट मैच के जरिए सुनील मनोहर गावस्कर ने अपना क्रिकेट करियर शुरू किया. गावस्कर ने पहली पारी में 65 रन की शानदार पारी खेली और दूसरी पारी में 67 रन पर नॉटआउट रहते हुए टीम इंडिया को जीत दिलवाई. इस मैच को जीतकर भारत ने इतिहास रचा. 23 सालों में वह पहली बार वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट मैच जीता वह भी उसी के मैदान पर. इस जीत के साथ भारत सीरिज़ जीतने का कामयाब हुआ था.
इंग्लैंड में रचा इतिहास
यह 1971 की बात है. टीम इंडिया ने तीन टेस्ट मैच खेलने के लिए इंग्लैंड का दौरा किया. इससे पहले भी 1952, 1959 और 1967 में टीम इंडिया इंग्लैंड का दौरा कर चुकी थी, लेकिन तीनों बार इंग्लैंड के हाथों भारत को करारी हार मिली. इस बार जीत की उम्मीद इसलिए की जा रही थी क्योंकि टीम इंडिया काफी अच्छे फॉर्म में थी. वेस्टइंडीज जैसी शानदार टीम को उसी के मैदान पर हरा चुकी थी.
22 जुलाई को लॉर्ड्स के मैदान पर खेला गया पहला मैच ड्रॉ रहा. पांच अगस्त को मैनचेस्टर के मैदान पर खेला गया दूसरा टेस्ट मैच भी ड्रॉ रहा. अब टीम इंडिया को आखिरी टेस्ट मैच में कुछ कमाल करना था. आखिरी टेस्ट जीतकर इतिहास रचना था. इंग्लैंड के मैदान पर झंडा फहराना था. 15 अगस्त के दिन टीम इंडिया इंग्लैंड में थी. यही रणनीति बना रही थी कि कैसे इंग्लैंड को हराया जाए. 19 अगस्त 1971 को दोनों टीमों के बीच तीसरा टेस्ट मैच शुरू हुआ. टॉस जीतने के बाद इंग्लैंड ने पहले बल्लेबाजी करने का निर्णय लिया. इंग्लैंड की पहली पारी के 355 रन के जवाब में टीम इंडिया ने 284 रन बनाए. इस तरह इंग्लैंड को पहली पारी में 71 रन की बढ़त मिली. टीम इंडिया के खिलाड़ी थोड़ा घबराए हुए थे. फिर इंग्लैंड की दूसरी पारी शुरू हुई. टीम इंडिया के कप्तान अजीत वाडेकर को अपने स्पिन गेंदबाज़ों पर काफी भरोसा था. वाडेकर ने जल्दी स्पिन आक्रमण शुरू कर दिया.
बिशन सिंह बेदी, भागवत चंद्रशेखर और आर वेंकटराघवन जैसे स्पिन गेंदबाज़ टीम में थे. यह तीन गेंदबाज़ इंग्लैंड की पहली पारी में छह विकेट लेने में कामयाब हुए थे. अब इन गेंदबाजों पर काफी दबाव था. चंद्रशेखर को गेंदबाजी के लिए कप्तान ने बुलाया. फिर क्या हुआ, चंद्रशेखर की फिरकी के सामने इंग्लैंड के बल्लेबाज फिसल गए. एक के बाद एक विकेट गिरने लगा. चंद्रशेखर ने इंग्लैंड के छह बल्लेबाजों को आउट किया. वेंकटराघवन को दो विकेट मिले और बिशन सिंह बेदी भी एक विकेट लेने में कामयाब हुए. इंग्लैंड की पूरी टीम अपनी दूसरी पारी में सिर्फ 101 रन बनाकर आउट हो गई. अब टीम इंडिया को जीतने के लिए 173 रन चाहिए थे. लक्ष्य तो कम था लेकिन आसान नहीं था. इंग्लैंड के घरेलू मैदान और घरेलू दर्शकों के सामने टीम इंडिया दवाब में थी.
टीम इंडिया का स्कोर जब सिर्फ दो रन था तब बिना रन बनाए सुनील गावस्कर आउट हो गए. टीम इंडिया फिर ज्यादा दवाब में आ गई. अशोक माकड़ भी सिर्फ 11 रन बनाकर पवेलियन लौट गए. लेकिन कप्तान वाडेकर और दिलीप सरदेसाई ने शानदार बल्लेबाजी करते हुए टीम इंडिया को जीत के करीब पहुंचा दिया. कप्तान वाडेकर ने सबसे ज्यादा 45 रन बनाए जबकि सरदेसाई ने 40 रन की पारी खेली. गुंडप्पा विश्वनाथ ने 33 रन बनाए. टीम इंडिया ने छह विकेट गंवाकर इंग्लैंड के मैदान पर इतिहास रचा और मैच जीतने के साथ-साथ सीरीज भी जीती. इस जीत के बाद टीम इंडिया के खिलाड़ी तिरंगे के साथ पूरे मैदान पर दौड़ रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे वह वर्ल्ड वॉर जीत गए हों.
सबसे बड़े लक्ष्य की पीछा करते हुए जीत
यह 1976 की बात है, टीम इंडिया ने चार टेस्ट मैचों की सीरीज खेलने के लिए वेस्टइंडीज का दौरा किया. ब्रिजटाउन में खेले गये पहले टेस्ट मैच को वेस्टइंडीज ने एक पारी और 97 रन से जीता. दूसरा टेस्ट मैच ड्रॉ रहा. इसी तरह पोर्ट ऑफ़ स्पेन में जब तीसरा टेस्ट मैच शुरू हुआ तब सब यही सोच रहे थे कि तीसरे टेस्ट में भी वेस्टइंडीज की जीत होगी. टॉस जीतने के बाद वेस्टइंडीज ने पहले बल्लेबाजी का निर्णय लिया और अपनी पहली पारी में 359 रन बनाए. भारत ने अपनी पहली पारी में सिर्फ 228 रन बनाए. इस तरह वेस्टइंडीज को पहली पारी के हिसाब से 131 रन की बढ़त मिल गई. वेस्टइंडीज ने अपनी दूसरी पारी 271 रन पर घोषित कर दी. इस तरह भारत के सामने 403 रन का एक विशाल लक्ष्य रखा.
भारत को इतने बड़े लक्ष्य का पीछा करते हुए मैच जीतना मुश्किल लग रहा था. इससे पहले दुनिया की कोई भी टीम इतने बड़े लक्ष्य का पीछा करते हुए मैच नहीं जीत पाई थी. वेस्टइंडीज की टीम में कई शानदार गेंदबाज़ थे. उनका सामना करना भारत के बल्लेबाज़ों के लिए आसान नहीं था. लेकिन भारत की किस्मत में कुछ और लिखा हुआ था. इस मैच में टीम इंडिया को जीत मिली थी और टीम इंडिया ने वेस्टइंडीज के खिलाफ रिकॉर्ड भी कायम किया था.
इस जीत के हीरो थे सुनील गावस्कर और गुंडप्पा विश्वनाथ. विश्वनाथ, गावस्कर के जीजा हैं. जीजा-साले दोनों ने मिलकर वेस्टइंडीज के गेंदबाज़ों की काफी धुलाई की थी. इन दोनों छोटे कद के बल्लेबाज़ों के सामने वेस्टइंडीज के लंबे-लंबे गेंदबाज़ घुटने टेकते हुए नज़र आए थे. सलामी बल्लेबाज के रूप में सुनील गावस्कर ने 102 रन की शानदार पारी खेली, विश्वनाथ कमाल की बल्लेबाजी करते हुए 112 रन पर नॉट-आउट रहे और भारत को जीत दिलवाई. महेंद्र अमरनाथ ने भी 85 रन की पारी खेली थी. इतिहास में यह पहली बार हुआ था जब कोई भी टीम 400 से भी ज्यादा रन का लक्ष्य का पीछा करते हुए मैच जीती थी. हालांकि बाद में यह रिकॉर्ड ज़रूर टूटा लेकिन दोनों टीमों के बीच यह रिकॉर्ड अभी-तक कायम है.
ईडन गार्डन पर ऑस्ट्रेलिया को दी मात
चौथे स्थान पर जिस टेस्ट मैच की बात हो सकती है वह है 11 मार्च 2001 को कोलकाता के ईडन गार्डन मैदान पर भारत और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेला गया टेस्ट मैच. हार की कगार तक पहुंच जाने के बाद भी टीम इंडिया ने ऑस्ट्रेलिया को मात देते हुए यह टेस्ट मैच जीता था. भारत के लिए जो हीरो साबित हुए थे वे थे वीवीएस लक्षण, राहुल द्रविड़ और हरभजन सिंह. ऑस्ट्रेलिया ने टॉस जीतकर बल्लेबाजी करते हुए अपनी पहली पारी में 445 रन बनाए थे और भारत अपनी पहली पारी में सिर्फ 171 रन पर ऑल आउट हो गया था. फॉलोऑन खेलते हुए भारत ने 232 रन पर चार विकेट गंवा दिये थे. लेकिन लक्षण और द्रविड़ ने शानदार बल्लेबाजी करते हुए ऑस्ट्रेलिया के प्लान पर पानी फेर दिया था. दोनों के बीच 376 रन की साझेदारी हुयी थी और भारत ने अपनी दूसरी पारी 657 रनों पर घोषित कर दी थी. इस तरह ऑस्ट्रेलिया के सामने 383 रन का लक्ष्य रखा था. लक्ष्मण ने शानदार 281 रन बनाये थे जबकि द्रविड़ ने 180 रन. लक्ष्मण और द्रविड़ के बाद हरभजन सिंह ने अपना कमल दिखाया था. हरभजन सिंह ने ऑस्ट्रेलिया की दूसरी पारी के छह विकेट लेने में कामयाबी हासिल की थी और ऑस्ट्रेलिया की पूरी टीम सिर्फ 212 रन पर ऑल आउट हो गयी. इस तरह भारत ने इस मैच को 171 रन से जीत लिया था.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं