ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वनडे सीरीज में स्पिनरों से विराट कोहली को अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद होगी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
पिछली दो टेस्ट सीरीज में ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों को दिन में तारे दिखाने वाले भारतीय स्पिनर शॉर्टर फॉर्मेट में खास असर नहीं छोड़ पाए हैं. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 17 सितंबर से प्रारंभ हो रही वनडे सीरीज के पहले टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली के लिए यह चिंता का विषय हो सकता है. ऐसे में संभव है कि विराट तेज गेंदबाजी आक्रमण के जरिये इस सीरीज में ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों पर दबाव बनाने की कोशिश करें. ऑस्ट्रेलिया ने पिछले चार वर्षों में भारतीय सरजमीं पर दो टेस्ट सीरीज खेली लेकिन ऑफ स्पिनर रविचंद्रन अश्विन और बाएं हाथ के स्पिनर रविंद्र जडेजा के सामने उसके बल्लेबाज नाकाम रहे और भारत ने ये दोनों सीरीज आसानी से जीतीं. अश्विन ने इस बीच आठ मैचों में 50 और जडेजा ने इतने ही मैचों में 49 विकेट लिए. इन दोनों से पहले हरभजन सिंह (14 मैचों में 86 विकेट) और अनिल कुंबले (दस मैचों में 62 विकेट) भी अपनी धरती पर ऑस्ट्रेलियाई टीम के खिलाफ खासे सफल रहे हैं.
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लेकिन वनडे मैचों में एकदम से कहानी बदलती रही. यही वजह है कि 2013 में अश्विन और जडेजा की मौजूदगी के बावजूद भारत सीरीज बमुश्किल 3-2 से जीत पाया था. टेस्ट मैचों में कहर बरपाने वाले अश्विन ने उस सीरीज के छह मैचों में 37.22 की औसत से 9 और जडेजा ने इतने ही मैचों में 41.87 की औसत से 8 विकेट लिये थे. लेग स्पिनर अमित मिश्रा ने भी तब एक मैच खेला था जिसमें उन्होंने दस ओवर में 78 रन लुटाए थे और उन्हें सफलता नहीं मिली थी. इससे पहले हरभजन (22 मैचों में 54.94 की औसत से 18 विकेट) और कुंबले ( नौ मैचों में 13 विकेट) भी वनडे मैचों में ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों को टेस्ट मैचों की तरह परेशान नहीं कर पाए थे. इसके उलट तेज गेंदबाज ज्यादा प्रभावी रहे. इन दोनों टीमों के बीच भारतीय सरजमीं पर खेली गयी पिछली सीरीज में ही आर. विनयकुमार, मोहम्मद शमी, भुवनेश्वर कुमार और इशांत शर्मा ने मिलकर 19 विकेट लिए थे. शायद यही वजह है कि भारतीय टीम प्रबंधन ने आगामी सीरीज के पहले तीन वनडे के लिये अपना तेज गेंदबाजी आक्रमण मजबूत रखा है.
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भारत ने इन मैचों के लिए शमी और भुवनेश्वर के अलावा उमेश यादव, जसप्रीत बुमराह और हार्दिक पंड्या के रूप में कुल पांच तेज गेंदबाज टीम में रखे हैं जबकि स्पिन विभाग में अश्विन और जडेजा जैसे अनुभवी गेंदबाजों के बजाय युजवेंद्र चहल, अक्षर पटेल और कुलदीप यादव जैसे युवा स्पिनरों पर भरोसा जताया है. आंकड़े भी इसके गवाह हैं. इससे पहले जहीर खान (19 विकेट), अजित अगरकर (17 विकेट), जवागल श्रीनाथ और कपिल देव ( दोनों 12-12 विकेट) तथा एस श्रीसंत (11 विकेट) ने वनडे में स्पिनरों की तुलना में ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों पर अधिक प्रभाव छोड़ा. ऑस्ट्रेलिया की भी कमोबेश यही स्थिति है. भारत में दोनों टीमों के बीच खेली गयी पिछली वनडे सीरीज में उसने जेवियर डोहर्टी के रूप में एकमात्र विशेषज्ञ स्पिनर टीम में रखा था जो छह मैचों में केवल दो विकेट ले पाए थे. आरोन फिंच, ग्लेन मैक्सवेल और एडम वोजेश ने भी कुछ अवसरों पर स्पिन गेंदबाजी की लेकिन इनमें से अधिकतर की भूमिका तेज गेंदबाजों को विश्राम देने के लिए बीच में कुछ ओवर करने की रही.
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ऑस्ट्रेलिया के लिए तब जेम्स फाकनर, मिशेल जानसन और क्लाइंट मैकाय ने तेज गेंदबाजी का जिम्मा संभाला था. इन दोनों टीमों के बीच भारतीय धरती पर खेले गये वनडे मैचों में सर्वाधिक विकेट लेने का रिकॉर्ड भी जानसन (31 विकेट) के नाम पर दर्ज है. आस्ट्रेलिया आगामी सीरीज में भी अपने तेज गेंदबाजों फॉल्कनर, नाथन कुल्टर नाइल, पैट कमिन्स पर ही निर्भर रहेगा. टीम में लेग स्पिनर एडम जंपा और बाएं हाथ के स्पिनर एस्टन एगर के रूप में दो विशेषज्ञ स्पिनर हैं लेकिन इनमें से एक को ही अंतिम एकादश में जगह मिलने की संभावना है. जरूरत पड़ने पर मैक्सवेल दूसरे स्पिनर की भूमिका निभा सकते हैं.
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लेकिन वनडे मैचों में एकदम से कहानी बदलती रही. यही वजह है कि 2013 में अश्विन और जडेजा की मौजूदगी के बावजूद भारत सीरीज बमुश्किल 3-2 से जीत पाया था. टेस्ट मैचों में कहर बरपाने वाले अश्विन ने उस सीरीज के छह मैचों में 37.22 की औसत से 9 और जडेजा ने इतने ही मैचों में 41.87 की औसत से 8 विकेट लिये थे. लेग स्पिनर अमित मिश्रा ने भी तब एक मैच खेला था जिसमें उन्होंने दस ओवर में 78 रन लुटाए थे और उन्हें सफलता नहीं मिली थी. इससे पहले हरभजन (22 मैचों में 54.94 की औसत से 18 विकेट) और कुंबले ( नौ मैचों में 13 विकेट) भी वनडे मैचों में ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों को टेस्ट मैचों की तरह परेशान नहीं कर पाए थे. इसके उलट तेज गेंदबाज ज्यादा प्रभावी रहे. इन दोनों टीमों के बीच भारतीय सरजमीं पर खेली गयी पिछली सीरीज में ही आर. विनयकुमार, मोहम्मद शमी, भुवनेश्वर कुमार और इशांत शर्मा ने मिलकर 19 विकेट लिए थे. शायद यही वजह है कि भारतीय टीम प्रबंधन ने आगामी सीरीज के पहले तीन वनडे के लिये अपना तेज गेंदबाजी आक्रमण मजबूत रखा है.
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भारत ने इन मैचों के लिए शमी और भुवनेश्वर के अलावा उमेश यादव, जसप्रीत बुमराह और हार्दिक पंड्या के रूप में कुल पांच तेज गेंदबाज टीम में रखे हैं जबकि स्पिन विभाग में अश्विन और जडेजा जैसे अनुभवी गेंदबाजों के बजाय युजवेंद्र चहल, अक्षर पटेल और कुलदीप यादव जैसे युवा स्पिनरों पर भरोसा जताया है. आंकड़े भी इसके गवाह हैं. इससे पहले जहीर खान (19 विकेट), अजित अगरकर (17 विकेट), जवागल श्रीनाथ और कपिल देव ( दोनों 12-12 विकेट) तथा एस श्रीसंत (11 विकेट) ने वनडे में स्पिनरों की तुलना में ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों पर अधिक प्रभाव छोड़ा. ऑस्ट्रेलिया की भी कमोबेश यही स्थिति है. भारत में दोनों टीमों के बीच खेली गयी पिछली वनडे सीरीज में उसने जेवियर डोहर्टी के रूप में एकमात्र विशेषज्ञ स्पिनर टीम में रखा था जो छह मैचों में केवल दो विकेट ले पाए थे. आरोन फिंच, ग्लेन मैक्सवेल और एडम वोजेश ने भी कुछ अवसरों पर स्पिन गेंदबाजी की लेकिन इनमें से अधिकतर की भूमिका तेज गेंदबाजों को विश्राम देने के लिए बीच में कुछ ओवर करने की रही.
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ऑस्ट्रेलिया के लिए तब जेम्स फाकनर, मिशेल जानसन और क्लाइंट मैकाय ने तेज गेंदबाजी का जिम्मा संभाला था. इन दोनों टीमों के बीच भारतीय धरती पर खेले गये वनडे मैचों में सर्वाधिक विकेट लेने का रिकॉर्ड भी जानसन (31 विकेट) के नाम पर दर्ज है. आस्ट्रेलिया आगामी सीरीज में भी अपने तेज गेंदबाजों फॉल्कनर, नाथन कुल्टर नाइल, पैट कमिन्स पर ही निर्भर रहेगा. टीम में लेग स्पिनर एडम जंपा और बाएं हाथ के स्पिनर एस्टन एगर के रूप में दो विशेषज्ञ स्पिनर हैं लेकिन इनमें से एक को ही अंतिम एकादश में जगह मिलने की संभावना है. जरूरत पड़ने पर मैक्सवेल दूसरे स्पिनर की भूमिका निभा सकते हैं.
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