मुंबई:
भारत ने वानखेड़े स्टेडियम की पिच के मिजाज को देखते हुए दो ऑफ स्पिनर टीम में रखे हैं। यह पिछले 11 साल में पहला और पिछले 23 वर्ष में दूसरा अवसर है, जबकि भारतीय टीम दो ऑफ स्पिनर के साथ उतरी है।
भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने गुरुवार को संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि भारत दो तेज गेंदबाजों और दो स्पिनरों के साथ उतरेगा, लेकिन शुक्रवार को उसने टीम में ऑफ स्पिनर रविचंद्रन अश्विन और बाएं हाथ के स्पिनर प्रज्ञान ओझा के अलावा ऑफ स्पिनर हरभजन सिंह को भी अंतिम एकादश में रखा।
भारत ने इससे पहले 2006 में इंग्लैंड के खिलाफ ही मोहाली में तीन स्पिनर उतारे थे। उस मैच में हरभजन के अलावा अनिल कुंबले और पीयूष चावला खेले थे। जहां तक एक मैच में दो ऑफ स्पिनर उतारने का सवाल है, तो भारत ने आखिरी बार 2001 में किसी एक मैच में दो विशेषज्ञ ऑफ स्पिनरों को अंतिम एकादश में रखा था।
संयोग से यह मैच भी इंग्लैंड के खिलाफ 19 से 23 दिसंबर के बीच बेंगलुरु में खेला गया था। हरभजन तब टीम के नियमित सदस्य बन गए थे, जबकि अन्य ऑस्पिनर शरणदीप सिंह को भी इस मैच में खेलने का मौका मिला था। लेग स्पिनर कुंबले भी इस मैच में खेले थे। हरभजन और शरणदीप वाले मैच से पहले भारत ने आखिरी बार 1989 में वेस्टइंडीज के खिलाफ किंग्सटन जमैका में अरशद अयूब और एम वेंकटरमन्ना के रूप में दो ऑफ स्पिनर टीम में रखे थे।
वेंकटरमन्ना का यह पहला और आखिरी टेस्ट मैच साबित हुआ था। भारत के पास जब ईरापल्ली प्रसन्ना और आर वेंकटराघवन जैसे ऑफ स्पिनर हुआ करते थे, तो कई अवसरों पर टीम प्रबंधन ने इन दोनों को एक साथ टीम में रखा था। प्रसन्ना और वेंकटराघवन ने मिलकर 15 टेस्ट मैच खेले। इनमें हालांकि प्रसन्ना को अधिक तरजीह दी जाती थी और इसलिए उनके नाम पर इन मैचों में 74 विकेट, जबकि वेंकटराघवन के नाम पर 48 विकेट दर्ज हैं।
वेंकटराघवन के साथ दो टेस्ट मैचों में शिवलाल यादव को भी अंतिम एकादश में जगह मिली थी। प्रसन्ना और वेंकट की ऑफ स्पिन परंपरा को आगे बढ़ाने वाले यादव ने इन दो मैच में 13 विकेट लिए थे। वेंकट इनमें केवल दो विकेट ही ले पाए थे। प्रसन्ना और वेंकटराघवन से पहले गुलाम अहमद और जस्सू पटेल भारत के पास दो अच्छे ऑफ स्पिनर थे। ये दोनों भी एक मैच में साथ में खेले थे।
भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने गुरुवार को संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि भारत दो तेज गेंदबाजों और दो स्पिनरों के साथ उतरेगा, लेकिन शुक्रवार को उसने टीम में ऑफ स्पिनर रविचंद्रन अश्विन और बाएं हाथ के स्पिनर प्रज्ञान ओझा के अलावा ऑफ स्पिनर हरभजन सिंह को भी अंतिम एकादश में रखा।
भारत ने इससे पहले 2006 में इंग्लैंड के खिलाफ ही मोहाली में तीन स्पिनर उतारे थे। उस मैच में हरभजन के अलावा अनिल कुंबले और पीयूष चावला खेले थे। जहां तक एक मैच में दो ऑफ स्पिनर उतारने का सवाल है, तो भारत ने आखिरी बार 2001 में किसी एक मैच में दो विशेषज्ञ ऑफ स्पिनरों को अंतिम एकादश में रखा था।
संयोग से यह मैच भी इंग्लैंड के खिलाफ 19 से 23 दिसंबर के बीच बेंगलुरु में खेला गया था। हरभजन तब टीम के नियमित सदस्य बन गए थे, जबकि अन्य ऑस्पिनर शरणदीप सिंह को भी इस मैच में खेलने का मौका मिला था। लेग स्पिनर कुंबले भी इस मैच में खेले थे। हरभजन और शरणदीप वाले मैच से पहले भारत ने आखिरी बार 1989 में वेस्टइंडीज के खिलाफ किंग्सटन जमैका में अरशद अयूब और एम वेंकटरमन्ना के रूप में दो ऑफ स्पिनर टीम में रखे थे।
वेंकटरमन्ना का यह पहला और आखिरी टेस्ट मैच साबित हुआ था। भारत के पास जब ईरापल्ली प्रसन्ना और आर वेंकटराघवन जैसे ऑफ स्पिनर हुआ करते थे, तो कई अवसरों पर टीम प्रबंधन ने इन दोनों को एक साथ टीम में रखा था। प्रसन्ना और वेंकटराघवन ने मिलकर 15 टेस्ट मैच खेले। इनमें हालांकि प्रसन्ना को अधिक तरजीह दी जाती थी और इसलिए उनके नाम पर इन मैचों में 74 विकेट, जबकि वेंकटराघवन के नाम पर 48 विकेट दर्ज हैं।
वेंकटराघवन के साथ दो टेस्ट मैचों में शिवलाल यादव को भी अंतिम एकादश में जगह मिली थी। प्रसन्ना और वेंकट की ऑफ स्पिन परंपरा को आगे बढ़ाने वाले यादव ने इन दो मैच में 13 विकेट लिए थे। वेंकट इनमें केवल दो विकेट ही ले पाए थे। प्रसन्ना और वेंकटराघवन से पहले गुलाम अहमद और जस्सू पटेल भारत के पास दो अच्छे ऑफ स्पिनर थे। ये दोनों भी एक मैच में साथ में खेले थे।
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