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Aus vs Eng: 'मुझे इस पर कोई हैरानी नहीं होगी', दो दिन में खत्म हुआ टेस्ट, तो गावस्कर ने बल्लेबाजों को घेरा

Australia vs England: हाल ही में मेलबर्न में दो दिन में टेस्ट खत्म हुआ, तो गावस्कर ने अपनी आलोचना में आईसीसी मैच रैफरी को भी लपेटे में ले लिया

Aus vs Eng: 'मुझे इस पर कोई हैरानी नहीं होगी', दो दिन में खत्म हुआ टेस्ट,  तो गावस्कर ने बल्लेबाजों को घेरा

भारत के महान बल्लेबाज और पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर ने हाल ही में मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड (MCG) ने सिर्फ दो दिन में खत्म हुए टेस्ट मैच को लेकर जमकर खिंचाई की है. गावस्कर ने आईसीसी के मैच रैफरी पर व्यंग कसते हुए कहा कि जब पर्थ की पिच बहुत अच्छी करार दी गई थी, तो उम्मीद है कि यह अच्छी जरूर कही जाएगी. गावस्कर ने एक मैगजीन के लिए लिखे लेख में कहा, 'ऑस्ट्रेलिया में एक और टेस्ट मैच दो दिन से भी कम समय में खत्म हो गया. ऑस्ट्रेलियन क्रिकेट बोर्ड के सीईओ का कहना है कि यह अच्छा बिज़नेस नहीं है. वहीं, इसी पहलू पर उपमहाद्वीप (यानी भारत) के ज़्यादातर क्रिकेट प्रशंसक मेलबर्न में दी गई पिच की गुणवत्ता को लेकर हंगामा कर रहे हैं.' सनी ने कहा, 'वे तब हैरान रह गए जब पर्थ में पहले टेस्ट मैच की पिच को मैच रेफरी रंजन मदुगल्ले ने ‘बहुत अच्छी' रेटिंग दी थी. चूंकि मेलबर्न और सिडनी टेस्ट मैचों के लिए नया मैच रेफरी जेफ क्रो है, इसलिए अब रेटिंग अलग हो सकती है. मेलबर्न टेस्ट में 36 विकेट गिरे जबकि पर्थ में 32 विकेट. इसलिए क्रो शायद मदुगले की ‘बहुत अच्छी' रेटिंग से ‘बहुत' शब्द हटा दे और एमसीजी की पिच को सिर्फ ‘अच्छी' कहें. हालांकि, चौंकाने वाली बातें कभी खत्म नहीं होतीं, इसलिए हमें कोई और रेटिंग भी मिल सकती है.'

एमसीजी की पिच को लेकर गावस्कर ने लिखा, 'क्यूरेटर वहां ‘डायरेक्टर ऑफ टर्फ' है, इंसान हैं और उनसे गलती हो सकती है. लेकिन वे उतने चालाक नहीं हैं, जितने भारत के वे ‘भयानक ग्राउंड्समैन' जो पिच तैयार ही नहीं करते और उम्मीद करते हैं कि बल्लेबाज़ रन बनाएंगे. तौबा..तौबा! इसलिए, अगर कुछ है तो पिचों पर बहस न करें बल्कि यह स्वीकार करें कि बल्लेबाज़ी पर ध्यान देने की ज़रूरत है. आज कितने बल्लेबाज़ देर से और नरम हाथों से खेलते हैं? कितने खिलाड़ी बैकफुट पर खेलते हैं ताकि उन्हें गेंद खेलने या छोड़ने का फैसला करने के लिए अतिरिक्त सेकंड मिल सकें? दो बाउंसर प्रति ओवर की सीमा के कारण आज बल्लेबाज़ फ्रंट फुट पर होते हैं.

गावस्कर ने लेख में लिखा, 'सीमाएं छोटी कर दी गई हैं ताकि स्लाइडिंग स्टॉप हो सके और बड़े बल्ले और उभरी हुई मांसपेशियों का मतलब है कि कोई बल्लेबाज़ तीन-चार गेंदों से ज़्यादा ब्लॉक नहीं करेगा, बल्कि बड़े शॉट से गेंदबाज़ पर दबाव डालने की कोशिश करेगा. आज, सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट्स और ‘वर्कलोड' नामक मज़ाकिया शब्द के साथ मुश्किल से कोई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी फर्स्ट-क्लास क्रिकेट खेलता है. वह लगातार व्हाइट-बॉल फॉर्मेट खेलता है, जहां डॉट बॉल खेलना अफोर्ड नहीं कर सकता और उसका बैट स्पीड तेज़ और खतरनाक होता है क्योंकि वह फॉर्मेट चौकों-छक्कों के बारे में है.'

गावस्कर ने कहा, 'वह मानसिक रूप से उसी के लिए तैयार हैं, तो अचानक जब उसे रेड-बॉल फॉर्मेट में डाल दिया जाता है, तो गेंद कुछ भी करती है तो वह असहाय हो जाता है. वह सोचता है कि काउंटर-अटैक ही जवाब है. जबकि थोड़ी धैर्य, कुछ गहरी सांसें लेकर एड्रेनालिन को शांत करना, बैट स्पीड और बड़े स्विंग को कम करना मदद कर सकता है, ताकि अगर वह गलत शॉट खेले या एज करे तो गेंद फील्डर तक न पहुंचे. लेकिन अगर वह मुश्किल से कोई फर्स्ट-क्लास क्रिकेट खेलता है, तो वह मानसिक रूप से टेस्ट मैच की लय के अनुसार कैसे ढल पाएगा?

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