पूर्ण आम बजट 2024 को जुलाई के उत्तरार्द्ध (जुलाई के दूसरे पखवाड़े) में लोकसभा में प्रस्तुत किया जाएगा...
लोकसभा चुनाव 2024 के चलते इस साल फरवरी में अंतरिम बजट पेश किया गया था, और अब चुनाव परिणामों के बाद जब नरेंद्र मोदी सरकार लगातार तीसरी बार सत्तासीन हो चुकी है, पूर्ण बजट पेश किया जाएगा. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, आम बजट 2024 को जुलाई के उत्तरार्द्ध (जुलाई के दूसरे पखवाड़े) में लोकसभा में प्रस्तुत किया जाएगा. बजट को लेकर उत्सुकता और उम्मीदें सभी को रहती हैं, लेकिन कभी-कभी समस्या तब होती है, जब बजट भाषण में प्रयुक्त कुछ शब्द आम आदमी की समझ में ही नहीं आ पाते. इसलिए आज हम लाए हैं बजट शब्दकोश, जिसमें ऐसे सभी मुश्किल शब्दों के अर्थ बोलचाल की भाषा में बताए गए हैं.
- सकल घरेलू उत्पाद (GDP) : किसी एक साल के दौरान बनाए गए, यानी निर्मित सभी प्रकार के उत्पादों तथा सेवाओं के कुल बाज़ार मूल्य (सम्मिलित बाज़ार मूल्य) को Gross Domestic Product, यानी सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है, और इसमें उद्योग, कृषि और सेवा - तीन क्षेत्र शामिल किए जाते हैं.
- सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) : किसी एक साल के दौरान बनाए गए सभी उत्पादों तथा सेवाओं के कुल बाज़ार मूल्य (सम्मिलित बाज़ार मूल्य) और स्थानीय नागरिकों द्वारा विदेशों में किए गए निवेश के योग को, विदेशी नागरिकों द्वारा स्थानीय बाज़ार से कमाए गए लाभ में से घटाने के बाद हासिल रकम को Gross National Product, यानी सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है.
- वित्त विधेयक (Finance Bill) : टैक्स से जुड़े प्रस्तावों में बदलाव करने या मौजूदा टैक्स स्ट्रक्चर को बरकरार रखने, या नए टैक्स लगाने के लिए संसद में पेश किए गए विधेयक को वित्त विधेयक, यानी Finance Bill कहा जाता है.
- बजट लेखा-जोखा : किसी वित्तवर्ष के दौरान सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार से टैक्स से प्राप्त राजस्व (Revenue) और खर्च (Expenditure) के आकलन को बजट लेखा-जोखा कहा जाता है.
- संशोधित लेखा-जोखा : बजट में किए गए हिसाब-किताब (आकलनों) और मौजूदा आर्थिक हालात के मद्देनज़र इनके वास्तविक आंकड़ों के बीच का अंतर संशोधित लेखा-जोखा कहलाता है, और इसका जिक्र आगामी बजट में किया जाता है.
- विनियोग विधेयक (Appropriation Bill) : सरकार द्वारा संचित निधि से रकम निकासी को मंज़ूरी दिलाने के लिए संसद में पेश किए गए विधेयक को Appropriation Bill, यानी विनियोग विधेयक कहा जाता है.
- राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) : किसी सरकार के कुल खर्च (पूंजी व्यय और राजस्व व्यय) तथा सरकार की कुल आय (राजस्व प्राप्तियां और कर्ज़ों और एडवान्स सहित पूंजीगत प्राप्तियाों) के अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है. आसान शब्दों में कहें, तो राजकोषीय घाटा सरकार के खर्च की तुलना में उसकी आय में कमी को दिखाता है. जिस सरकार का राजकोषीय घाटा ज़्यादा होता है, वह अपने साधनों से ज्यादा खर्च कर रही है. इसकी गणना GDP के आधार पर की जाती है.
- राजस्व प्राप्ति (Revenue Receipts) : सरकार द्वारा वसूल किए गए सभी प्रकार के शुल्क, निवेशों पर प्राप्त आय और लाभांश तथा विभिन्न सेवाओं के बदले प्राप्त रकम को कुल मिलाकर राजस्व प्राप्ति कहा जाता है. इसे सरकार की चालू आय भी कहते हैं, जिनसे न देनदारी उत्पन्न होती है, न सरकार की परिसंपत्तियों में कमी आती है. इन प्राप्तियों को कर राजस्व और गैर कर राजस्व में बांटा जाता है. परम्परागत रूप से करों से प्राप्त राजस्व ही सरकार की आय का प्रमुख स्रोत होता है.
- राजस्व व्यय (Revenue Expenditure) : वह सरकारी खर्च, जिसे कोई सरकार अपने कर्मचारियों के वेतन, पेंशन व ब्याज के भुगतान और सब्सिडी समेत रखरखाव और मरम्मत जैसे रूटीन कामों पर खर्च करती है, राजस्व व्यय कहा जाता है. राजस्व व्यय में प्रशासनिक व्यय भी शामिल होता है. इसके अतिरिक्त, राजस्व व्यय में किराये के भुगतान, टैक्स तथा अन्य स्थापना संबंधी व्यय जैसे ऊपरी खर्चे भी शामिल किए जाते हैं.
- विनिवेश (Disinvesment) : सार्वजनिक उपक्रमों, यानी सरकार के स्वामित्व वाली कंपनियों में सरकारी की हिस्सेदारी को बेचने की प्रक्रिया विनिवेश कहलाती है.
- पूंजी प्राप्तियां (Capital Receipts) : पूंजी प्राप्तियां वह राशि होती है, जिसे गैर-ऑपरेटिंग स्रोतों से प्राप्त किया जाता है. इसके अंतर्गत, बाज़ार से लिए गए कर्ज़, रिज़र्व बैंक और अन्य संस्थाओं से उधार ली गई रकम, नेशनल स्मॉल सेविंग फ़ंड को जारी की गई विशेष प्रतिभूतियों से हासिल रकम और स्वयं के कर्ज़ों की वसूली एवं सार्वजनिक उपक्रमों के निवेश से हासिल रकम भी शामिल होती है.
- पूंजी व्यय (Capital Expenditure) : पूंजी व्यय वे खर्च होते हैं, जिनका फ़ायदा एक ही साल में न मिलकर कई सालों तक मिलता है. इसके अंतर्गत, वे सभी खर्च शामिल होते हैं, जो किसी स्थायी संपत्ति को हासिल करने के लिए किए जाते हैं. यानी पूंजी व्यय करके स्थायी परिसम्पत्तियों का निर्माण किया जाता है. इसके अंतर्गत, भूमि, भवन, संयंत्र और मशीनरी तथा अन्य भौतिक अवसंरचनाओं के विकास पर खर्च किया जाता है. पूंजी व्यय में सार्वजनिक कर्ज़ें और विभिन्न संस्थाओं को दिए गए कर्ज़ें और उसकी अग्रिम अदायगी भी शामिल होती है.
- राजस्व घाटा (Revenue Deficit) : राजस्व व्यय और राजस्व प्राप्तियों के अंतर को राजस्व घाटा कहते हैं. आसान शब्दों में, जब कोई सरकार अपनी आय से ज़्यादा खर्च करती है, तो इसका परिणाम राजस्व घाटा होता है. राजस्व घाटे में वे लेनदेन भी शामिल होते हैं, जो सरकार की मौजूदा आय और व्यय पर सीधा प्रभाव डालते हैं. राजस्व घाटा दर्शाता है कि सरकार की खुद की कमाई अपने ही विभागों के रोज़मर्रा के कामकाज को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है. कालांतर में राजस्व घाटा ही उधार में बदल जाता है, क्योंकि अक्सर सरकार को घाटा पूरा करने के लिए बाहरी उधार लेना पड़ता है.
- बजट घाटा (Budget Deficit) : कुल व्यय और राजस्व प्राप्तियों, कर्ज़ों और एडवान्स तथा अन्य गैर ऋण पूंजीगत प्राप्तियों की वसूली के बीच का अंतर बजट घाटा कहा जाता है. आसान शब्दों में, जब सरकार का कुल खर्च उसकी कुल आमदनी से ज़्यादा हो, तो बजट घाटा होता है. यह किसी देश की वित्तीय स्थिति दर्शाता है.
- योजनागत खर्च (Planned Expenditure) : ऐसे खर्चों को योजनागत व्यय कहते हैं, जिनमें Production Assets बनते हैं. आमतौर पर ऐसे खर्च कल्याणकारी योजनाओं से जुड़े होते हैं, जिनमें विद्यालय, पुल और अस्पताल आदि का निर्माण शामिल होता है.
- गैर-योजनागत खर्च (Non-Planned Expenditure) : ऐसे सार्वजनिक खर्चों को गैर-योजनागत खर्च माना जाता है, जिनसे किसी प्रकार का विकास कार्य नहीं होता. गैर-योजनागत खर्चों के लिए रकम का आवंटन देश की संचित निधि से किया जाता है, और इसके अंतर्गत रक्षा क्षेत्र पर किया गया खर्च, सरकारी कर्मचारियों को पेंशन तथा महंगाई भत्ते का भुगतान, बाढ़-सूखा और ओलावृष्टि सरीखी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने पर किया गया खर्च आदि शामिल होते हैं.
- प्रत्यक्ष कर (Direct Tax) : प्रत्यक्ष कर ऐसे कर होते हैं, जिन्हें नागरिक से सीधे-सीधे वसूल किया जाता है. इस श्रेणी में आयकर (Income Tax), कारोबार से कमाई पर टैक्स, शेयरों अथवा अन्य संपत्तियों से हुई कमाई पर लगने वाला टैक्स तथा संपत्ति कर आदि शामिल होते हैं. ये ऐसे अनिवार्य टैक्स होते हैं, जिन्हें किसी लाभ की इच्छा के बिना नागरिक को चुकाना ही पड़ता है.
- अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax) : ऐसे कर, यानी टैक्स, जिन्हें नागरिक सीधे-सीधे जमा नहीं करता, बल्कि उससे इन्हें अन्य किसी रूप में वसूल किया जाता है, अप्रत्यक्ष कर कहलाते हैं. इसके तहत भारत में निर्मित अथवा आयातित या निर्यातित वस्तुओं पर लगाए जाने वाले कर शामिल होते हैं. अप्रत्यक्ष करों में उत्पाद कर (Excise Duty) तथा सीमा शुल्क (Custom Duty) भी शामिल होते हैं.
- इन्कम टैक्स (Income Tax) : आपकी आय होने पर आपकी आय में से ही वसूल किए गए टैक्स को आयकर या इन्कम टैक्स कहते हैं. इन्कम टैक्स की दो रिजीम, यानी व्यवस्था फिलहाल मौजूद हैं, जिनमें अलग-अलग आय स्लैब के आधार पर अलग-अलग दरों से इन्कम टैक्स वसबल किया जाता है.
- उपकर (Cess) : सरकार द्वारा किसी विशेष उद्देश्य की खातिर रकम जुटाने के लिए आपके टैक्स की रकम पर उपकर, यानी Cess लागू किया जाता है. मौजूदा वक्त में सरकार अपने सभी करदाताओं से चार फ़ीसदी की दर से स्वास्थ्य एवं शिक्षा उपकर (Health and Education Cess) वसूल कर रही है.
- अधिभार (Surcharge) : अधिभार, यानी Surcharge आमतौर पर 'उच्च आयवर्ग' के लोगों से वसूल किया जाता है. मौजूदा नियमों के अनुसार, ₹50 लाख तक की करयोग्य आय (Taxable Income) पर किसी तरह का अधिभार वसूल नहीं किया जाता है, लेकिन उससे ज़्यादा कमाई होने पर दोनों टैक्स रिजीम में अलग-अलग दरों से अधिभार लिया जाता है. अधिभार को कमाई के हिसाब से तय की गई दर पर देय आयकर की रकम पर लागू किया जाता है.
- उत्पाद शुल्क (Excise Duty) : देश में निर्मित और देश में ही बिकने वाली वस्तुओं पर निर्माता से ही उत्पाद शुल्क वसूला जाता है. किसी भी निर्माता को अपना उत्पाद बाज़ार में लाने से पहले इसे चुकाना आनिवार्य है. उत्पाद शुल्क किसी भी सरकार की आय का काफ़ी बड़ा हिस्सा होता है.
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign direct Investment या FDI) : जब कोई विदेशी कंपनी हमारे देश में मौजूद किसी भी कंपनी या क्षेत्र में अपने ब्रांच ऑफ़िस या सब्सिडियरी कंपनी के ज़रिये निवेश करती है, तो उसे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कहा जाता है.