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This Article is From Feb 01, 2022

Budget 2022: क्या होती है राजस्व प्राप्तियां, राजकोषीय घाटा? बजट से पहले जानें ऐसे बजटीय शब्दों के मायने

Union Budget 2022: हर वित्त मंत्री अपने बजट भाषण में पूंजीगत व्यय, राजकोषीय घाटा, राजस्व प्राप्ति जैसे कई कठिन शब्दों का इस्तेमाल करते रहे हैं. ऐसे में जानते हैं कि इन बजटीय शब्दों के मायने क्या होते हैं.

Union Budget 2022: आर्थिक सर्वेक्षण में वित्तीय वर्ष 2022-23 में आर्थिक वृद्धि दर 8 से 8.5 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया है.

नई दिल्ली:

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Union Finance Minister Nirmala Sitharaman) आज चौथी बार लगातार आम बजट पेश (General Budget 2022) करेंगी. कोरोना महामारी के दौर में उनसे उम्मीद है कि वो राजकोषीय घाटे को कम करने और आर्थिक वृद्धि के बीच संतुलन बनाते हुए रोजगार सृजन और निवेश को बढ़ावा देने वाला बजट पेश करेंगी. इसके अलावा भी स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी बुनियादी आधारभूत संरचनाओं के विकास समेत जन कल्याणकारी योजनाओं में सरकार की भागीदारी बढ़ाने की उनसे उम्मीद की जा रही है. आर्थिक सर्वेक्षण में वित्तीय वर्ष 2022-23 में आर्थिक वृद्धि दर 8 से 8.5 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया है.

हर वित्त मंत्री अपने बजट भाषण में पूंजीगत व्यय, राजकोषीय घाटा, राजस्व प्राप्ति जैसे कई कठिन शब्दों का इस्तेमाल करते रहे हैं. ऐसे में जानते हैं कि इन बजटीय शब्दों के मायने क्या होते हैं.

राजस्व प्राप्तियां (REVENUE RECEIPTS) :
राजस्व प्राप्तियां सरकार द्वारा वसूल किए गए सभी प्रकार के शुल्क, निवेशों पर प्राप्त आय और लाभांश होती है. इसे सरकार की चालू आय भी कहते हैं,  जिनसे न तो देनदारी उत्पन्न होती है और न ही सरकार की परिसंपत्तियों में कमी आती है. इन प्राप्तियों को कर राजस्व और गैर कर राजस्व में विभक्त किया जाता है.  परंपरागत रूप से करों से प्राप्त राजस्व ही सरकार की आय का सबसे प्रमुख स्रोत है. 

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पूंजी प्राप्तियां (CAPITAL RECEIPTS) :
पूंजी प्राप्तियां वो राशि हैं जिसे गैर ऑपरेटिंग स्रोत से हासिल किया जाता है. इसके तहत बाजार से लिए गए ऋण, रिजर्व बैंक और अन्य संस्थाओं से ली गई उधार राशि,  नेशनल स्मॉल सेविंग फंड को जारी की गई विशेष प्रतिभूतियां से प्राप्त राशि और स्वयं के ऋणों की वसूली एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के निवेश से प्राप्त होने वाली धनराशि भी शामिल होती है.

राजस्व व्यय (REVENUE EXPENDITURE):
राजस्व व्यय वह सरकारी खर्च है, जिसे सरकार सरकारी कर्मचारियों के वेतन, पेंशन व ब्याज के भुगतान समेत रख-रखाव और मरम्मत जैसे रूटीन कार्यों पर खर्च करती है. इसमें प्रशासनिक व्यय भी शामिल होता है. इसके अतिरिक्त इसमें किराए के भुगतान, कर और अन्य स्थापना संबंधी व्यय जैसे ऊपरी खर्चे बी शामिल होते हैं. 

पूंजी व्यय (CAPITAL EXPENDITURE) :
पूंजी व्यय ऐसा खर्च होता है जिसका लाभ एक वर्ष में ही न मिलकर भविष्य में कई सालों तक मिलता रहता है. इसके तहत उन सभी खर्चों को शामिल किया जाता है, जो किसी स्थाई संपत्ति को प्राप्त करने के लिए किया जाता है. यानी पूंजी व्यय कर स्थायी परिसमंपत्तियों का निर्माण किया जाता है. इसके तहत भूमि, भवन, संयंत्र और मशीनरी तथा अन्य भौतिक अवसंरचनाओं के विकास पर व्यय किया जाता है. पूंजी व्यय में लोक ऋण और विभिन्न संस्थाओं को दिए गए ऋण और उसकी अग्रिम अदायगी भी शामिल होती है.

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राजस्व घाटा (REVENUE DEFICIT) :
राजस्व व्यय और राजस्व प्राप्तियों के बीच के अंतर को राजस्व घाटा कहा जाता है. सरल शब्दों में जब सरकार अपनी कमाई से अधिक खर्च करना शुरू कर देती है तो इसका परिणाम राजस्व घाटा होता है. राजस्व घाटा में वे लेनदेन भी शामिल होते हैं जो सरकार की वर्तमान आय और व्यय पर सीधा प्रभाव डालते हैं. राजस्व घाटा यह दर्शाता है कि सरकार की खुद की कमाई अपने विभागों के दिन-प्रतिदिन के कार्यों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है. बाद में राजस्व घाटा उधार में बदल जाता है. कई बार सरकार को घाटा पाटने के लिए बाहरी उधार भी लेना पड़ता है.

बजट घाटा (BUDGET DEFICIT) :
बजट घाटा कुल व्यय और राजस्व प्राप्तियों, ऋणों और अग्रिमों तथा अन्य गैर ऋण पूंजीगत प्राप्तियों की वसूली के बीच का अंतर होता है. सरल शब्दों में कहें तो जब सरकार का कुल खर्च कुल आमदनी से ज्यादा होता है तो इसे बजट घाटा कहते हैं. यह किसी देश की वित्तीय स्थिति को दर्शाता है. मौद्रीकरण के अनुपस्थिति में यह जीरो होता है.

राजकोषीय घाटा (FISCAL DEFICIT):
सरकार का कुल व्यय (पूंजी व्यय और राजस्व व्यय) और सरकार की कुल आय (राजस्व प्राप्तियां और  ऋणों और अग्रिमों समेत पूंजीगत प्राप्तियाों) के अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है. सरल शब्दों में राजकोषीय घाटा सरकार के खर्च की तुलना में उसकी आय में कमी को दर्शाता है. जिस सरकार का राजकोषीय घाटा अधिक होता है, वह अपने साधनों से ज्यादा खर्च करती है. इसकी गणना जीडीपी के आधार पर की जाती है.

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