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This Article is From Feb 29, 2016

बजट 2016 : क्या परीक्षा में पास हुए अरुण जेटली....?

Rakesh Kumar Malviya
  • बजट 2016,
  • Updated:
    मार्च 01, 2016 17:55 pm IST
    • Published On फ़रवरी 29, 2016 16:50 pm IST
    • Last Updated On मार्च 01, 2016 17:55 pm IST
देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा जरूर कि वह देश के सवा करोड़ देशवासियों की परीक्षा में उन्हें पास होना है लेकिन…

देश के किसानों की आय साल 2022 तक दोगुनी करने का वायदा किया।
...यह तो बहुत अच्छी बात है। लेकिन किसानों की औसत आय तो पहले से ही कम है। किसी चतुर्थ श्रेणी नौकरीपेशा से भी कम। ऐसे में हर साल बीस फीसदी के हिसाब से आय बढ़ भी जाए तो किसान आत्महत्याओं वाले देश में यह कदम पर्याप्त होगा ? उसमें भी बीच में मोदी सरकार को एक और चुनाव का सामना करना पड़ेगा। चुनावी परीक्षा देनी होगी। तो सवाल यह भी कि क्या उस परीक्षा के लिए कुछ वायदे संचित करके रखे जाएं 'सभी के लिए आवास' का सपना भी करीब-करीब तभी पूरा करने का वायदा किया गया है। यह सही है कि यह सारे काम रातों-रात नहीं हो जाएंगे... लेकिन यही तो कड़ी परीक्षा है। और इसी परीक्षा में असफल हो जाने के आरोप आप कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार पर लगाते रहे हैं। इसीलिए तो सवा करोड़ की जनता ने आपके हाथों में बागडोर सौंपी थी।  

क्या मज़बूरी है किसान हितैषी बनना
मोदी सरकार की छवि लगातार उद्योग जगत की हितैषी के रूप में ज्यादा बन रही थी। पिछले महीनों में इस छवि को तोड़ने के लिए केवल केंद्र ही नहीं, राज्यों से कदमताल मिलाकर पहल की गई। वित्त मंत्री ने तभी इसे बजट भाषण के शुरुआती मिनटों में शामिल कर चौंका ही दिया। पिछले कुछ महीनों में फसल बीमा और देश के कई राज्यों में किसानों की महासभाएं किए जाने को देखें तो बजट में यह होना ही था। अब देखना यह है कि किसानों के प्रति यह संवेदना कितनी हकीकत में बदलती है।

पर इसका बोझ सहेगा आम आदमी
तो कृषि क्षेत्र का बजट 15 हजार करोड़ से 35 हजार करोड़ पर जा पहुंचा....लेकिन इसके लिए तकरीबन बीस हजार करोड़ रुपए का जो आवंटन किया गया है, उसे लाने के कवायद दूसरे वर्ग के लिए बोझ बनकर आई है। हर कर योग्य सेवा पर आधा प्रतिशत किसान कल्याण सेस लगाकर इस इंतजाम को पूरा किया है। यानी इस 'कल्याण' की कीमत तो सभी से वसूली जानी है, खुद किसानों से भी।

करदाताओं को निराशा
पिछले कई बजट से टैक्स स्लैब की सीमा बढ़ने की राह तकने वाले लोगों को फिर इंतजार ही मिला। यह उम्मीद पिछले बजट में भी जेटली से थी कि आयकर मुक्त सीमा को कम से कम तीन लाख तक तो कर ही दिया जाए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वैश्विक मंदी के दौर में वित्त मंत्री ऐसा साहस नहीं कर सके। लेकिन उन्होंने कर आय बढ़ाने के लिए भी उन बिंदुओं पर मध्य मार्ग ही अपनाया। सबसे आश्चर्य तो इस बात पर है कि काले धन को बाहर निकालने के लिए मोदी सरकार ने 'लॉलीपॉप' दिया। जबकि हम मोदीजी की चुनावी सभाओं में यही उम्मीद सबसे ज्यादा कर रहे थे कि विदेशी बैंकों में छुपा अकूत काला धन बेहद सख्ती से बाहर आएगा, और देश के खजाने में आमूलचूल इजाफा होगा। लेकिन अब तो यह तेवर और नरम पड़ते दिखाई दे रहे हैं।

मनरेगा और ग्रामीण विकास की आशा
मनरेगा यूपीए सरकार की महत्वाकांक्षी योजना थी। राहुल गांधी इसका जिक्र बारंबार अपने भाषण में करते रहे हैं। इसे राजनैतिक पैंतरेबाजी में पिछले सालों में बजट और नीति में कम करके आंका जा रहा था। पर इस बार, मोदी सरकार ने मनरेगा का बजट बढ़ाकर एक अच्छी पहल की है, वह भी सूखे की साल में। अब देखना होगा कि तकरीबन चार हजार करोड़ रुपए बढ़ाकर इस योजना में लंबित भुगतान की कुव्यवस्था को कैसे ठीक कर दिया जाएगा। कई सूखा प्रभावित राज्यों में कम से कम सौ दिन के काम को राज्य सरकारों ने डेढ़ सौ दिन के काम में बदल दिया है। इस दृष्टि से यह एक राहत पहुंचाने वाली बात है। मनरेगा और ग्रामीण विकास पर जोर, लेकिन यह जरूरत भी थी और मजबूरी भी।

केवल नवोदय विद्यालय से नहीं सुधरेगी शिक्षा की गुणवत्ता
सरकार ने 62 नए नवोदय विद्यालयों के माध्यम से शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर करने की बात की है, लेकिन ऐसा क्यों कि जिले में केवल एक नवोदय विद्यालय की गुणवत्ता तो बढ़ जाए, लेकिन दूसरे सरकारी स्कूल अपने वैसे ही हालात पर चलते रहें। ऐसे दौर में जबकि गैर सरकारी बनाम सरकारी शिक्षा व्यवस्था एक कानूनी अधिकार के बावजूद अपने संक्रमणकाल से गुजर रही हो, तब सार्वजनिक सेवाओं को और दुरूस्त बनाने की नीति बनाई जाए। ठीक ऐसा ही स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी नीतिगत रूप से दिखाई दे रहा है जहां कि पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के जरिए सरकारी संसाधनों का लाभ निजी खातों में जा रहा है। आपको बता दें कि पिछले साल जब मोदी सरकार को पहली बार अपना पूर्ण बजट पेश करने का मौका मिला था तब उनकी सरकार ने बच्चों से संबंधित योजनाओं के बजट में 14 फीसदी की कटौती की थी. अब अगले एक दो दिन में जानकार इसकी बेहतर-विस्तृत समीक्षा पेश करेंगे लेकिन.....कॉरपोरेट सेक्टर, जिसके सेंसेक्स ने भी बजट के तीन घंटे में ही गोता लगाकर नाखुशी जाहिर कर दी !   

तो फिर देखना यह होगा कि 'इस बजट से खुश कौन हुआ ?' कौन पास हुआ कौन फेल हुआ ...?  

राकेश कुमार मालवीय एनएफआई के फेलो हैं, और सामाजिक मुद्दों पर शोधरत हैं...

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