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किसे है प्रकृति बचाने की चिंता, छेड़छाड़ से सूखते उत्तराखंड के जल स्रोत

Himanshu Joshi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 28, 2025 17:28 pm IST
    • Published On जुलाई 28, 2025 17:28 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 28, 2025 17:28 pm IST
किसे है प्रकृति बचाने की चिंता, छेड़छाड़ से सूखते उत्तराखंड के जल स्रोत

आज दुनिया भर में विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस (World Nature Conservation Day) मनाया जा रहा है. यह दिन हमें याद दिलाता है कि प्रकृति को बचाने के लिए सिर्फ स्लोगन नहीं, समाधान चाहिए और समाधान हम सबकी भागीदारी से ही आएगा. हर साल 28 जुलाई को विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस मनाया जाता है. सोशल मीडिया पर पेड़ों की तस्वीरें, नदियों के वीडियो और हरे-भरे जंगलों की स्टोरीज की बाढ़ आ जाती है. लेकिन सवाल है कि क्या हम सच में प्रकृति की चिंता कर रहे हैं या बस एक और हरियाली दिवस मना रहे हैं?

सच तो ये है कि हमारी नदियां अब कंक्रीट में बदल रही हैं, जंगलों की जगह बहुमंजिला इमारतें खड़ी हो रही हैं और पहाड़ अब सुरंगों में तब्दील हो रहे हैं. दिल्ली जैसे शहरों का AQI लगातार खतरनाक जोन में रहता है. हवा में सांस लेना अब एक जोखिम बन चुका है. कभी जीवन देने वाली नदियों का पानी अब घरों में लगे आरओ से छानकर ही पीया जा सकता है.

उत्तराखंड के सूखते नौले और पानी की कमी 

उत्तराखंड की पहचान इसके पारंपरिक जल स्रोतों, जैसे- नौले, धारे और नदियों से रही है. लेकिन जलवायु परिवर्तन के असर से बर्फबारी कम हुई है, वर्षा अनियमित हो गई है और गर्मी असहनीय रूप से बढ़ी है. इन सभी कारणों से जलस्रोतों का जलस्तर लगातार घट रहा है. नौले को जलस्रोत पर बनाया जाता है, जिस जगह जल रिसता है, उसके चारों तरफ पत्थर इस तरह लगाए जाते हैं कि उसमें जल इकट्ठा हो जाए.यह हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है.

चंपावत, अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ जैसे जिलों में कई नौलों की मरम्मत सीमेंट और टाइल से की गई, जिससे वे पूरी तरह सूख गए.चम्पावत के विश्व प्रसिद्ध बालेश्वर मंदिर के पास स्थित एक नौला इसी तरह की मरम्मत के बाद सूख गया, जिसके लिए स्थानीय लोगों ने सीमेंट की परतों को जिम्मेदार ठहराया.

यह उदाहरण बताता है कि बिना वैज्ञानिक समझ के की गई मरम्मत पारंपरिक जलस्रोतों को नष्ट कर सकती है. आज हालात ऐसे हैं कि जिन गांवों में कभी पानी की कमी नहीं थी, वहां अब दिन में सिर्फ एक घंटे पानी की आपूर्ति हो रही है या फिर टैंकरों से पानी भेजा जा रहा है.

क्या है भगीरथ एप?

उत्तराखंड सरकार ने इस संकट के समाधान के लिए भगीरथ ऐप लॉन्च किया है, जो पारंपरिक जलस्रोतों की पहचान, स्थिति की निगरानी और संरक्षण कार्यों को ट्रैक करने के लिए एक तकनीकी माध्यम बन चुका है. भगीरथ एप एक मोबाइल आधारित प्लेटफॉर्म है, जिसे जल जीवन मिशन के तहत उत्तराखंड सरकार ने विकसित किया है.इसका मुख्य उद्देश्य राज्य के हज़ारों पारंपरिक जल स्रोतों, जैसे- नौले, धारे, चाल-खाल को डिजिटल रूप से चिन्हित करना और उनके संरक्षण के लिए ज़रूरी कदम उठाना है.

यह एप जल स्रोतों की Geo-tagging (भौगोलिक टैगिंग) के ज़रिए काम करता है. इसमें किसी भी जल स्रोत की लोकेशन, तस्वीरें, जलधारा की स्थिति और आसपास की परिस्थिति को दर्ज किया जा सकता है. इस डाटा के आधार पर अधिकारी यह तय कर सकते हैं कि कौन-से स्रोत सक्रिय हैं और किनकी स्थिति गंभीर है. स्थानीय लोग और स्वयंसेवी भी इस एप पर रिपोर्ट दर्ज कर सकते हैं, कोई स्रोत सूख रहा हो, टूटा हो या प्रदूषित हो गया हो तो उसकी रिपोर्ट दर्ज की जा सकती है. यह एक सामुदायिक निगरानी प्रणाली बन गई है, जिसमें सरकार और जनता दोनों की सक्रिय भागीदारी है. अगर ग्रामीणों और आम जनता को इस ऐप का इस्तेमाल करना सिखाया जाए और इसके महत्व को बताया जाए, तो पारंपरिक जल स्रोतों का संरक्षण संभव है.

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