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This Article is From Nov 21, 2023

World Cup 2023: वे सीढ़ियां, वे मायूस आंखें, न जाने अब क्या ढूंढ रही हैं...

Sunita Hansraj
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    November 21, 2023 11:37 IST
    • Published On November 21, 2023 11:37 IST
    • Last Updated On November 21, 2023 11:37 IST

ऑस्ट्रेलिया पर जीत के साथ शुरू हुआ भारत का विश्वकप का सफर ऑस्ट्रेलिया से मिली हार के साथ ही ख़त्म हो गया. रोहित शर्मा की कप्तानी वाली टीम इंडिया वर्ल्ड कप जीतने से चूक गई. अंतिम सत्य अब यही है. जीत तो संक्षिप्त है, इसका कोई सार नहीं. लेकिन यह हार भी तो स्वीकार नहीं. दिल को तसल्ली देने के बहाने कई हैं, लेकिन काम एक भी नहीं कर रहा, क्योंकि करोड़ों भारतीय दिल, जो पिछले 44 दिन से चहक रहे थे, हंस रहे थे, मुस्कुरा रहे थे, कुछ ही पल में मायूस हो गए. उदासी ऐसी कि न बयां की जा सके, न छिपाए छिप रही है.

खैर, कुछ भी हो, वर्ल्ड कप चार साल बाद फिर आएगा, लेकिन क्या फिर ऐसा मौका मिलेगा? क्या ये 4 साल इस हार को भुलाने के लिए काफ़ी होंगे? शायद हां, शायद नहीं! हार के बाद ड्रेसिंग रूम की सीढ़ियां चढ़ते रोहित शर्मा, उनकी वे उदास आंखें, कैप से मुंह छिपाते विराट कोहली और मायूस खड़े कोच राहुल द्रविड़, वह एकमात्र शख़्स, जिसने 2003 और 2023 की विश्वकप फ़ाइनल की हार को इतने क़रीब से देखा. न जाने कैसे ख़ुद को समझा रहे होंगे, क्योंकि यही रात अंतिम थी, यही रात भारी थी, बस एक ही रात की कहानी सारी थी.

अब सवाल यह है कि क्या ये एक हार इतनी आसानी से भुलाई जा सकती है. हां, भुलाई जा सकती है, क्योंकि हमारी हार 'शौर्य' का मुद्दा है, शोक का कदापि नहीं, हमारे शूरवीर मैदान में लड़े हैं, डरे नहीं. हारकर भी इस टीम ने करोड़ों दिल जीते हैं. फिर चाहे वह विराट के 50 वन-डे शतकों की ख़ुशी हो, शामी की दमदार बॉलिंग पर फैन्स का एक साथ उछल पड़ना हो या रोहित की ताबड़तोड़ बल्लेबाज़ी पर तालियां बजना हो. भारतीय टीम ने जिस तरह क्रिकेट खेला,  पूरी दुनिया उसकी कायल हो गई. फिर भी इस हार का हर कोई अपने तरीके से विश्लेषण कर रहा है. क्या खोया, क्या पाया - इससे इतर हर कोई कारण खोज रहा है कि आख़िर ये हो कैसे गया?

बात सिर्फ इसी विश्वकप की नहीं है, क्योंकि रोहित के लिए यह सफ़र साल 2011 में शुरू हुआ था. जब वर्ल्ड कप के लिए चुनी गई भारतीय टीम में उनका चयन नहीं हुआ था. एक ट्वीट रोहित ने उस समय किया था, जिसमें उन्होंने लिखा था, "विश्वकप टीम का हिस्सा न बनने से वास्तव में निराश हूं... मुझे यहां से आगे बढ़ने की ज़रूरत है... लेकिन ईमानदारी से कहूं तो यह एक बड़ा झटका था..." उस समय रोहित को टीम का हिस्सा न बन पाने से ठेस पहुंची थी. लेकिन आज वह विश्वकप टीम का हिस्सा भी थे और कप्तान भी. फिर भी उस ट्रॉफ़ी को उठाने से महरूम रह गए. इसे गर्दिश-ए-वक़्त की मार कहें या कुछ और, क्योंकि फ़ाइनल की रात उस ट्रॉफ़ी से बेहतर कुछ न था, न रोहित के लिए, न टीम के लिए, न हम हिन्दुस्तानियों के लिए.

ऐसा नहीं है कि इस बार भारत विश्वकप नहीं जीत पाया, तो आगे भी ऐसा ही होगा. मैदान में हार-जीत का ज़रूर कुछ यूं फैसला हुआ कि पूरा क्राउड भारतीय टीम के साथ था, लेकिन फिर भी सफ़ल ऑस्ट्रेलिया हुआ. ये महज़ एक दिन की बात थी. ज़िन्दगी में ख़त्म होने जैसा कुछ भी नहीं, हर दिन एक नई शुरुआत आपका इंतज़ार करती है. हमें समझना होगा - "ज़िन्दगी की यही रीत है, हार के बाद ही जीत है..."

और हां, भारत के पूर्व विश्व विजेता कप्तान कपिल देव ने भी रोहित के लिए ख़ास मैसेज शेयर करते हुए कहा, "आप जो करते हैं, उसमें मास्टर हैं... ढेर सारी सफलताएं आपका इंतज़ार कर रही हैं... मुझे पता है, ये कठिन है, लेकिन आप हौसला बनाए रखें... पूरा भारत आपके साथ है..." वाकई ऐसा है भी. पूरा भारत रोहित के साथ है. जीत का जश्न सार्वजनिक है, ये सबको पता है, लेकिन हार की मायूसी कुछ ज़ाहिर, कुछ निहां ही रहती है. फ़ाइनल ऑस्ट्रेलिया ने जीत लिया. विश्वकप टूर्नामेंट समाप्त हुआ, लेकिन फिर भी ये मायूस आंखें न जाने अब क्या ढूंढ रही हैं...

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.)
 

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