प्राइम टाइम इंट्रो : ई-वॉलेट से हुई गड़बड़ी की शिकायत किससे?

प्राइम टाइम इंट्रो : ई-वॉलेट से हुई गड़बड़ी की शिकायत किससे?

प्रतीकात्मक चित्र

नोटबंदी के बाद से कैशलेस अर्थव्यवस्था के विचार का श्रेय लेने वालों की कमी नहीं हैं. कई नाम सामने आए, उनका इंटरव्यू छपा, कई सांसद ने ख़ुद को मोबाइल वॉलेट का प्रचारक बना लिया. लेकिन क्या आपको पता है कि मोबाइल बैकिंग मोबाइल वॉलेट का आइडिया किसका है? उड़ीसा के बोलांगीर ज़िले का एक कस्बा है टिटलागढ़. यहीं के सैम पित्रोदा ने 1994 में अमेरिका में डिजिटल वॉलेट के पेटेंट के लिए आवेदन किया था.1996 में पित्रोदा के डिजिटल वॉलेट को पेटेंट मिल गया. 20-20 साल पहले की भारतीय राजनीति बैलगाड़ी पर बैठकर कंप्यूटर का विरोध कर रही थी, आज भी वैसा ही कुछ घमासान है, मगर डिजिटल वॉलेट का असली नायक ग़ायब है. अनेक प्रकार की मोबाइल वॉलेट कंपनियों का विज्ञापन रोज़ छप रहा है, देशभक्ति से ओतप्रोत है इनके विज्ञापन लेकिन क्या यह अजीब नहीं है कि जिन विज्ञापन का नारा देशभक्ति से रंगा हुआ था, उन्हीं नारों में इसकी कल्पना करने वाले एक भारतीय का नाम ग़ायब था. क्या उन कंपनियों को नहीं पता कि डिजिटल वॉलेट की कल्पना सैम पित्रोदा ने की थी.

राजनीति और बाज़ार बहुत चतुराई से देशभक्ति और राष्ट्रवाद का इस्तेमाल करते हैं. इसलिए एक मिनट ठहर कर सोचने में कोई हर्ज नहीं है. हमें भी इसकी जानकारी नहीं थी, लेकिन पूर्व बैंकर विभास श्रीवास्तव जी के हिन्दी में लिखे लेख से इसकी सूचना मिली. 2010 में सैम पित्रोदा और मेहुल देसाई ने एक किताब भी लिखी. किताब का नाम है 'दी मार्च ऑफ मोबाइल मनी. इस किताब में मोबाइल बैकिंग की यात्रा और भविष्य के बारे में वर्णन है. मेहुल देसाई की एक और किताब है दि क्वेस्ट फॉर कैशलेस सोसायटी भी एक किताब है जो 2015 में छपी थी. हमने सैम पित्रोदा से संपर्क का प्रयास किया लेकिन सफल नहीं हो सके. पित्रोदा ने 2010 में कहा था कि 30 साल में पेपर मनी या नोट ग़ायब हो जाएगा.

अगर ये बात अक्षरश: सही है तो नोटबंदी के इन पचास दिनों में से कोई एक दिन सैम पित्रोदा दिवस के रूप में मनाया जा सकता है या फिर गहनों पर लगने वाले हॉल मार्क की तरह ई-वॉलेट के लिए सैम मार्क शुरू हो सकता है. सैम मार्क का आइडिया हमारे सहयोगी अमितेश का है. रिज़र्व बैंक के आदेश के अनुसार हर बैंक के ब्रांच में यह लिखा होना चाहिए कि उसका आंतरिक लोकपाल कौन है, संपर्क कैसे होगा. यह लोकपाल दूसरे बैंकों से रिटायर्ड हुआ व्यक्ति बनता है. बैंको का अपना लोकपाल तो होता ही है, सभी बैंकों का भी एक स्वतंत्र लोकपाल होता है. बैंकों के भी ई वॉलेट होते हैं और कंपनियों के भी. बैंकों के वॉलेट तो लोकपाल के दायरे में आते हैं, लेकिन कंपनियों के ई-वॉलेट लोकपाल के दायरे में नहीं आते. अगर यह सही है तो ऐसा क्यों है. नोटबंदी ने दर्शक और पत्रकार दोनों को बैकिंग प्रणाली को समझने का अवसर उपलब्ध कराया है. मेरे पढ़ने और समझने में चूक हो सकती है, इसके लिए पहले ही माफी. फिर भी जो समझ सका हूं वो साझा करने का जोखिम उठा रहा हूं.

रिजर्व बैंक के अनुसार ई-वॉलेट से आपने किसी को भुगतान किया. जिसे पेमेंट किया है उसके खाते में तीन दिन के अंदर पैसा चला जाना चाहिए. मान लीजिए कि पैसा नहीं गया और आपके खाते से निकल गया. तो इसकी शिकायत के लिए स्वतंत्र व्यवस्था क्या है. मान लीजिए कि आपने खाते से पैसा निकल गया और रास्ते में कहीं अटक गया. ज़ाहिर है इसकी शिकायत आपको वॉलेट कंपनी से ही करेंगे. अगर तीन दिन के अंदर कंपनी ने पैसा नहीं दिया, चार दिन बाद दिया या हफ्ता भर पता चला कि आपने जो पेमेंट किया था वो बिजली वाले को मिला ही नहीं तो आप क्या करेंगे. रिजर्व बैंक वॉलेट कंपिनयों को अनुमति देता है कि वे अपनी न्यूनतम जमा राशि पर वो ब्याज़ कमा सकती हैं. हो सकता है कि कोई कंपनी आपका पैसा रोक कर ब्याज़ कमा ले और उधर समय पर पेमेंट न करने के कारण आपको जुर्माना भरना पड़ जाए. क्या हम तमाम कानूनों और अपने अधिकारों की बारीकियों को समझते हैं.

सोमवार के 'प्राइम टाइम' में वकील प्रशांत माली ने कहा कि दिल्ली के साइबर अपेलेट ट्राइब्यूनल में 2012 से कोई जज नहीं है. यह सुनकर हम चौंक गए. हमारे सहयोगी शरद शर्मा मंगलवार सुबह दिल्ली स्थित साइबर अपेलेट ट्राइब्यूलन के दफ्तर पहुंच गए. भारत में साइबर अपराध के लिए यह इकलौती कोर्ट है. जैसे पर्यावरण के लिए नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल है, लेकिन एनजीटी या दूसरे ट्राइब्यूनल में एक चेयरमैन और दो मेंबर होते हैं. एनजीटी में अगर चेयरमैन नहीं है तो मेंबर न्यायिक प्रक्रिया को बढ़ा सकता है. आईटी कानून 2000 में ऐसा कोई प्रावधान न होने के कारण बीते साढ़े पांच साल से साइबर ट्राइब्यूनल में तारीख़ ही मिलती है, फैसला नहीं आता. क्योंकि इसके मेंबर जज का काम नहीं कर सकते हैं. वैसे ये जज नहीं प्रिसाइडिंग अफसर कहे जाते हैं मगर इसकी कुर्सी पर कोई रिटायर्ड न्यायधीश ही बैठता है. जस्टिस राजेश टंडन इस ट्राइब्यूनल के आखिरी जज थे. 30 जून, 2011 से वहां जज नहीं हैं. शरद शर्मा ने ट्राइब्यूनल की वेबसाइट भी देखी जिससे पता चलता है कि 2011 से यहां पर कोई जजमेंट ही नहीं आया है. इसका दफ्तर कनॉट प्लेस के जीवन भारती बिल्डिंग के ग्राउंड फ्लोर में है. हम इसकी पुष्टि तो नहीं कर सकते लेकिन ऐसा सुनने को मिला कि इस दफ्तर का किराया महीने का 30-35 लाख रुपया है. इतना खर्चा किराये पर और फैसले के लिए साढ़े पांच साल से जज नहीं. ये किसकी जवाबदेही है. वैसे ये ट्राइब्यूनल रविशंकर प्रसाद के आई टी मंत्रालय के तहत आता है. मंत्रालय ने यहां पर्याप्त स्टाफ भी नहीं दिये हैं. इसकी वेबसाइट पर लिखा है कि चेयरमैन की नियुक्ति सरकार के पास विचाराधीन है.

साइबर क्राइम की हिन्दुस्तान की इकलौती अदालत का ये हाल है. साइबर वकील पवन दुग्गल जी ने कहा कि जज का न होना एक तरह से मानवाधिकार का हनन है. इस ट्राइब्यूनल में केस लड़ रहे वकील सजल धमीजा से शरद शर्मा ने उनके दफ्तर में जाकर मुलाकात की. फर्ज़ कीजिए कि आप तमिलनाडु के किसी कस्बे से हैं और आपके साथ साइबर फ्रॉड होता है. कानूनी समझ में हमसे चूक हो सकती है लेकिन क्रिमिनल केस की एफआईआर तो आप पुलिस में दर्ज करा देंगे. मगर पैसा चाहिए तो निम्नलिखित चरणों से गुज़रते हुए आपको उपरोक्त साइबर ट्राइब्यूनल ही आना होगा.
आप सबसे पहले राज्य के Adjudicating अफसर के यहां अपील करेंगे. हर राज्य के सूचना टेक्नॉलजी मंत्रालय का सचिव Adjudicating अफसर होता है. अगर आप सीधे हाईकोर्ट भी गए तो वहां से मामला ट्राइब्यूनल में ही भेजा जाता है.

सोमवार के 'प्राइम टाइम' में प्रशांत माली ने कहा कि कई राज्यों में प्रधान सचिवों को Adjudicating अफसर का दायित्व नोटिफाई नहीं किया गया है. हम अपनी तरफ से इसकी पुष्टि नहीं कर सके. अगर यह सही है तो साइबर अपराध को लेकर इंसाफ की व्यवस्था काफी अंधकार में है. जागरूकता की घोर कमी है, शायद इसीलिए यहां करीब 100 मामले ही हैं जबकि फरवरी 2016 में केंद्रीय आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने राज्यसभा में बताया था कि अप्रैल से दिसबंर 2015 के बीच बैंक फ्रॉड के 12,000 मामले दर्ज हुए हैं. राष्ट्रीय अपराध शाखा के अनुसार 2013 में साइबर क्राइम के 4,356 मामले और 2014 में 7,021 मामले दर्ज हुए थे. सोमवार को एक रिपोर्ट आई है कि कैशलेस अभियान के कारण फ्रॉड के मामले 60-65 फीसदी बढ़ सकते हैं. कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम cert-In के अनुसार 2015 में तमाम तरह के साइबर अपराधों की संख्या 49,455 थी.

ग़ैर नकदी लेन-देन के मामले में एशिया के मुल्क तेज़ी से प्रगति कर रहे हैं. दुनिया के जाने-माने बैंक बीएनपी पारिबस और मैनेजमेंट कंसल्टिंग कॉर्पोरेशन केप जेमिनी ने वर्ल्ड पेमेंट्स रिपोर्ट 2016 जारी की है. इसके अनुसार 2014 में
दुनिया में कैशलेस लेनदेन का ये चलन 8.9% की दर से बढ़ा. चीन ने 40 प्रतिशत की दर से तरक्की की और भारत ने 13.5 प्रतिशत की दर से. कैशलेस लेन-देन के मामले में चीन चौथे नंबर पर है. पहला अमेरिका है, दूसरा यूरो ज़ोन है, तीसरा ब्राज़ील है. इस मामले में चोटी के दस देशों में भारत नहीं है.

इस रिपोर्ट के अनुसार तेरह साल से चेक से भुगतान घटा है. कैश पेमेंट का चलन भी कम होता जा रहा है. इस रिपोर्ट में भी कहा गया है कि जिस तेज़ी से कैशलेस चलन बढ़ा है उस तेज़ी से नियमों में बदलाव नहीं आ रहा है. बैंकों को रिस्क मैनेजमेंट बेहतर करना होगा. यह भी ध्यान रखना होगा कि नियमों का जाल इतना जटिल न हो जाए कि उपभोक्ता की परेशानी बढ़ जाए. क्या हम एक उपभोक्ता के तौर पर अपने अधिकारों को लेकर सजग हैं. मान लीजिए कि किसी ने हैक कर आपके खाते से दस लाख उड़ा लिये. जीवन भर की पूंजी साफ हो गई, तो आप कहां शिकायत करेंगे, आपके पास क्या कानूनी अधिकार हैं.


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