एक देश एक चुनाव शायद अभी न हो, लेकिन एक राज्य में समय से पहले चुनाव जरूर हो सकते हैं. यह राज्य है तेलंगाना जहां के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने गुरुवार को अपने राज्य की विधानसभा भंग करने का फैसला किया ताकि समय से पहले चुनाव हो सकें. हैदराबाद में राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में यह फैसला किया गया और राज्यपाल ने इस पर मुहर लगा दी. राज्यपाल ने के चंद्रशेखर राव से फिलहाल सरकार चलाने को कहा है. वैसे तो विधानसभा का कार्यकाल अगले साल जून तक था और लोकसभा चुनावों के साथ ही तेलंगाना के विधानसभा चुनाव होने थे. लेकिन चंद्रशेखर राव ने समय से पहले चुनाव कराने का फैसला किया है. अब संभावना है कि नवंबर-दिसंबर में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिज़ोरम के साथ ही तेलंगाना के भी चुनाव हों.
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि चंद्रशेखर राव लोकसभा चुनावों के साथ अपने राज्य के विधानसभा चुनाव नहीं चाहते थे. मोटे तौर पर तेलंगाना में जल्दी चुनाव कराए जाने के पीछे कुछ बड़े कारण हैं.
- केसीआर को लगता था कि लोकसभा के साथ चुनाव कराने पर राष्ट्रीय मुद्दे राज्य के मुद्दों पर हावी हो जाएंगे. मोदी लहर और राष्ट्रीय मुद्दों की आड़ में बीजेपी को फायदा मिल सकता था.
- कांग्रेस और टीडीपी साथ आ सकते थे. हाल ही में मॉनसून सत्र में दोनों दलों ने एक दूसरे का साथ दिया.
- अगर मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहता है तेलंगाना में मूर्छित अवस्था में पड़े कांग्रेस संगठन मे जान आ सकती है.
- लोकसभा चुनाव के साथ कराने पर बीजेपी से सांठगांठ के आरोपों के चलते टीआरएस के मुस्लिम वोट छिटक सकते थे.
तेंलगाना में टीआरएस का सीधा मुकाबला कांग्रेस से है. लेकिन फिलहाल कांग्रेस पूरी तरह से पस्त है. पिछले विधानसभा चुनाव में जहां टीआरएस ने 119 में से 63 सीटें जीती थीं लेकिन कांग्रेस सिर्फ 21 सीटें ही जीत पाई थी. कांग्रेस का संगठन भी कमजोर है क्योंकि अधिकांश बड़े नेता टीआरएस में शामिल हो चुके हैं. एक संभावना कांग्रेस और टीडीपी के गठजोड़ की है. ऐसा होने से टीआरएस को टक्कर मिल सकती है. लेकिन चंद्रशेखर राव न तो कांग्रेस को और न ही राहुल गांधी को गंभीरता से लेने को तैयार हैं.
इस बीच, तेलंगाना में बीजेपी भी अपनी भूमिका तलाश रही है. राज्य बीजेपी की नज़रें लोकसभा चुनाव पर टिकी हैं. हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि बीजेपी विधानसभा चुनाव में हथियार डाल देगी. पार्टी का दावा है कि संगठन के तौर पर उसे मजबूती मिली है. वहां एक रैली और बड़ी सभा भी की गई. बीजेपी का दावा है कि तेलंगाना में उसका जनाधार है. 1998 के चुनाव में 24 फीसदी वोट भी मिले थे. लेकिन बीजेपी यह जानती है कि फिलहाल टीआरएस के आगे टिक पाना मुमकिन नहीं है. उसकी कोशिश राज्य में मुकाबला त्रिकोणीय बनाने की है. साथ ही उसे यह भी उम्मीद है कि लोकसभा चुनाव के बाद केसीआर बीजेपी के साथ ठीक वैसे ही आ सकते हैं जैसे कि अभी मॉनसून सत्र में उन्होंने बीजेपी का खुल कर साथ दिया.
कांग्रेस केसीआर के खिलाफ इसे एक बड़ा मुद्दा बनाने की तैयारी में है. बीजेपी से रिश्तों को प्रचार कर कांग्रेस मुस्लिम वोट टीआरएस के पाले से खींचने की रणनीति बना रही है. लेकिन टीआरएस के पास इसकी भी काट है. उसका कहना है कि केंद्र से दोस्ताना रिश्ते रखना नए राज्यों की मजबूरी है. रही बात मुसलमानों की तो पार्टी नेता 2000 करोड़ रुपए की अल्पसंख्यक कल्याण योजना की याद दिलाते हैं. टीआरएस की उम्मीदें पिछले पांच साल में शुरू की गईं कई जनकल्याणकारी योजनाओं पर टिकी हैं. पर कुल मिला कर चंद्रशेखर राव ने एक जोखिम मोल लिया है. तेलंगाना की जनता इस पर क्या फैसला देगी, इसका इंतजार रहेगा. लेकिन एक बात साफ है कि लोकसभा के चुनाव जल्दी नहीं होने जा रहे जैसी कि अटकलें लगाई जा रही थीं. इसका एक इशारा तब मिला जब बीजू जनता दल के नेता पिनाकी मिश्रा ने चुनाव आयोग को पत्र लिख कर कहा कि अगर लोकसभा चुनाव जल्दी कराए जा रहे हों तो ओडिशा के चुनाव भी उसके साथ ही करा लिए जाएं ताकि राज्य का एक हजार करोड़ रुपया बच सके. द इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक इस पर चुनाव आयोग ने पिनाकी मिश्रा को कहा कि किसी भी सूरत में लोकसभा चुनाव 31 जनवरी 2019 से पहले नहीं होंगे. हालांकि आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि होनी बाकी है, मगर जल्दी लोकसभा चुनावों की अटकलों पर फिलहाल तो विराम लग ही गया है.
(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)
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This Article is From Sep 06, 2018
तेलंगाना में कौन मारेगा बाज़ी?
Akhilesh Sharma
- ब्लॉग,
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Updated:सितंबर 06, 2018 23:32 pm IST
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Published On सितंबर 06, 2018 20:11 pm IST
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Last Updated On सितंबर 06, 2018 23:32 pm IST
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