पटना में जो जलजमाव देखा जा रहा है वैसा पिछले कुछ दशकों में नहीं देखा गया. जलजमाव की जो तस्वीरें और वीडियो हर घंटे सामने आ रहे हैं उसमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके सहयोगी BJP के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की छवि को धोकर रख दिया है. हालांकि यह भी सच है कि बिहार में गठबंधन सरकार के मुखिया नीतीश कुमार के सामने उनको चुनौती देने वाला कोई मजबूत नेता नहीं है. सामने तेजस्वी यादव जैसे राजनीति के नौसिखुआ इंसान हैं जो राज्य की जनता की परेशानी के समय सामने आने की जरूरत नहीं समझते हैं और जब वो महीनों बाद सामने आते हैं तो उनकी सफाई ये होती है कि उनकी तबीयत खराब थी, इलाज करवा रहे थे. लेकिन सच में होता यह है कि कुछ ट्वीट कर वह अपनी राजनीतिक दुकान चला रहे हैं. इस विषय में पार्टी के लोगों से पूछें तो उनका जवाब होता है जनता उनकी सोशल मीडिया आधारित दुकान को जल्द बंद करा देगी. ऐसे में जनता के सामने नीतीश कुमार के अलावा कोई विकल्प नहीं दिख रहा है.
लेकिन शायद यही राजनीतिक विश्वास पटनावासियों के लिए आफत बन गया है, क्योंकि मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार ने सड़क, बिजली, विधि-व्यवस्था पर जितना ध्यान दिया नगर विकास और खासकर राजधानी पटना की सुविधाओं के विस्तार और विकास पर ध्यान नहीं दिया. यह बात किसी से भी छुपा नहीं है कि नीतीश कुमार के लिए यह विषय कभी प्रिय नहीं रहा. इसका एक बड़ा कारण यह भी माना जा रहा है कि नीतीश कुमार का दिल राजगीर के विस्तार और विकास पर ज़्यादा केंद्रित रहा है. नीतीश अगर गंभीर होते तो पटना में एक मामूली से मामूली परियोजना को पूरा होने के लिए वर्षों तक राह नहीं देखना होता. नगर विकास आयुक्त के पद पर किसी अधिकारी को कुछ महीनों में ही बदला जाना अपवाद नहीं एक नियम बन गया है. पटना शहर में अतिक्रमण है या अतिक्रमण के बीच पटना शहर तय करना मुश्किल होता है. जिस पुलिस विभाग का नीतीश कुमार मुखिया हैं वो पटना की हर प्रमुख सड़कों पर पैसों के लिए अतिक्रमण कराना अपना कर्तव्य मानकर चलती है. इसलिए पटना शहर में आपको रेलवे स्टेशन हो या कोई भी मुख्य मार्ग, जूस बेचने वाले से लेकर ऑमलेट बेचने वाले तक मिल जाएंगे और साथ ही साथ बग़ल में पुलिस वाले लाठी लिए खैनी खाते आपको दिख जाएंगे.
ऐसा नहीं है कि नीतीश कुमार ने पटना शहर में कुछ किया ही नहीं. रेल मंत्री के रूप में उन्होंने गिट्टी के गोदाम को राजेंद्र नगर रेलवे स्टेशन में तब्दील कर दिया जो आज भी देखने वाले जगहों में से एक है. लेकिन जब मुख्यमंत्री बने तो पटना को सुधारने, उसके सौन्दर्यीकरण और यहां की मूलभूत सुविधाओं के विस्तार को लेकर इच्छा शक्ति का नीतीश कुमार के अंदर नितांत अभाव दिखा, जिसका खामियाजा अब अपने शासनकाल के 15वें साल में उन्हें आलोचना के तौर पर ख़ुद उठाना पर रहा हैं. नीतीश ने कभी आज तक जैसे बाढ़ या अन्य आपदा की तैयारी की वैसे उन्होंने अपने शहर ख़ासकर राजधानी पटना को अतिवृष्टि में कैसे बचाना है उसकी तैयारी नहीं की. हालांकि यह भी सच है कि इस बार तीन से चार दिनों के अंदर जितनी अत्याधिक वर्षा हुई उसका अनुमान किसी को नहीं था.
अब बात करते हैं उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी की. शायद इस बारिश ने उनकी क्षमता और काबिलियत की पोल खोल दी है. सुशील मोदी पटना के जलजमाव के सबसे बड़े विलेन हैं, क्योंकि वह चाहे पटना नगर निगमों, नगर विकास विभाग हो या पटना के म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन और मेयर हों, ये बात किसी से छिपी नहीं है कि NDA सरकार में नगर विकास मंत्री कोई भी हो इस विभाग के कर्ताधर्ता सुशील मोदी ही रहे हैं. ख़ासकर पिछले 2 वर्षों के दौरान तो नगर विकास मंत्री की भूमिका एक रबर स्टंप की रही. सभी समीक्षा बैठक की अध्यक्षता सुशील मोदी ने ही की है. पटना के नगर विकास विभाग के इंजीनियरों को भी नहीं अंदाज़ा नहीं होगा कि कौन सी नाली की निकासी कहां होती है, लेकिन सुशील मोदी इस शहर के रग-रग से वाक़िफ़ हैं, क्योंकि लालू-राबड़ी शासनकाल में जब भी जल जमाव होता था वो सबसे आगे होते थे विपक्ष के नेता के रूप में.
लेकिन सरकार में आने के बाद सुशील मोदी एक कुशल प्रशासक रूप में सफल नहीं रहे. अगर इसे साबित करना है तो आप नगर विकास विभाग को उठा लीजिए और राजधानी पटना के हालात को दिखा दीजिए ये उनकी नाकामी का सबसे बड़ा सर्टिफ़िकेट है. नीतीश कुमार और सुशील मोदी की मंशा पर आप संदेह नहीं कर सकते, लेकिन यह भी एक सच है कि राजधानी पटना की बदहाल स्थिति इन दोनों की विफलता की सबसे बड़ी कहानी है. 1995 के बाद पटना शहर की सभी विधानसभा सीटों पर BJP के उम्मीदवार ही जीते हैं. ख़ुद सुशील मोदी भी पटना सरकार से ही विधायक भी रहे लेकिन शहर से पानी के निकास के लिए नालियों का निर्माण न करा पाना उनकी विफलता की कहानी है.
मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...
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