सोशल मीडिया के अभियान जमीन पर कहां?

शिक्षा मंत्री के ट्वीटर हैंडल में कई छात्रों ने अपने शिक्षकों के साथ सेल्फी लेकर तस्वीरें भी डाली हैं. ज़रूरी नहीं कि शिक्षक ही हों, मां भी हैं, और कोई दोस्त भी हो सकता है. मंत्री जी के हैंडल पर तस्वीरों की भरमार है.

मौसम विभाग ने केरल के कई ज़िलों में रेड और ऑरेंज अलर्ट जारी किया है. केरल में मानसून कमज़ोर था मगर आशंका है कि कई ज़िलों में भारी बारिश हो सकती है. उधर मुंबई में बारिश के दिनों में दीवार और बिल्डिंग का गिरना बंद नहीं हो रहा है. अभी 2 जुलाई को मलाड में भारी बारिश में दीवार गिरने से 22 लोग मारे गए थे, 94 लोग घायल हो गए थे. मंगलवार को डोंगरी इलाके में एक इमारत गिर गई. यह इमारत ख़तरनाक घोषित थी. हादसे में दस लोग मारे गए और नौ लोग घायल हो गए. बीएमसी ने इस साल 499 बिल्डिंग को ख़तरनाक घोषित किया है. ये वो इमारतें हैं जो काफी पुरानी हो गई हैं. नियमों का उल्लंघन कर बनाई गई हैं. मंगलवार को जो इमारत गिरी उसके लिए 2017 में बीएमसी ने पत्र जारी किया था कि इस इमारत को जल्दी ही खाली कराकर गिरा दिया जाए क्योंकि अगर दुर्घटना हुई तो बीएमसी जिम्मेदार नहीं होगी. सवाल यह भी है कि दो साल तक फिर क्यों नहीं गिराया गया. बीएमसी ने पिछले साल भी ऐसी सूची बनाई थी. 619 इमारतों को ख़तरनाक घोषित किया गया था. 2017 में सितंबर महीने में इमारत गिरने की दो घटनाएं हुई थीं. मझगांव में बिल्डिंग गिरने से 61 लोग मर गए थे. यह बिल्डिंग बीएमसी की ही थी. उसी साल भिंडी बाज़ार इलाके में एक पांच मंज़िला इमारत गिर गई. इसे ख़तरनाक घोषित किया गया था. इसमें 33 लोग मर गए थे. 2017 के जुलाई में घाटकोपर में पांच मंज़िला इमारत गिर गई थी. 12 लोग मर गए थे. मुंबई में बिल्डिंग गिरने की घटना में पिछले पांच साल में 200 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं. इसके बाद भी हम यही बहस कर रहे हैं कि बीएमसी अपना काम नहीं कर रही है. इमारतों को खतरनाक घोषित किया जा रहा है और उन्हें गिराया नहीं जा रहा है.

इंडियन एक्सप्रेस ने पिछले साल अगस्त में एक रिपोर्ट छापी थी. उस रिपोर्ट के अनुसार 5 साल में मुंबई में बिल्डिंग और दीवार गिरने की 2704 घटनाएं हुईं थीं. 840 लोग घायल हुए थे और 234 लोग मारे गए थे. एक आरटीआई के जवाब में बीएमसी की यह जानकारी है. जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी और सख्त कदम नही उठाए जाएंगे हम हादसों को जोड़ते रह जाएंगे. गार्डियन अखबार ने 2017 के सितंबर में एक विश्लेषण छापा था कि गिरने की आशंका के बाद भी लोग इन खतरनाक घरों में क्यों रहते हैं.

पुरानी इमारतों के मालिक इन इमारतों को बनवाने की क्षमता नहीं रखते हैं. वे खुद इन घरों को छोड़ कर चले जाते हैं और किराये पर लगा देते हैं. किराये पर लेने वाले ये लोग कम आमदनी होने वाले होते हैं, इन्हें मुंबई में सस्ता घर मिल जाता है. बीएमसी नोटिस भेजती है कि मकान खाली करो, इसे गिराना है, इसके बाद भी लोग अलग अलग कारणों से मकान खाली नहीं करते हैं. एक कारण यह भी है कि जब इमारत गिरती है तो उन्हें ट्रांज़िट कैंप में जाने के लिए कहा जाता है. पता नहीं होता कि कब इमारत गिरेगी, कब बनेगी इसलिए वे नहीं जाते हैं. गार्डियन ने चंदशेखर प्रभु का बयान छापा है. प्रभु का कहना है कि इन खतरनाक इमारतों के गिराने की जो योजनाएं हैं वो ज्यादातर कम आर्थिक क्षमता वाले लोगों को निकालने के लिए हैं. योजनाएं तो गरीबों के नाम पर बनती हैं लेकिन इस प्रक्रिया में वह सड़क पर होता है और बड़े बिल्डिरों की चांदी हो जाती है. मगर खाली न करने पर मारा भी गरीब ही जाता है. गार्डिंयन की इस रिपोर्ट को पढ़ते हुए समझ आता है कि क्यों लोग ऐसी इमारतों में रहते हैं. वो मकान खाली कर देंगे तो रोज़गार छिन जाएगा, मकान में रहेंगे तो जीवन छिन जाएगा.

पेंशन की पुरानी व्यवस्था को बहाल करने के लिए जो लोग आंदोलन करते रहे हैं उनके लिए एक ख़बर है. सरकार ने कहा है कि वह पुरानी पेंशन स्कीम दोबारा शुरू नहीं करेगी. 2004 में नेशनल पेंशन सिस्टम आया था. उसके पहले तक निश्चित मात्रा में पेंशन मिला करती थी. नेशनल पेंशन स्कीम बाज़ार से लिंक है. चुनाव से पहले पुरानी पेंशन व्यवस्था को बहाल करने के कई आंदोलन हुए थे, सरकार के इस जवाब से स्पष्टता आएगी और किसी किस्म का कंफ्यूज़न नहीं रहेगा कि पुरानी व्यवस्था लागू हो सकती है. आम तौर पर सरकारें ऐसे मुद्दे पर साफ-साफ नहीं बोलती हैं. मगर इस बार सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पेंशन की पुरानी व्यवस्था लागू नहीं होगी.

बीजेपी के सांसद राकेश सिंह और श्रीरोडमल नागर ने वित्त मंत्रालय से यह सवाल पूछा था कि क्या पुरानी व्यवस्था लागू करने पर विचार कर रही है, वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने लिखित जवाब में कहा है कि बढ़ते हुए और अवहनीय पेंशन बिल के कारण सरकार ने फिक्स पेंशन योजना की जगह एनपीएस अपनाने का सुविचारित कदम उठाया है. इस बदलाव से इस सरकार के सीमित संसाधनों को अधिक उत्पादक और सामाजिक आर्थिक विकास में सहायता मिली है. 1 जनवरी 2004 के बाद भर्ती हुए कर्मचारियों को पुरानी पेंशन व्यवस्था का लाभ नहीं मिलेगा.

बहुत से कर्मचारी हमें मेसेज करते रहते हैं कि पुरानी पेंशन स्कीम का मुद्दा उठा दीजिए, मेरे ख्याल से अब ज़रूरत नहीं होगी क्योंकि सरकार से उन्हें ख़ुशख़बरी मिल गई है. वैसे यह ख़ुशख़बरी हमारे लिए है कि लोग अब तंग नहीं करेंगे. एक बार फिर बता दें कि पुरानी पेंशन व्यवस्था अब लागू नहीं होगी. न ही सरकार की ऐसी मंशा है.

सेल्फी से क्या किसी योजना को बढ़ावा मिलता है, उसकी सफलता सुनिश्चित होती है, क्या सेल्फी से प्रेरणा मिलती है, अगर इसका जवाब हां में होता तो आज हमारे देश में प्रेरणा की बाढ़ आ चुकी होती. हर लम्हा सोशल मीडिया पर अनगिनत तादाद में सेल्फी अपलोड होती रहती है. गुरु पूर्णिमा के दिन भारत के मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने एक वीडियो मेसेज जारी किया है और सेल्फी विद गुरु करने की बात की है. आप अपने गुरु के साथ सेल्फी खींचाएं और सोशल मीडिया पर अपलोड करें. शिक्षा मंत्री ने कहा कि सेल्फी विद गुरु करें. तो कीजिए. क्या आपने किया. अपने गुरु के साथ सेल्फी ली और सोशल मीडिया पर कुछ लिखा. क्या आपके कॉलेज या यूनिवर्सिटी ने आपको ऐसा करने के लिए प्रेरित किया, क्योंकि यूजीसी के सचिव रजनीश जैन ने अपने आदेश पत्र में यही निवेदन किया है कि अपने छात्रों को सेल्फी विद गुरु अभियान में भाग लेने के लिए प्रेरित करें. अगर आप आज प्रेरित होने से मिस कर गए तो कोई बात नहीं, शिक्षक दिवस आ रहा है, उस दिन पहले से ही प्रेरित होने की तैयारी कर लीजिएगा. 15 जुलाई को मानव संसाधन मंत्री ने सेल्फी विद गुरु का आह्वान किया था. उस दिन उनका जन्मदिन भी था.

शिक्षा मंत्री के ट्वीटर हैंडल में कई छात्रों ने अपने शिक्षकों के साथ सेल्फी लेकर तस्वीरें भी डाली हैं. ज़रूरी नहीं कि शिक्षक ही हों, मां भी हैं, और कोई दोस्त भी हो सकता है. मंत्री जी के हैंडल पर तस्वीरों की भरमार है. खुद मंत्री जी ने विवेकानंद के साथ अपनी सेल्फी लेकर फोटो डाली है. गुरु के साथ सेल्फी ट्वीट आते ही उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्र ने टैग कर दिया कि वे भी तो गुरु हैं. 1000 से अधिक शिक्षा मित्र मौत को गले लगा चुके हैं. आप बताइये हमें कब न्याय मिलेगा. एक लाख 72 हज़ार शिक्षामित्र इंसाफ का इंतज़ार कर रहे हैं. यह भी अजीब है. मंत्री कह रहे हैं कि सेल्फी विद गुरु करें, गुरु कह रहे हैं कि गुरु को इंसाफ दे दें. कई सारे संस्थानों ने प्रेम से इस विनम्र निवेदन का पालन किया है. आईआईटी दिल्ली, आईआईटी मद्रास, एनआईटी सिलचर ने सेल्फी विद गुरु की तस्वीरें ट्वीट की हैं. जामिया की वेबसाइट पर लिखा है कि छात्रों से अनुरोध है कि अपने गुरु के साथ पिक्चर साझा करें, और 100 शब्दों में अपने गुरु के बारे में लिखें जिसे जामिया मिलिया इस्लामिया के फेसबुक पेज पर साझा किया जाएगा. यह हम इसलिए भी बता रहे हैं कि आज आपको पता भी नहीं होगा कि भारत के तमाम स्कूल कॉलेजों में सेल्फी विद गुरु का अभियान चल रहा था. शिवांगी प्रभुदेसाई ने ट्वीट किया है कि सरकार के विज़न को सपोर्ट करते हुए मैं अपने गुरु के साथ सेल्फी पेश कर रही हूं, मेरे गुरु यानि शिवांगी यानी कि मैं. यानी शिवांगी की गुरु आप ही हैं. बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में भी सेल्फी विद गुरु हुआ है. इस हैंडल से पता चलता है कि सेल्फी विद गुरु के कई इवेंट्स हुए हैं. आईआईटी मद्रास ने अपने ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया है. उनके यहां भी सेल्फी विद गुरु मनाया गया है. इस तरह कई संस्थानों ने सेल्फी विद गुरु मनाया है. एक तरफ जहां हर्षोल्लास से भारत के युवा सेल्फी विद गुरु मना रहे थे वहीं इस हर्ष की घड़ी में केंद्रीय विद्यालयों के शिक्षक पेंशन की बात कर रहे हैं. शायद उन्हें इस वक्त पेंशन की ज़्यादा ज़रूरत है, सेल्फी की कम है. पूनम श्रीवास्तव ने मानव संसाधन मंत्री को टैग करते हुए लिखा है कि 30-35 साल तक निस्वार्थ सेवा करने के बाद भी हमारा यह हाल है. पेंशन नहीं मिल रही है. इस कारण भूखों मरने की नौबत आ गई है. क्या ऐसा हो सकता है कि इन शिक्षकों को पेंशन दे दी जाए और सेल्फी विद पेंशन का अभियान चले. हमने इस पर इतना ज़ोर इसलिए दिया ताकि याद रहे कि छात्रों के लिए ज़रूरी क्या है.

सरकार प्रेरित करना चाहती है, लेकिन लोग अपनी समस्याओं को लेकर किसे प्रेरित करें कि उनका काम हो जाए. मंत्री से लेकर मंत्रालयों को पत्र लिखने के बाद भी शिक्षकों की समस्या का समाधान नहीं होता है. एकतरफा प्रेरणा का यह अभियान दोतरफा क्यों नहीं हो सकता है. क्यों नहीं सेल्फी विद समस्या अभियान चले और सरकार सेल्फी विद समाधान के साथ जवाब दे. कॉलेज में शिक्षक न हो, पढ़ाने की व्यवस्था न हो, लेबोरेटरी न हो, कोई बात नहीं, सेल्फी विद गुरु होना चाहिए. भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट पेश किया है. 484 पेज के इस ड्राफ्ट को पढ़ने, समझने और प्रतिक्रिया देने के लिए एक महीने का समय दिया गया. आप इस ड्राफ्ट के रेटिंग वाले चैप्टर पर जाइये. नेशनल असेसमेंट एंड एक्रेडिटेशन काउंसिल यानी नैक कॉलेज और यूनिवर्सिटी की रैंकिंग करता है. हर कॉलेज में जाकर वहां की सुविधाओं और उपलब्धियों को देखकर ए बी सी डी ग्रेड देता है. इसकी सच्चाई जान लें फिर एक दिन सेल्फी विद एवरेज कॉलेज का भी अभियान चले. नैक की रिपोर्ट के अनुसार 68 प्रतिशत यूनिवर्सिटी औसत या औसत से भी नीचे हैं. 91 प्रतिशत कॉलेज औसत या औसत से भी नीचे हैं.

91 प्रतिशत कॉलेज औसत और औसत से कम हैं, उम्मीद है इसमें उन गुरुओं का योगदान नहीं होगा जिनके साथ आज सेल्फी विद गुरु का अभियान चल रहा था. भारत में 91 प्रतिशत कॉलेज औसत से नीचे हैं. यूजीसी 164 यूनिवर्सिटी को मान्यता देती है, इनमें से केवल 140 यूनिवर्सिटी ने नैक के तहत अपना मूल्यांकन कराया था. इस 140 यूनिवर्सिटी में से केवल 32 यूनिवर्सिटी को ही ए या ए से अधिक का ग्रेड मिला है. बाकी सारी यूनिवर्सिटी औसत या औसत से नीचे हैं. यह है हमारी शिक्षा की तस्वीर. अच्छी बात है कि छात्रों ने भी अपने कॉलेज या यूनिवर्सिटी के औसत या औसत से नीचे होने की परवाह नहीं की. सेल्फी विद गुरु जैसे अभियानों से क्या हासिल होता है. 3 जुलाई 2019 को रमेश चंद्र पोखरियाल ने राज्यसभा में कहा था कि सेंट्रल यूनिवर्सिटी में 7000 शिक्षकों के पद खाली हैं.

मानवसंसाधन मंत्री कह रहे हैं कि प्राइवेट से लेकर सरकारी कॉलेजों में 3,44,714 पद खाली हैं राज्य से लेकर केंद्र तक में. 25 मई को रितिका चोपड़ा ने शिक्षा की हालत पर एक रिपोर्ट लिखी थी. इंडियन एक्सप्रेस की रितिका शिक्षा को नियमित रूप से कवर करती हैं. उनकी रिपोर्ट के अनुसार भारत भर के सभी उच्च शिक्षा में 5 लाख पद खाली हैं. इनमें राज्यों के विश्वविद्यालय हैं, सेंट्रल यूनिवर्सिटी भी है और अन्य संस्थान हैं. देश भर में पांच लाख शिक्षक नहीं हैं. जब तक 5 लाख पद भरे न जाएं सेल्फी विद गुरु की जगह सेल्फी विद माइनस गुरु न हो जाए. पिछले ही महीने तो पर्यावरण मंत्री ने सेल्फी विद सैपलिंग अभियान शुरू किया था. कहा था कि सैपलिंग लगाएं और उसके साथ सेल्फी खिचाएं. इस सेल्फी अभियान का हम और आप कैसे मूल्यांकन कर सकते हैं. कपिल देव, जैकी श्रॉफ ने सेल्फी विद सैपलिंग तो कर लिया लेकिन वह अभियान अभी कहां है. 2016 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री फडणवीस ने सेल्फी विद ट्री अभियान चालू किया था. कहा था कि अधिकारी कर्मचारी पौधे लगाएं और सेल्फी खिंचा कर वन विभाग को कुछ शब्द लिखकर भेजें. इसमें से कुछ लोगों को लकी विनर चुना जाएगा. हम नहीं जानते कि 2016 में दो करोड़ पेड़ लगाए गए थे, उनमें से कितने लहलहा रहे हैं, जिन कर्मचारियों ने सेल्फी विद ट्री किया था, उन्होंने उस ट्री को कितना बचाया है.

महाराष्ट्र सरकार का लक्ष्य था कि तीन साल में 50 करोड़ पेड़ लगाए थे. लक्ष्य 50 करोड़ पेड़ लगाने का था. इसी जून में विधानसभा में देवेंद्र फडनवीस से पूछा गया था जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि तीन साल में महाराष्ट्र ने 24 करोड़ पेड़ लगाए. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 2018 तक 17 करोड़ लगाने का लक्ष्य था. 2019 में 33 करोड़ लगाने का लक्ष्य था. मुख्यमंत्री ने 2016 से 18 तक का हिसाब दिया है कि 24 करोड़ पेड़ लगाए गए. 2016 में जितने पेड़ लगाए गए उनमें से 72 प्रतिशत बच ग. 2017 में जितने पेड़ लगाए गए उनमें से 80 प्रतिशत बच गए. 2018 में जितने पेड़ लगाए गए उनमें से 85 प्रतिशत पेड़ बच गए.

महाराष्ट्र का दावा है कि इसके कारण वन क्षेत्र 20 प्रतिशत से बढ़कर 33 प्रतिशत हो गया है. मशहूर पर्यावरणविद माधव गाडगिल इन अभियानों को दिखावा मानते हैं. 8 अगस्त 2018 को उनका एक बयान हिन्दुस्तान टाइम्स में छपा है कि सिर्फ संख्या पर ज़ोर है. किसी को पता नहीं कि ये पेड़ कहां बचे हैं. रिचर्ड थेलर हैं जिनकी किताब है नज. इन्हीं की थ्योरी के आधार पर सरकार इस तरह के अभियान चलाती है जिसके बारे में आर्थिक सर्वे के चैप्टर दो में विस्तार से लिखा है. इसके तहत ज़ोर दिया जाता है कि सरकार लोगों को प्रेरित करे. नज करे यानी सौम्य तरीके से धक्का देकर अपेक्षित व्यवहार के लिए प्रेरित करे.

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कई बार हम ऐसे अभियानों को हास्यास्पद स्थिति में पहुंचा देते हैं. संसद परिसर आम तौर पर साफ सुथरी रहती है मगर फिर भी यहां पर सांसद और मंत्री झाड़ू लगाने आए. सफाई की यह रस्मअदायगी का सबसे बड़ा बचाव यही है कि लोगों को प्रेरित किया जाता है. धूलकणों को खोज खोजकर बुहारने को आप सेल्फी विद झाड़ू कह लीजिए लेकिन इसका कोई ठोस नतीजा नहीं निकलता है. हर बात के लिए प्रेरणा पर ज़ोर इतना न हो जाए कि लोग अपना काम छोड़ कर एक दूसरे घर उसे प्रेरित करने जाने लगें. प्रेरक और प्रेरित के चक्कर में मोहल्ले के मोहल्ले सफाई का इंतज़ार कर रहे हैं. न सफाई कर्मचारी है और अगर है तो कूड़ा कचरा फेंकने की कोई व्यवस्था नहीं है.